For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना 
कितना आसान था दुश्वार का आसां होना 

.
आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 
आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना 

.
नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा 
दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना

.
वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है 
भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना 

.
दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है 
इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना 

.
ज़ेब = शोभा , नाजाँ = गरवान्वित , दरमां = उपचार

 

देखो हर सू कैसे मंज़र दिखते हैं
लोगों के हाथों में पत्थर दिखते हैं

.
कैसे दिल का दर्द छिपा पाएंगे वो 
उन आँखों में खुश्क समंदर दिखते हैं 

.
दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं

.
लूट लिए हैं जिसने होश हवास मेरे 
मुझ को वो ख्वाबों में अक्सर दिखते हैं

.
केवल मन का भ्रम है ये अज्ञात तेरे 
दूर जो मिलते धरती अंबर दिखते हैं

.

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 11:30am
आदरणीय..अजय जी, उम्दा गजल के लिए दाद कुबूल कीजीए ..वाह! वक्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है, भूल से भी न कभी वक्त पे नाजां होना...बहुत खूब आदरणीय 'लूट लिए है जिसने होश हवास मेरे, मुझ को वो ख्वाबों में अक्सर दिखते है..केवल मन का भ्रम है ये अग्यात तेरे,दूर जो मिलते धरती अंबर दिखते है....बहुत सुंदर आदरणीय
Comment by shalini rastogi on June 26, 2013 at 9:24am

अजय कुमार जी .. दोनों ही गज़लें बेहद खूबसूरत बन पड़ी हैं .. हरेक अश'आर दिल छू गया .. विशेष तौर पर दूसरी गज़ल तो बेहद पसंद आई .. इन दोनों अश'आरों  के लिए दिली दाद क़ुबूल करें-

कैसे दिल का दर्द छिपा पाएंगे वो 
उन आँखों में खुश्क समंदर दिखते हैं 

.
दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं... लाजवाब!

हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2013 at 10:18pm

आ0 अजय भाई जी,  ...अतिसुन्दर...गजलें हुई हैं।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:48pm

            आदरणीय अजय जी, बधाई सुंदर ग़ज़लों के लिये. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2013 at 1:46pm

बहुत खूब आदरणीय अजय भाईजी.  दोनों ग़ज़लों पर दिल से दाद कुबूल करें .

ग़ज़लों के मिसरों के वज़्न ग़ज़ल के साथ देने का ओबीओ पर आग्रह रहता है. 

सादर

Comment by Abhinav Arun on June 20, 2013 at 10:25pm

बहुत ख़ूब अजय जी -

दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं

लाजवाब शेर हुआ है ग़ज़लों की कामयाबी के लिए बहुत बधाई !!

Comment by Ajay Agyat on June 20, 2013 at 10:22pm
शुक्रिया दोस्तो
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 19, 2013 at 9:35pm

वाह आदरणीय वाह दोनों की दोनों ग़ज़लें अत्यंत मनोहारी हुई हैं, सभी के सभी अशआर जानदार शानदार लाजवाब हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on June 19, 2013 at 5:54pm

आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 
आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना.............

देखो हर सू कैसे मंज़र दिखते हैं
लोगों के हाथों में पत्थर दिखते हैं

.जिंदगी  के फ़लसफ़े बयां करते बहुत ही दमदार गज़लें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service