सुना है मैने वसंत आ गया है। पेडों पे नये पत्ते बौर और आम्रकुजों मे अमराइंया आ गयी है। कोयलें कभी मुंडेर पे तो कभी डालियों पे कुहुकने लगी हैं। विरहणियां सजन के बिना एक बार फिर हुमगने लगी हैं। सखियां हाथों मे मेहंदी लगा के झूला झूलने लगी हैं। कवियों के मन मे भावों के नव पल्लव लहलाहाने लगे हैं। हवाएं इठलाने लगी हैं। घटाएं मचलने लगी है। साजिंदे अपने साज सजाने लगे हैं गवइये कभी राग विरह तो कभी राग सयोंग गाते हुए कभी उठान पे तो कभी सम पे आने लगे हैं। हर तरफ लोग हर्षों उल्लस मनाने लगे है। ऐसा ही सब…
ContinueAdded by MUKESH SRIVASTAVA on February 11, 2014 at 12:00pm — 4 Comments
परती धरती और पहली बारिश
बारिश की हल्की हल्की बूंदो के गिरते ही लगा बरसों की परती पडी धरती थरथरा उठी हो। माटी की पोर पोर से भीनी भीनी सुगंध चारों ओर अद्रष्य रुप से व्याप्त हो गयी थी। लॉन से आ रही हरसिंगार, मोगरा, गुड़हल और चमेली की खुषबू को संध्या अपने नथूनों में ही नही महसूस कर रही थी बल्कि अपनी संदीली काया के रोम रोम में सिहरन सा महसूस कर रही थी। बेहद तपन के बाद बारिष के मौसम की तरह वह अपने अंदर आये इस बदलाव से वह अंजान नही थी। पर उम्र के इस…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 10, 2014 at 2:00pm — 1 Comment
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