For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 40 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !
 
दिनांक 16 अगस्त 2014 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 40 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इस बार प्रस्तुतियों के लिए पाँच छन्दों का चयन हुआ था.

यथा, दोहा, कुण्डलिया, चौपई, कामरूप तथा उल्लाला

एक चौपई छन्द को छोड़ कर अन्य चार छन्दों में प्रस्तुतियाँ आयीं.

इस बार भी छन्दोत्सव में प्रबन्धन और विशेष रूप से कार्यकारिणी के कई सदस्यों की अपेक्षित उपस्थिति नहीं बन सकी अथवा बाधित रही.

कुल मिला कर 19 रचनाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से इस आयोजन को समृद्ध किया. इसके अलावे कई सदस्य पाठक के तौर पर भी अपनी उपस्थिति जताते रहे. उनके प्रति मैं हार्दिक रूप से आभार व्यक्त करता हूँ.

समस्त रचनाओं का श्रमसाध्य संकलन डॉ. प्राची सिंह ने किया है. मैं आपके इस उदार और स्वयंमान्य सहयोग के लिए आपका हृद्यतल से आभारी हूँ.

छंद के विधानों के पूर्व प्रस्तुत होने के कारण स्वयं की परीक्षा करना सहज और सरल हो जाता है. इसके बावज़ूद कतिपय रचनाओं में कुछ वैधानिक तो कतिपय रचनाओं में कुछ व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियाँ दिखीं.

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

*******************************

 

क्रम संख्या

रचनाकार

रचना

 

 

 

1

सौरभ पाण्डेय जी

दोहा छन्द
========
अंकुर फूटा ओजवत, राष्ट्र हुआ कृतकृत्य 
ऊर्जस्वी मन कर रहा, लिये तिरंगा नृत्य 

अगर भरोसा चाहिये, हो स्वराष्ट्र का भान 
सक्षम नन्हें हाथ कर, दे दो राष्ट्र कमान 
************

कामरूप छन्द
=========
’परतंत्रता  के  वर्ष  बीते’  गूँजता  जयघोष । 
दुर्भाग्य था वो दौर सारा क्या-किसे दें दोष ॥
’माँ भारती’ की  अर्चना में लोग  जायें  डूब 
हाथों तिरंगा  ले बढ़ें अब कर्म-पथ पर खूब !!

उत्साह से हो दिल लबालब, पर प्रदर्शन व्यर्थ । 
हर एक बच्चा  जान जाये  राष्ट्र का अन्वर्थ ॥
संभव सभी कुछ है अगर हम कर सकें ये काम 
’भारत हमारा’   भाव कर दें  पीढ़ियों के नाम !!
************

कुण्डलिया छन्द:
==========
बेबस थे पल चुप सदा, घड़ियाँ थीं बेजान 
मन से मन था हारता, आँखें थी वीरान 
आँखें थी वीरान, लुभाती थी आज़ादी 
दिन संवेदनहीन, रात अधिनायकवादी 
प्रभाहीन था दौर, तभी खुल जागा साहस 
लिये तिरंगा हाथ, नहीं था अब वो बेबस 

होना था जो हो चुका, कितना पीटें ढोल 
विगत अगर संबल सदा, यार भविष्यत तोल 
यार भविष्यत तोल, लिए आँखों में तारे 
उम्मीदों की शक्ति, मूर्त हों सपने सारे 
उसपर दे उत्साह, तिरंगा भाव सलोना 
बढ़ जा प्यारे, हिन्द, विश्व में अव्वल होना 
************

 

 

 

2

आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

दोहा ............................

