शहर और बस्तियाँ घुस आई हैं
जंगल के भीतर
और जंगली बंदर निकल आए हैं
जंगल से शहर में, बस्तियों में....
बंदरों को अब नहीं भाते
जंगल के खट्टे- मीठे, कच्चे-पके फल
उनके जी चढ़ गया है
चिप्स, समोसे, कचोरियों का स्वाद
आदमियों के हाथों से,
दुकानों से , घरों से छिन कर खाने लगे हैं
वे अपने पसंदीदा व्यंजन
इन्सानो को देख जंगल में छुप जाने वाले
शर्मीले बंदर
अब किटकिटाते हैं दाँत
कभी कभी गड़ा भी देते हैं
भंभोड़ लेते हैं अपने पैने दांतों से…
Added by Neeraj Neer on February 4, 2016 at 10:24pm — 14 Comments
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