“ रात महके तेरे तस्सवुर में
दीद हो जाए तो फिर सहर महके “
“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा
प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |
कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |
“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 30, 2018 at 12:00am — 2 Comments
रात भर महकती रही यादें
लुत्फ़ आया बहुत जुदाई का
विरह से उठा रोग दबा हुआ
पता लेता हूँ अब दवाई का |
सिक्के जेब को काटने लगे
खर्च ने हाल पूछा कमाई का
नमक-मिर्च से मुँह जलाकर
पूछा भाव फिर से मिठाई का |
हर रात सिराहन से शिकायतें
ढिंढोरा कब तलक ढिठाई का
हथेलियाँ-हथेलियों के लिए तड़पी
इश्क ने हाल पूछा रुसवाई का |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Added by somesh kumar on March 25, 2018 at 2:30pm — No Comments
तीसरे माले पर वो करवट बदलते हैं तो खटिया चर्र-चर्र बोलती है |अंगोछा उठाकर पहले पसीना पोंछते है फिर उस से हवा करने लगते हैं |
“साsला पंखा भी ---“ बड़बड़ा कर बैठ जाते हैं और एक साँस में बोतल का शेष पानी गटक जाते हैं
“अब क्या ? अभी तो पूरी रात है |”
भिनभिनाते मच्छर को तड़ाक से मसल देते हैं |
दूसरे माले का टी.वी. सुनाई देता है – “तू मेरा मैं तेरी जाने सारा हिंदुस्तान |”
“बुढ़िया को क्या पड़ी थी पहले जाने की ---“
गला फिर सूखने लगा तो जोर–जोर से खाँसना…
ContinueAdded by somesh kumar on March 20, 2018 at 8:00pm — 9 Comments
रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई
“जी बाबू जी |”
“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”
“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”
“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं
“हम क्या…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2018 at 11:00pm — 8 Comments
आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )
खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा
“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”
“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा
“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा
नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य
“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी
रात को…
ContinueAdded by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:25am — 4 Comments
आखिरी मुलाकात
आखिरी लम्हा
आखिरी मुलाकात का
अथाह प्यास
जमी हुई आवाज़
उबलते अहसास
और दोनों चुप्प !
आतूूर सूरज
पर्दा गिराने को
मंशा थी खेल
और बढ़ाने को
आखिरी दियासलाई
अँधेरा था घुप्प !
सुन्न थे पाँव
कानफोड़ू ताने
दुधिया उदासी पे
लांछन मुस्काने
आ गया सामने
जो रहा छुप्प |
वक्त रुका नहीं
आँसू ढहे नहीं
पत्थर बहा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 14, 2018 at 10:33pm — 6 Comments
खुशियों का बँटवारा
“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा
“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”
और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !
“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा
“एक्सीलेंट!”
“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा
“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 12, 2018 at 11:23pm — 3 Comments
अहमियत
“सुनते हो !” रीमा ने सहमते हुए मोबाईल पर गेम खेल रहे प्रकाश को धीरे से छूकर कहा
“क्या यार ! तुम्हारे चक्कर में मेरा खिलाड़ी मारा गया -----बोलों क्या आफ़त आ गई |” प्रकाश ने झल्लाते हुए कहा
“मौसीं का फ़ोन आया था------नानी सीढ़ियों से गिर गईं हैं |” रीमा ने सहमते हुए कहा
“वेरी बैड ----ज़्यादा चोट तो नहीं आई ---“ प्रकाश ने बिना उसकी तरफ़ देखे गेम में लगे हुए ही कहा
“नहीं !” रीमा चुपचाप बगल में बैठ गई
"सबकी बैंड बजा रखी है मैंने ---मुझसे अच्छा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 11, 2018 at 9:18am — 5 Comments
प्रवासी पीड़ा
शहर पराया गाँव भी छूटा
चाँदी के चंद टुकड़ों ने
हमको लूटा-हमको लूटा-हमको लूटा |
भूख खड़ी थी जब चौखट पे
कदम हमारे निकल पड़े थे
मिल गई रोटी शहर में आकर
पर अपनों का अपनेपन का
हो गया टोटा-हो गया टोटा-हो गया टोटा |
माल कमाया सबने देखा
रात जगे को किसने देखा
मेहमां-गाँव से ना उनको रोका
एक कमरे की ना मुश्किल समझी
दिल का हमको
कह दिया छोटा-कह दिया छोटा-कह दिया छोटा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 8, 2018 at 6:07pm — 2 Comments
आदमी और नदी
पहाड़ों से निकलतीं थीं झूम-झूम कर
खो जाती थीं एक-दुसरे में घूम-घूम कर
विशद् धारा बन जाती थी
एक नदी कहलाती थी
समुंदर में जाकर प्रेम करती सुरूप
हो जाती एकरूप |
आदमी भी कुछ ऐसा था
स्वीकारता दुसरे को
चाहे दूसरा जैसा था
आदमी होना प्रथम था
बाद में ज़मीन-पैसा था |
आदमी का मेल-मिलाप /सभ्यता रचता था
इसी तरह एक राज्य/एक देश बसता था |
बाद में नदी को जरूरत के…
ContinueAdded by somesh kumar on March 7, 2018 at 8:00pm — 3 Comments
खोया बच्चा
हिन्दू घर से खोया बच्चा
माँ मम्मी कह रोया बच्चा
गुरूद्वारे का लंगर छक कर
मस्जिद में जा सोया बच्चा |
गली मोहल्ला ढूंढ रहा था
उसकों घर घर थाने थाने
दीवारें सब हाँफ रहीं थीं
नींव लगी थी उन्हें बचाने |
खुली नींद फिर वो भागा
एक पग में दस डग नापा
थक हार देखी एक बस्ती
निकली चर्च से हँसती अंटी |
“तुम शायद घर भूल गया है !
चलों तुम्हें घर से…
ContinueAdded by somesh kumar on March 4, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
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