 

दीदी  राखी   बाँधकर,  देती  आशीर्वाद । (संशोधित)

मन से देश गुलाम हैं, करना तुम आज़ाद॥

 

नेता अफसर लूटते, जनता हुई फकीर ।                        

भूखे नंगों में दिखे, भारत की तस्वीर ॥               

                     

भूख अशिक्षा व्याधि का, कैसे करें इलाज।              

शायद इसकी खोज में, निकला है ज़ाँबाज॥(संशोधित)               

 

पथरीली राहें मगर , सपने नये सजाय ।             

लिए तिरंगा हाथ में, कदम बढ़ाता जाय ॥

 

देश  प्रेम, उत्साह जो, बच्चों  में है  आज।                   

हम सब के दिल में रहे, तब हो सही सुराज॥


 

 

 

 

3

आ० डॉ० गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ जी

कुण्‍डलिया छंद

1

लिए तिरंगा हाथ में, बालक हुआ अधीर।

दौड़ पड़ा ले कर उसे, जैसे हो शमशीर।

जैसे हो शमशीर, जीत लेगा वह दुनिया।

लिए उमंग अपार, बदल देगा वह दुनिया। (संशोधित)

कह ‘आकुल’ कविराय, देख कर रंग बिरंगा।

दौड़ा नंगे पाँव, हाथ में लिए तिरंगा।

2

छूते मंजिल को वही, मतवाले रणधीर।

हाथ तिरंगा थाम के, करते जो प्रण वीर।

करते जो प्रण वीर, युगंधर कब रुकते हैं।

मात, पिता, गुरु और राष्‍ट्र ॠण कब चुकते हैं।

कंटकीर्ण हो ऱाह, हौसलों के बल बूते।

रुकते ना जो पाँव, वही मंजिल को छूते।

3

पीछे मुड़ ना देखते, बालक-वीर-मतंग।

ध्‍येय लिए ही निकलते, पैगम्‍बर पीर निहंग।

पैगम्‍बर पीर निहंग, धर्म का पाठ पढ़ाते।

राष्‍ट्रगीत औ गान, राष्‍ट्र का मान बढ़ाते।

ध्‍वज का हो सम्‍मान, सभी सुख उससे पीछे।

नहीं समय-वय-काल, देखते मुड़ कर पीछे।

 

 

 

 

4

आ० अविनाश एस० बागडे जी

(दोहे )

====
लोकतंत्र  नवजात  है ,पथरीली  है  राह।
कदमो से है बंधा हुआ ,देख गजब उत्साह।।


श्याम-धवल परिवेश ये, चाहे हो संगीन।
हाथों में लहरा रही , राष्ट्र-ध्वजा रंगीन।।


बीते कल ने जो दिया ,उत्सर्जित कर प्राण। 
कल के हाथों में सकल ,दिखता  है कल्याण।।

.

लिए तिरंगा हाथ में , देता ये सन्देश। 

उम्र न बाधक है कहीं ,चलो बचाएं देश।।

.

चाहे लख हो कालिमा , रहे कटीली राह। 

जोश लगन मन में रहे ,और देश की चाह।।

 

 

 

 

5

आ० अशोक कुमार रक्ताले जी

दोहा छंद !

 

नौनिहाल अब देश के, भरने लगे उड़ान |
नया-नया कल देखना, होगा हिन्दुस्तान ||

 

देश प्रगति उत्थान की, होती है जब चाह |

अद्भुत होता है वहां, हर मन में उत्साह ||

 

सबको अपनाने चला, नन्हा नंगे पैर |

भुला द्वेष की भावना, आपस का सब बैर ||

 

राष्ट्र ध्वजा का कम न हो, लेश मात्र सम्मान |
नन्हे से छूटे न ध्वज, रखना इतना ध्यान ||

 

राष्ट्र ध्वजा फहरा रही, भारत माँ की शान |

गूंज रहे हर ओर अब, राष्ट्र भक्ति के गान ||

 

 

 

 

6

आ० रमेश कुमार चौहान जी

प्रथम प्रस्तुति

दोहा


नन्हा बालक ध्वज को, लेकर अपने हाथ ।
दौड़ रहा है हर्ष हो, हर्षित उसके माथ ।।

भारत स्वतंत्र आज है, इसका यही प्रमाण ।
राष्ट्र प्रेम है पल्लवित, जन मन एक समान ।।

