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कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा
  • patiala
  • India
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कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Blog

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह..!!!

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह ,
ना सच को दिखा आईने की तरह ।

ना पकड इक साख को उल्लू की मानिंद ,
वक़्त-ए-हिसाब बैठ डालों पर परिंदों की तरह ।

ना उलझा खुद को रिश्तों की जंजीरों में ,
कर ले मद-होश अपने को रिन्दों की तरह ।

ना कर हलकान खुद को ,हर तरफ है मायूसी ,
हो जा बे-दिल बे-मुरव्वत परिंदों की तरह ।

गर मिलती है इज्ज़त यहाँ ,मरने के बाद ,
फिर ‘कमलेश’क्यों जीना जिन्दों की तरह ॥

Posted on October 25, 2010 at 10:17pm — 4 Comments

किससे करूं मै बात ...!!!

किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
जिनसे की है मुहब्बत बे-हिसाब की

दीखते नही वो दिन में ,रातें भी स्याह हुई
हुई मद्धम रोशनाई मेरी वफ़ा-ए-महताब की

किससे गिला करूं कहाँ तहरीर दूं ?
कोई ढूंढ लाये तस्वीर मेरे ख्वाब की

बिखर जाएगी शर्मो -हया इस जहाँ में
जो बरसों से हिफाजत में है हिजाब की

Posted on September 24, 2010 at 10:00pm — 2 Comments

मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की...

मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की

मन का था भ्रम या हद थी प्यार की ।



क्यूँ नहीं समझता ये दिल अपनी हदों कों

किया सब जो थी मेरी कूवत अख्तियार की।



जिद में क्यूँ कर बैठा तू ऐसी खता

कर दी बदनामी खुद ही अपने प्यार की ।



सुर्खरू हो जाता है तन-मन तुझे देख कर

सुध-बुध नही रही इसे अब संसार की ।



हर तमन्ना में बस तमन्ना है तेरे दीद की

कयामत की हद बना रखी है इंतजार की ।



जमाना चाहे जितने कांटे बिछा दे राहों में

'कमलेश 'जीत आखिर… Continue

Posted on September 22, 2010 at 7:30pm — 2 Comments

,हलचल मचाना चाहता हूँ ! ...

सम्वेदनाओं के शून्य को ,जगाना चाहता हूँ !

विचारो के उत्तेज से ,हलचल मचाना चाहता हूँ !



मर्म को पहचान, चोट करारी होनी चाहिए ,

बंद आँखों को नींद से ,जगाना चाहता हूँ !

…!!

खून की गर्म धारा ,बह रही ही जिस्म में ,

देश-भक्ति का इसमें ,उबाल लाना चाहता हूँ !



जज्बों में ना कमी हो तो ,समन्दर भी छोटा है ,

,आसमां में अपना तिरंगा फहराना चाहता हूँ !



कमी नही इस देश में, बौद्धिक शारीरिक बल की ,

‘कमलेश’ इसे विश्व शीर्ष पर पहुंचाना चाहता हूँ…
Continue

Posted on July 6, 2010 at 11:03pm — 1 Comment

Comment Wall (8 comments)

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At 11:43am on February 8, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 8:07pm on June 20, 2010, asha pandey ojha said…
कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥

जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥
very tochy & emotional rhyme ...Really superb
At 8:06pm on June 20, 2010, asha pandey ojha said…
Your most welcome Kamlesh ji
At 10:16am on June 11, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
Kamlesh Bhaiya Pranam, aapney apani rachnao par daley waley comments ko moderate kar rakhaa hai, ab mujhey pata hi nahi chal paa raha hai ki mainey aap ki is rachna par comments kiya hai ki nahi,
At 10:04pm on June 9, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 9:55pm on June 8, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 6:24pm on June 8, 2010, Ratnesh Raman Pathak said…

At 5:34pm on June 8, 2010, Admin said…

 
 
 

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