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"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 26

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 26  में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है.

धज्जी-धज्जी  है  धरा,  दिखे  दग्ध  भूगोल ।

किन्तु मध्य से लुप्त है, अब पानी  अनमोल ॥

गर्मी बढ़ने के साथ ही सूखे का सितम बढ़ने लगता है. पानी की किल्लत से लोगों का जीना दूभर हो जाता है. एक ओर भरी गर्मी में लगातार बढ़ते जाते तापमान के कारण सूखते जाते जल-संग्रह क्षेत्र हैं तो दूसरी ओर गाँव-समाज के निरुपाय लोगों को मुँह चिढ़ाती मिनरल वॉटर कंपनियों पर पानी की किल्लत का कोई असर नहीं दिखता. यह असामनता अमानवीय ही नहीं राक्षसी है. आम लोगों के हक का पानी इन वॉटर कम्पनियों को धड़ल्ले से मिल रहा है. धरती की छाती चिथड़े हुए दीखती है. लोगों में पानी को लेकर अफ़रा-तफ़री है परन्तु इन कम्पनियों का धंधा जोरों पर है. कैसे ? कब गर्मी के शुरु होते ही पानी के लिए हाहाकार मचाने की विवशता खत्म होगी ?

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी.. और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओबीओ प्रबंधन द्वारा लिए गये निर्णय के अनुसार छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों पर आधारित काव्य-रचनाओं के आधार पर होगा.  कृपया इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों के साथ सम्बंधित छंद का नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त विवरण अवश्य उल्लेख करें. ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.

 

नोट :-
(1) 16 मई 2013 तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 17 मई 2013 दिन शुक्रवार से 19 मई 2013 दिन रविवार तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा.

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें.

विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

अति आवश्यक सूचना :- ओबीओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-26, तीन दिनों तक चलेगा. आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन रचनाएँ अर्थात प्रति दिन एक रचना स्वीकार की जा सकेगी, ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना न कि एक ही दिन में तीन रचनाएँ. नियम विरुद्ध या निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी.

मंच संचालक

सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय अरुण निगम जी सादर,

      सराहना एवं प्रोत्साहन हेतु आपका आभारी हूँ. धन्यवाद.

आयोजन में मेरी द्वितीय प्रस्तुति में एक कुंडलिया प्रस्तुत कर रहा हूँ 

{छः पदों का छंद जिसके पहले दो पद दोहे के तथा शेष रोले के छंद में होते हैं.
छंद का पहला और अंतिम शब्द समान}



वसुधा नीरस हो रही, नहीं दिखे है नीर 
पशु जन खग सब त्रस्त हैं, बढ़ती जाती पीर
बढ़ती जाती पीर, सूखते नादिया पोखर 
भटकें ले जल पात्र, भूल सब पत्ते चोसर 
सूखे सूखे कंठ, विकल से दिखते बहुधा 
नैनन बहता नीर, देख के दरकी वसुधा

गागर लेकर हाथ में, चलता मीलों मील 
सोचे बालक हर कदम, कहाँ मिलेगी झील 
कहाँ मिलेगी झील, हर तरफ दिखता बंजर 
नहीं वृक्ष की छाँव, भयानक है ये मंज़र
सूखी बगिया देख, छलकता मन का सागर 
बहता नैनन नीर, मगर खाली है गागर

संदीप पटेल "दीप"

bऔत सुन्दर कुंडलिया भाई संदीप पटेल जी, हार्दिक बधाई स्वीकारे -

गागर लेकर हाथ में, चलता मीलों मील 
सोचे बालक हर कदम, कहाँ मिलेगी झील-  बहुत खूब 

आदरणीय लक्षमन सर जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना सर आँखों
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
आपका बहुत बहुत आभार

प्रिय संदीप पटेल जी 

बहुत सुन्दर कुंडलिया छंद 

दोनों ही एक से बढ़ कर एक हैं .......चित्रानुरूप और बहुत सुन्दर.

हार्दिक बधाई 

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 

आपकी इस सराहना ने कलम को बल दिया है 

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका 

गागर लेकर हाथ में, चलता मीलों मील 
सोचे बालक हर कदम, कहाँ मिलेगी झील 
कहाँ मिलेगी झील, हर तरफ दिखता बंजर 
नहीं वृक्ष की छाँव, भयानक है ये मंज़र
सूखी बगिया देख, छलकता मन का सागर 
बहता नैनन नीर, मगर खाली है गागर.

अद्भुत ! बहुत सुन्दर ढंग से प्रदत्त चित्र परिभाषित हुआ है.  बहुत बहुत बधाई..

यह कुण्डलिया एक सटीक उदाहरण सदृश है कि शब्द-चित्र कैसे होने चाहिये.. .

पहली कुण्डलिया भी सुगढ हुई है.

बधाई स्वीकारें आदरणीय भाईजी.. .

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

आपकी इस तरह प्रतिक्रिया पाकर मन ख़ुशी से झूम उठा है

लेखन सार्थक हुआ

ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका  

  दोनों ही कुण्डलिया बहुत भाव पूर्ण लिखी हैं अति सुन्दर हार्दिक बधाई आपको| 

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम 

उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

आदरणीय संदीप जी सादर, वाह! अब आया मजा, अब छंद चित्र अनुरूप भी हैं और भाव तो बस मुग्ध कर रहे है. दोनों ही छंद बहुत बढ़िया रचे हैं. सादर बधाई स्वीकारें, प्रथम छंद में एक टंकन त्रुटी हो गयी है,उसे सुधार लें.

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना और उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

आपने सही इंगित किया है 

प्रथम कुण्डलिया में 

चौसर होना चाहिए था 

इसके लिए पुनः आभार आपका 

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