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‘पूजा, कितनी बार कहा है तुम्हें कि अपने काम और पढ़ाई-लिखाई से मतलब रखा करो, लड़कों से ज्यादा घुला-मिला, ज्यादा हँसी-मज़ाक मत किया करो, ये सही नहीं है, तुम मेरी बात सुनती क्यों नहीं हो?’
‘मैं कहाँ किसी लड़के से ज्यादा हँसी-मज़ाक करती हूँ या घुलती-मिलती हूँ?’
‘मुझे सब दिखता है, अंधी नहीं हूँ मैं. एक सप्ताह से तुम्हारी पढाई-लिखाई बंद है, खाना-पीना तक ठीक से नहीं कर रही हो. 10 दिनों के लिए प्रवीण आया है हमारे घर और तुम अपना सारा…
Posted on July 30, 2015 at 3:48pm — 4 Comments
रोज की तरह आज भी मैं उसे पढ़ाने उसके घर पहुँचा और वो भी आदतन पहले ही दरवाज़े के पास खड़ा मेरा ही इंतज़ार कर रहा था. उसने आनन-फ़ानन में दरवाज़ा खोला और बिना दरवाज़ा बंद किए ही पुस्तकें लाने अन्दर की ओर भागा. वो यही कोई 6-7 साल का बहुत ही प्यारा और कुशाग्र बुद्धि का बालक था. उसका नाम दर्शन था. मैं उसे जो भी पढ़ता था, वो सब बड़े गौर से सुनता और सहेज कर रखता था. प्रश्नों की खान था वो बच्चा और उसकी जिज्ञासाएँ कभी शांत नहीं होतीं थीं और यही उसकी सबसे बड़ी ख़ासियत थी कि वो आसानी से संतुष्ट नहीं होता…
ContinuePosted on July 24, 2015 at 9:00pm — 9 Comments
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Comment Wall (3 comments)
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प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
Dear Prashant jee. I admire your respect for this website, rest assured, I never intended to intimidate you. The grammatical mistake will be rectified.
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
स्वागत अभिनन्दन
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प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
Dear Mr Prashant
You better either advise the grammatically correct sentence or just mind your own business and try to learn something from here. By the ways, I am a post graduate in Anthropological Linguistics from Punjabi University (1983). I am also well conversant with more than five languages; Persian, Arabic, German, Russian and Hebrew, (except Hindi, Punjabi, Seraiki, English, Urdu and Sanskrit).
However, being a lover of poetry, I would like to read your Ghazals.
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Yograj Prabhakar
Editor in chief