1222 1222 1222 1222
धरा है घूर्णन में व्यस्त, नभ विषणन में डूबा है
दशा पर जग की, ये ब्रह्माण्ड ही चिंतन में डूबा है
हर इक शय स्वार्थ में आकंठ इस उपवन में डूबी है
कली सौंदर्य में डूबी, भ्रमर गुंजन में डूबा है
बयां होगी सितम की दास्तां, लेकिन ज़रा ठहरो
सुख़नवर प्रेयसी के रूप के वर्णन में डूबा है
उदर के आग की वो क्या जलन महसूस कर पाए
जो चौबीसों…
Added by जयनित कुमार मेहता on February 24, 2016 at 9:17pm — 18 Comments
212 212 212 212
जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा
पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं
यूँ बदी अपना खेमा बदलती रही
अब किसी के लिये कुछ बुरा ही नहीं
इन ख़ुदाओं को देखा तो ऐसा लगा
इस जहाँ में कहीं अब ख़ुदा ही नहीं
छोड़ दी जब गली, नक्श भी मिट गये
चाहतें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 24, 2016 at 10:00am — 26 Comments
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