For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जयनित कुमार मेहता's Blog – February 2016 Archive (5)

सुख़नवर प्रेयसी के रूप के वर्णन में डूबा है (ग़ज़ल)

1222  1222  1222  1222

धरा   है  घूर्णन  में  व्यस्त,  नभ   विषणन  में  डूबा  है

दशा  पर  जग  की, ये  ब्रह्माण्ड  ही  चिंतन  में डूबा है

हर इक शय  स्वार्थ  में आकंठ  इस  उपवन में डूबी है

कली   सौंदर्य   में   डूबी,  भ्रमर   गुंजन   में   डूबा  है

बयां   होगी   सितम  की  दास्तां,  लेकिन  ज़रा  ठहरो

सुख़नवर   प्रेयसी   के   रूप   के   वर्णन  में   डूबा  है

उदर के आग  की  वो  क्या  जलन  महसूस  कर  पाए

जो  चौबीसों…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 24, 2016 at 9:17pm — 18 Comments

शेर-सा, बाघ-सा, तेंदुआ-सा लगा (ग़ज़ल)

212  212  212  212

शेर-सा, बाघ-सा, तेंदुआ-सा लगा

शह्र में हर कोई भागता-सा लगा

अक्स उसने दिखाया मेरा हू-ब-हू

आज कोई मुझे आइना-सा लगा

यूं मुझे ज़ीस्त के तज़्रिबे थे कई

तज़्रिबा इश्क़ का पर नया-सा लगा

क़ामयाबी मुक़द्दर के हाथ आ गई

कोशिशों से कोई ढूंढता-सा लगा

त्यौरियां हुक्मरानों की चढ़ने लगीं

जब भी आम-आदमी खुश ज़रा-सा लगा

जिस्म-ओ-जां एक कब के हुए…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 19, 2016 at 8:59pm — 13 Comments

भीड़ में दुनिया के हम भी खो गए (ग़ज़ल)

2122 2122 212



भीड़ में दुनिया के हम भी खो गए

ख़ुद से जैसे अजनबी-से हो गए



ज़ख़्म-ए-दिल में थे तेरे बाकी निशां

अश्कों के सैलाब वो भी धो गए



आदमीयत होश में आने लगी

आदमी जब शह्र के सब सो गए



काटता हूँ फ़स्ल अम्न-ओ-चैन की

जो कभी पुरखे थे मेरे बो गए



आसमां ने सुन ली मेरी दास्तान

मेघ भी आके दो आंसू रो गए



लौटकर आए नहीं हैं आजतक

इस नगर से उस नगर तक जो गए

========================



जयनित कुमार… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 17, 2016 at 9:35pm — 8 Comments

दिन गुज़रता रहा, रात ढलती रही (ग़ज़ल)

212 212 212 212



दिन गुज़रता रहा, रात ढलती रही

दिल में उम्मीद की शम्अ जलती रही



सोचकर,किस क़दर फ़ासला ये मिटे

रात-दिन ज़िंदगानी पिघलती रही



वाकया शह्र में आम ये हो गया

आदमी मर गया,साँस चलती रही



आदमी, आदमी को चबाता रहा

आदमीयत खड़ी हाथ मलती रही



बेक़ली, बेबसी, बेख़ुदी ना गई

सिर्फ कहने को ही रुत बदलती रही



कर गया था वो पूरी मेरी हर कमी

फिर,कमी उसकी ताउम्र खलती रही



एक गिरते हुए को उठा क्या… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2016 at 8:34pm — 11 Comments

ख़िज़ाओं का नहीं होता दरख़्तों पर असर कोई (ग़ज़ल)

1222 1222 1222 1222



गया है सींचकर जो बाग़-ए-दिल को, इक नज़र कोई

ख़िज़ाओं का नहीं होता दरख़्तों पर असर कोई



दिलों के दरमिया इक़रार कोई हो गया था,पर

न थी उनको ख़बर कोई, नहीं मुझको ख़बर कोई



मुक़द्दर हर किसी पे मेह्रबां होता नहीं यारो

कहीं क़दमों में है मंज़िल, भटकता दर-ब-दर कोई



भरोसा है हमें चारागरी पर हद से भी ज़्यादा

मरीज़-ए-इश्क़ पालेगा न मर्ज़ अब उम्र-भर कोई



सियासत खून पीने की बड़ी शौक़ीन लगती है

छुड़ा पाता ये चस्का खून का ऐ काश अगर… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 2, 2016 at 8:30pm — 23 Comments

Monthly Archives

2024

2022

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service