For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – May 2016 Archive (12)

अपनी क़बा में .....

अपनी क़बा में .....

अहसासों की कभी

हदें नहीं होती

नफ़स और नफ़स के दरमियाँ

ये ज़िंदा रहते हैं

ये तुम्हारा वहम है कि

तुम मुझसे दूर हो

तुम जहां भी हो

मेरी साँसों की हद में हो

तुम कस्तूरी से

मेरी रूह में बसे हो

हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट

परिंदा बन जाती हूँ

तुम से मिलने की

इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ

बंद पलकों में

तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से

रूह जिस्मानी क़बा से

बाहर आ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments

उदास चेहरा ...

उदास चेहरा ...

तुम आये

और मैं तुम्हें

बंद पलकों से

निहारती रही

तुम्हारी हर आहट को

मैं अपने अंदर समेटती रही

वो चुप सा

तुम्हारा उदास चेहरा

मेरी मजबूरी को कचोटता रहा

तुम्हारे हाथों के गुलाब की

इक इक पंखुड़ी

अश्कों में भीगी

मुझपर गिरती रही

मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में

इक शमा सी पिघलती रही

तुम ज़मीं तक

मुझपर झुकते चले गए

बेबस पुकार मुझसे टकराकर

कहीं खला में खो गयी

तुम मेरी लहद में

आ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:49pm — 12 Comments

इक जान हो जाएगी ....

इक जान हो जाएगी ....

बड़ा अज़ीब मंज़र होगा

जब बहार आएगी

हर गुलशन

गुलों की महक से

लबरेज़ होगा

सब कुछ नया नया होगा

हर गुल में

तू मेरा अक्स ढूंढेगी

हर पंखुड़ी में कसमसाती

मैं तेरी उठान देखूँगा

कितना सुखद अहसास होगा

जब मेरी नज़रों के लम्स

तेरे जिस्म से गुफ़्तगू करेंगे

तेरा हिज़ाब

तुझसे अदावत करेगा

तेरे लबों पे

तिलभर हंसी की जुम्बिश…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments

इंतज़ार ....

इंतज़ार ....

ये बादे सबा

आज किसकी सदा लाई है

कुछ कम्पन्न है

कुछ नमी है

कुछ भीगी सी तन्हाई है

शायद ! अधूरे अहसासों ने

ज़हन में करवट ली है

लफ्ज़ लबों की हदों पर

तिश्नगी के अज़ाब में

डूबे नज़र आते हैं

इन साँसों की बेचैनियों में

जाने किस अजनबी का ख़ुलूस

करवटें लेता है

ये मेरी तदब्बुर में

किसके लम्स रक्स करते हैं

कोई तो नाख़ुदा होगा

जो मेरी हयात के सफ़ीने को

साहिल तक ले जाएगा

दबे पाँव आकर

मेरी…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 4:32pm — 16 Comments

फ़रेबी रात …

फ़रेबी  रात …

छोडिये साहिब !

ये तो बेवक्त

बेवजह ही

ज़मीं खराब करते हैं

आप अपनी अंगुली के पोर

इनसे क्यूं खराब करते हैं

ज़माने के दर्द हैं

क्योँ अपनी रातें

हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं

ज़माने की निगाह में

ये नमकीन पानी के अलावा

कुछ भी नहीं

रात की कहानी

ये भोर में गुनगुनायेंगे

आंसू हैं,निर्बल हैं

कुछ दूर तक

आरिजों पे फिसलकर

खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे

हमारे दर्द हैं

हमें ही उठा लेने दीजिये…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments

ख्वाब-ऐ-बशर ...

ख्वाब-ऐ-बशर ...

