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Er. Ganesh Jee "Bagi"'s Blog – April 2013 Archive (3)

मर्द // गणेश जी "बागी"

आज फिर उसका मन व्यथित था
हाहाकार कर रहा था हृदय
एक कथित पुरुष में
हैवान साकार हुआ था फिर.. 
फिर हैवानियत जीत गई थी 
नरपिशाच के पंजों में
आ गई थी 
फिर एक नन्ही…
Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2013 at 10:00pm — 36 Comments

तुम कैसे श्रेष्ठ ? // गणेश जी "बागी"

हे पूज्य !

आप ग़लत थे,

मैं सही था |

आप के कहे को

मान दिया था,

अनुचित आदेश को

मान लिया था |

आप पर विश्वास था,

मिला था आशीर्वाद-

एक अफलित आशीर्वाद |

हे पूज्य!

आप ग़लत थे,

मैं सही था |

आपने तोड़ा था विश्वास,

किंचित, मुझे नही मानना था

संकुचित आदेश,

मुझे नही देना था-

अंगूठा,

दिखला देना था-

अंगूठा,



क्या होता ?

नालायक कहलाता !

अल्प काल के…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 8:30pm — 23 Comments

अंतर्द्वंद्व // गणेश जी "बागी"

ठगती है,

बार बार,

अंतरात्मा,

आश्वासनों से,

ठीक हो जाएगा,

सब ठीक हो जाएगा,

एक अंतर्द्वंद्व,

सत्य असत्य,

दिल दिमाग़ के मध्य,

नही डिगेगा,

कभी नही डिगेगा,

चलते जाना है,

सत्य के मार्ग पर,

जो घटित होना है,

हो जाय,

कौन अमर यहाँ,

कोई नही,

कोई भी तो नही,

फिर डर कैसा,

उस अहंकार से,

जो क्षण भंगुर है,

चल हट !

चलने दे,

कार्य पथ पर बढ़ने दे,

वो सामने देख…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 8:00pm — 38 Comments

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