तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढूँढता संग
सहज हुआ अद्वैत पल, लहर पाट आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध
होंठ पुलक जब छू रहे, रतनारे …
Added by Saurabh Pandey on June 22, 2013 at 2:00am — 51 Comments
आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना
कितना आसान था दुश्वार का आसां होना
.
आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता
आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना
.
नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा
दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना
.
वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है
भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना
.
दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है
इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना
.
ज़ेब = शोभा , नाजाँ =…
Added by Ajay Agyat on June 13, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
(छंद - मनहरण घनाक्षरी)
गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र संसृता कि भारतीय धर्म-कर्म वारती बही सदा
दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा
पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा …
Added by Saurabh Pandey on June 8, 2013 at 8:30pm — 33 Comments
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