आज फिर

किसी का चूल्हा

उदास ही

बिन जले सो गया।

आज फिर

सांझ के दामन पे

भूख लिख गया कोई।

आज फिर

पेट की आग

झूठी आशा की बर्फ से

ठंडी कर

सो गया कोई।

आज फिर

कटोरे से

सिक्कों की आवाज़

रूठी रही।

आज फिर

खारा जल

पकी दाढ़ी को

धोता रहा।

आज फिर

निराशा का कफ़न ओढ़े

बिन साँसों के

सो गया कोई।

आज फिर…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments

ज़िंदगी के फ्रेम में ....

ज़िंदगी के फ्रेम में ....

यादें

आज पर भारी

बीते कल की बातें

वर्तमान को अतीत करती

कुछ गहरी कुछ हल्की

धुंधलके में खोई

वो बिछुड़ी मुलाकातें

हाँ ! यही तो हैं यादें

ये भीड़ में तन्हाई का

अहसास कराती हैं

आँखों से अश्कों की

बरसात कराती हैं

सफर की हर चुभन

याद दिलाती हैं

जब भी आती हैं

ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं

अहसासों के शानों पर

ये कहकहे लगाती हैं

ज़हन की तारीकियों में

ये अपना घर बनाती हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments

ये रास्ते ....

कितने थक गए हैं 

ये लम्बे तन्हा रास्ते 

सृजन और संहार की 

इनमें सदियाँ समाई हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...

दूर दूर तक

काली सड़कें

न पीपल न छाँव

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

नीला अम्बर

पड़ गया काला

अब धरा पे फैला धुंआ

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

कंक्ट्रीट के

जंगल फैले

अब दिखता नहीं कुआं

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

हल-बैल का

अब युग बीता

ट्रैक्टर हुआ जवां

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

सांझ के खेले

ढपली मेले

खो गए जाने कहाँ

अखियाँ ढूंढें अपना…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:01pm — 6 Comments

ख़्वाबों के पैराहन से ....

ख़्वाबों के पैराहन से ....

कभी कभी ज़िंदगी

अपने फैसलों पर

खुद पशेमाँ हो जाती है

मुहब्बत के हसीं मंज़र

ग़मों की गर्द में छुप जाते हैं

थरथारते लबों पे

लफ्ज़ कसमसाते हैं

तल्खियां हर कदम राहों में

यादों के नश्तर चुभोती हैं

खबर ही नहीं होती

मौसम पलकों पे ही बदल जाते हैं

चार कदम के फासले

मीलों में बदल जाते हैं

हमदर्दियों के बोल

लावों में तब्दील हो जाते हैं

सांसें अजनबी बन जाती हैं

कोई अपना

कब चुपके से…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 8:27pm — 4 Comments

तन्हा सफ़र ....

तन्हा सफ़र ....

२ २ १ २ / २ १ २ २ /२ २ २ २ / २ १ २

तन्हा सफर और तेरी परछाईयाँ साथ हैं

तुमसे मिली संग मेरे तन्हाईयाँ साथ हैं !!१ !!//

अब तो हमें ज़िंदगी से नफरत सी हो ने लगी

यादें तुम्हारी और वही रुसवाईयाँ साथ हैं !!२!!//



भीगी हुई चांदनी में वो शोला सा इक बदन//

भीगे बदन की ज़हन में अँगड़ाइयाँ साथ हैं !!३!!//

लगने लगे मौसम सभी अब बेगाने से हमें

यादें वही और तेरी रुसवाईयाँ साथ हैं !!४!!//

लगने लगा है अब *हरीफ़…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 3, 2016 at 5:49pm — 6 Comments

जब से पिया गए परदेस ...



जब से पिया गए परदेस ...

प्रेम हीन अब

इस जीवन में

कुछ भी नहीं है शेष

जब से पिया गए परदेस//

नयन घट

सब सूख गए

बिखरे घन से केश

जब से पिया गए परदेस//

दर्पण सूना

हुआ शृंगार से

सूना हिया का देस

जब से पिया गए परदेस//

लगे दंश से

बीते मधुपल

दीप जलें अशेष

जब से पिया गए परदेस//

बिरहन का तो

हर पल सूना

रहे अश्रु न शेष

जब से पिया गए…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service