सत्य की राह
होती है अलग,
अलग, अलग लोगों के लिए.
किसी का श्वेत ,
श्याम होता है किसी के लिए .
श्वेत श्याम के झगड़ें में
जो गुम होता है
वह होता है सत्य,
सत्य सार्वभौमिक है,
पर सत्य नहीं हो सकता
सामूहिक .
सत्य निजता मांगता है ,
हरेक का सत्य
तय होता है
निज अनुभूति से.
... नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on March 27, 2014 at 8:32am — 4 Comments
कुत्ते का बच्चा
गया मर,
एड़ियाँ रगड़,
किसे फिकर,
काली चमकती सड़क,,
चलती गाड़ियाँ बेधड़क,
बैठा हाकिम अकड़,
कलफ़ कड़क,
सड़क पर किसका हक़?
क्यों रहा भड़क?
किसके लिए बनी
काली चमकती सड़क?
कुत्ता कितना कुत्ता है
चला आता है,
धुल भरी पगडंडियां
गाँव की
छोड़कर.
.. नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on March 24, 2014 at 4:58pm — 16 Comments
कहो प्रिय , कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ,
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब.
अधरों को कहूँ लाल गुलाब .
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की .
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती .
पर, अपवर्तन का अपना नियम है,
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली…
Added by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 7:00pm — 10 Comments
आ रे कारे बादर
रँग बरसाने आ रे
श्याम खेलें होरी
तू बरसाने आ रे
रँग अलग अलग भर ला
लाल, बैंगनी, पीला
कोई बच ना जाए
सबको कर दे गीला
खुशियों की बारिश में
तू भिंगाने आ रे
इन्द्रधनुष से रँग ला
त्याग उदासी काली
उल्लसित जीवन, डाल
मुख पे उमंग लाली ..
जो उदास है जग में
उन्हें हँसाने आ रे
हाथों में पिचकारी
गाल पे रंग गुलाल
सब मिल खेलें होरी
अंचल धरा का लाल
जीवन में खुशियाँ भर…
Added by Neeraj Neer on March 16, 2014 at 2:04pm — 6 Comments
कैलाश पर शिव लोक में
था सर्वत्र आनंद.
चारो ओर खुश हाली थी
सब प्यार में निमग्न.
खाना पीना था प्रचुर
वसन वासन सब भरपूर.
जंगल था, लताएँ थी
खूब होती थी बरसात,
स्वच्छ वायुमंडल ,
खुली हुई रात.
धीरे धीरे नागरिकों ने
काट डाले जंगल
बांध कर नदियों को
किया खूब अमंगल.
एक बार पड़ गया
बहुत घनघोर अकाल.
चारो ओर मचा
विभत्स हाहाकार.
नाच उठा दिन सबेरे
विकराल काल…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 4, 2014 at 9:10am — 14 Comments
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