चाहे आधा नग्न हो, चाहे नंगा पैर ।
पीड़ा मुखरित है नही, मना रहा वह खैर ।।

आजादी के अर्थ को, जाने क्या नादान ।
खुशी उसे चाहिये, और नही कुछ भान ।।

बालक के उत्साह को, समझ रहें हैं आप ।
देश प्रेम की भावना, मेटे हर संताप ।।

कुण्ड़लिया


झंड़ा अपने देश का, आन बान है शान ।
दांव लगा कर प्राण को, रखना इसका मान ।।
रखना इसका मान, ज्ञान जो हमें सिखावे ।
प्रतिक शांति का श्वेत, हरा हरियाली लावे ।।
कहता अशोक चक्र, देश हो सदा अखण्ड़ा ।
केसरिया का त्याग, विश्व फैलाये झंड़ा ।।

 

द्वितीय प्रस्तुति

कामरूप छंद

झंड़ा तिरंगा, हाथ धरकर, बालक लहराय ।
ये मनोहारी, चित्र प्यारी, देख मन को भाय ।।
बालक विचारे, खेल सारे, लगते मुझे फेल ।
गिरने न पावे, दौड़ जावे, ध्वज का यह खेल ।।

झंड़ा पुकारे, ध्वज हूॅ मै, तुम्हारा अभिमान ।
केवल प्रतिक नही, देश का मैं, हूॅ आत्म सम्मान ।।
इसको बचाना, वीर तुम अब, निज प्राण के तुल्य।
मत करो कोई, काम ऐसा, गिरे मेरा मूल्य ।।

उल्लाला छंद

आजादी का पर्व यह, सब पर्वो से है  बड़ा ।
शहिदों के बलिदान से, देश हमारा है खड़ा ।।

अंग्रेजो से जो लड़े, सीर बांध करके कफन ।
किये मजबूर छोड़ने, सह कर उनके हर दमन ।।

रहे अंग्रेज लक्ष्य तब, निकालना था देश से ।
अभी लक्ष्य अंग्रेजियत, निकालना दिल वेश से।

सुराज भारत आपसे, सद्चरित्र है चाहता ।
छोड़ो भ्रष्टाचार को, विकास पथ यह काटता ।।

काम नही सरकार का, गढ़ना चरित्र देश में ।
खास आम को चाहिये, गढ़ना हर परिवेश में ।।

 

 

 

 

7

आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी

कामरूप छंद

मन देखता है मुग्ध इस नव चरण-तल की छांह

पांव छोटे से नंगे मृदुल काँटों भरी राह

लाल वसुधा का चोप अद्भुत अंतस में अगाह

जन्म-भूमि जननि  का महकता  है वत्सल उछाह

 

धुन है लगन गति  रवानी है  संकल्पयुत चाल

इस धरा मानस पर तैरता यह शावक मराल

राष्ट्र ध्वज इक कर दूजे सूत मुठ्ठी बंधा हाथ

तरणि वात मधुर सुरभित स्वप्न कामना का साथ

 

बालक देश का कौपीन तक का नही निस्तार

चला एकाकी बाल हरि सा  पीत अम्बर धार

या वीर वामन बन फिर बढ़ा निज काया कलाप

एकदा फिर से तू लोक त्रय को पदों से नाप

(संशोधित रचना )

द्वितीय प्रस्तुति

दोहा

माँ का गौरव है चपल तू भारत का लाल
थिरकन तेरी देखकर सारा देश निहाल

.
झंडा ऊंचा ही रहे ऊंची इसकी शान
यही बताता है हमें भारत देश महान

.
पथ पथरीला है अगर तो मन है फौलाद
सक्षमता प्रतिमूर्ति है भारत की औलाद

.

मिले लंगोटी ना सही मन है परम स्वतंत्र
लोकतंत्र की भावना है जीवन का मंत्र

.

