For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Usha Choudhary Sawhney 's Blog – February 2015 Archive (4)

हमको हमीं से छुपाता कौन है -- डॉ o उषा चौधरी साहनी

सुनते आये हैं, सारी नज़ाकत 

कायनात को हम नारियों से मिली है ,

बीर बहूटी को मखमल ,

गुलाब को लाली, हमीं से मिली है ,

कायनात खुद कहीं-कहीं बेइंतहा सख्त है ,

चट्टान है, आंधी है , धूल है , तूफ़ान है,

फिर भी गुलाब हैं, तितलियाँ हैं, चाँद है,

चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.

ये कठोर कायनात की ही करामात है ,

हमारी मासूमियत पर रोज़ ये ग्रहण लगाता कौन है.

हमारी मासूमियत हमसे चुराता कौन है,

बचपन से हमको हरदम डराता कौन है,

ये चेहरे पे…

Continue

Added by Usha Choudhary Sawhney on February 24, 2015 at 10:45am — 18 Comments

कौन कब किसको रोक पाता है -- डॉo उषा चौधरी साहनी

 
न जाने ऐसा क्यों लगता है , 
किसी एक पल कि सबकुछ 
अपना है, अपने हाथों में है, 
बस , हाथ उठाऊं और ले लूँ , 
समेट लूँ , अपनी बाँहों  में ,
रख लूँ ,सहेज कर अपने पास । 
कितनी खुशियाँ हैं दुनियाँ में , 
सब मेरे लिए , कितनी अपनी हैं ,
पर, दूसरे ही क्षण लगता है…
Continue

Added by Usha Choudhary Sawhney on February 22, 2015 at 9:35am — 9 Comments

कह गए थे तुम वापस आओगे-- डॉ o उषा चौधरी साहनी

कह कर गए थे तुम

आओगे वापस ,

जरूर आओगे ।

आस में तुम्हारी ,

लगे युग बीत गए जैसे ,

पर न आये तुम ,

न आये तुम्हारे खत ,

ना ही कोई संदेश ,

कहाँ खो गए तुम ,

भटक गए किस देश ?

जिन राहों पर दूर ,

बहुत दूर तक , चले थे ,

खोये , इक दूसरे में हम,

उन्हें, अब ये आँखें तकती हैं,

ढूंढती हैं तुम्हें , शायद कभी

लौटों तुम उन पर ढूंढते हुये

कि तुम्हारा भी

कुछ रह गया वहां पर ,

कुछ खो गया वहां पर ,

और मैं पा लूँ तुम्हें… Continue

Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments

एक सपनों की दुनियाँ में ---- डॉ ० उषा चौधरी साहनी

यूँ ही बस यूँ ही लगता है , 
कभी इस दुनियाँ से निकल जाऊं , 
दूर  बहुत दूर चली जाऊं , 
किसी और दूसरी दुनियाँ में खो जाऊं, 
सपनों  दुनियाँ में चली जाऊं , 
आँखें मूँद लूँ ,  सपने देखूं , 
खूब ढेर  से  सपने देखूं , 
वो चाहे झूठे  ही क्यों न हों , 
कितने ही झूठे , पर देखूं , 
हँसू , खुद पर हँसू , इतराऊँ , 
मुस्कुराऊँ , धीरे से मुस्कुराऊँ, 
अपने में ही  खो जाऊं…
Continue

Added by Usha Choudhary Sawhney on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service