माता कहती वीर तू जग सारा ले घूम
फिर तेरे लोहित चरण को मै लूंगी चूम

 

 

 

8

आ० सीमा हरि शर्मा जी

दोहे

 

रोको मत कोई मुझे, परचम मेरे हाथ l

फहराऊँगा मैं ध्वजा, आओ मेरे साथ ll  (संशोधित)

--

भेदूंगा अभिमन्युं सा, चक्र-व्यूह मैं आजl

बेच रहे जो देश को, छीनूँ उनके ताजll  (संशोधित)

--

आजादी आई भले, आम आदमी दूर । (संशोधित)

सबने अपने हित यहाँ, साधे हैं भरपूर ll

--

बड़े बड़ों ने कर दिया,देश आज बेहाल l

उत्तर पहले दो हमें,बच्चे करें सवाल ll

--

समझाऊंगा मैं तुम्हें, आजादी का अर्थ l

पल भर भी बीते नहीं, समय हमारा व्यर्थ ll

 

 

 

 

9

आ० शिज्जू शकूर जी

दौड़े बालक पंक पर, मन में ले उत्साह।

देशप्रेम की भावना, दिल कहता है वाह।।

 

देशप्रेम ध्वज दीनता, कैसा अद्भुत मेल।

देशप्रेम अब बन गया, बच्चों का ही खेल।।

 

एक वर्ष में एक दिन, आता सबको याद।

भारत अपना देश है, भारत है आज़ाद।।

 

सबकी है स्वाधीनता, सबका है अधिकार।

कहता बच्चा देश का, ये अपना त्यौहार।।

 

 

 

 

10

आ० छाया शुक्ला जी

दोहा - छंद 

केशरिया उत्साह भरे, श्वेत शान्ति बरसाय |
हरा हरीतिमा से भरे, अति आनंद बढाय ||1||


पताका देख मुदित मन, अति गर्व भर जाय |
संकल्पित हो रहा ह्रदय, वन्दे मातरम गाय ||2||

 

इसी तिरंगे पर सदा, अर्पित मेरे प्राण |
जय माँ की जय जय करूं, दे दूं अपनी जान ||3||

देख तिरंगा बढ़ गया, बालक का उत्साह |
लगा पंख उड़ने लगा, हद पर बेपरवाह ||4||

 

 

 

 

11

आ० सरिता भाटिया जी

दोहा छंद :--

श्वेत, हरा औ केसरी, भारत माँ की शान 
आन, बान यह देश की, बसी इसी में जान ||


हाथ में तिरंगा लिए , निकला है नादान 
मैं किसी से कम नही, दूंगा मैं बलिदान ||


लहराता झंडा भरे , मन में नई उमंग 
बच्चा भागा जा रहा ,लिए प्रेम के रंग ||

देश प्रेम की भावना, लेगी जब आकार 
दूर हटेगी दीनता , सपने हों साकार ||

ध्वजा हाथ में देश की, मन में है विश्वास 
कामयाब होंगें अभी, पूरी होगी आस ||

कुण्डलिया :--

बच्चा वो नादान है, लेकिन मन में चाह 
झंडा लेकर हाथ में, निकला अपनी राह |
निकला अपनी राह, रहे ना काम अधूरा 
देकर वो बलिदान, करेगा सपना पूरा 
बढ़ता है निष्काम , राह हो चाहे कच्चा 
हिम्मत है फौलाद,समझ उसे न बच्चा ||

 

 

 

 

12

आ० सत्यनारायण सिंह जी

प्रथम प्रस्तुति

 

तन मन सुकोमल, अंग श्यामल, मन अडिग विश्वास।  (संशोधित)
द्वय चल पड़े पग, जीतने जग, मन भरे उल्लास ।। (संशोधित)
मन बाल चंगा, ले तिरंगा, वस्त्र धारे पीत।
है गा रहा मन, गर्व से सुन, भारती के गीत।१।
   

हो अरि अचम्भित, मन न दम्भित, देख तेरी शान।
सच्चे सिपाही, देश के तुम, वीरता की खान।।
माँ भारती के, लाल तुझ पे, देश को है  गर्व।
शुभ कामनाएँ, औ दुवाएँ, दे रहा यह पर्व।२।
  

मन आज रंगा, ध्वज तिरंगा, दे रहा उपदेश।
हो शुभ दिवाली, और  होली,  बुद्ध  का संदेश।।
मन बैर बिसरे, आज निखरे, ईद जैसा प्यार।
माँ भारती  का, है अनोखा, यह शुभग उपहार।३।

 

द्वितीय प्रस्तुति

 

मान तिरंगा देश का, है अनुपम वरदान।  (संशोधित)

याद दिलाता है हमें, वीरों का बलिदान।।

वीरों का बलिदान, व्यर्थ ना जाने पाए।

सदा रहे यह भान, शान पर आँच न आए।।

पुलकित है नव गात, देख कर रंग बिरंगा।

भारत की पहचान, देश का मान तिरंगा ॥१॥ (संशोधित)

----------------------------------------------------

लिया आज प्रण बाल ने, हाथ तिरंगा थाम।
ऊँचा अपने देश का, आज करूँगा नाम।१।  (संशोधित)
वीर सपूतों से सजी, मात भारती गोद।
देख जोश निज लाल का, होता माँ को मोद।२। (संशोधित)

भारत माँ से है मिली, देश भक्ति सौगात।

याद दिलाती है सदा, दुश्मन को औकात।३।

भेद भाव मन ना छुए, जाँत पाँत से दूर।

सदा अकिंचन बाल मन, निज मस्ती में चूर।४।

बढे तिरंगा हाथ ले, वीर बाल के पैर ।
देश प्रेम मन में जगा, अब ना अरि की खैर।५। (संशोधित)

 

 

 

13

आ० गिरिराज भंडारी जी

प्रथम प्रस्तुति

दोहे

****

छोटे कर हैं, क्या हुआ , काम बड़ा है देख

लिये तिरंगा लिख रहा , देश प्रेम आलेख

 

चाहे रस्ता हो कठिन , मगर इरादा नेक  

रुकता कब है राह में, बाधा  रहे  अनेक  

 

लज्जित लगता भाग्य भी, अध नंगे को देख (संशोधित)

सोचें, दोष समाज का, या विधिना का लेख    

 

बच्चे से ही मांगिये , राष्ट्र प्रेम की भीख

या फिर गुरु ही मान कर, कभी आइये सीख

 

आज़ादी से तुम कहो , कैसे रख लें आस

आज़ादी का जब हमें , रहा नहीं  विश्वास

 

बरस गये सड़सठ मगर , जनता का ये हाल

कोई भूखा मर रहा , कोई माला माल  

 

द्वितीय प्रस्तुति

काम रूप छंद

 

क्या  खोजता  है , दौड़ता  ये , ले  तिरंगा  हाथ

क्यों है अकेला, इस खुशी में, क्या मिलेगा साथ

क्या  मर चुकी है , भावनाएं , मर चुकी हर बात

क्या यों भटकता, ही रहेगा, तिफ्ल ये दिन रात  (संशोधित)

  

हैं पाँव  नंगे, जिस्म  आधा, ढँक  सका है  वस्त्र

उत्साह  लेकिन, कम कहाँ है, बस यही है अस्त्र

कुछ राह भी तो, है कठिन  सा, कीच चारों ओर  (संशोधित)

माँगूं खुदा से,  सब  दिलों  में, तू  जगा दे  भोर   

 

 

 

 

14

आ० जवाहर लाल सिंह जी

प्रथम प्रस्तुति

दोहे


लिए तिरंगा हाथ में, बालक जैसे कृष्ण!
झंझावातों से निडर, दौड़ता वह वितृष्ण!

.
राह कठिन है जानता, मन में है विश्वास. 
लक्ष्य हमारा एक है, मन में प्रभु की आश.

.
साथ न हो कोई अगर, चिंता किंचित नाहि,
आजादी को खोजकर, सबसे मिलिए ताहि

.
कीचड़ लगते पाँव में, बढ़ता कीचड ओर 
पंकहि पंकज ही मिले, जैसे होवै भोर.

 

द्वितीय प्रस्तुति

कुण्डलियाँ

 

छोटे छोटे पाद हमारे, छोटे मेरे हाथ.

किन्तु नहीं परवाह है, ध्वजा तिरंगा साथ .

ध्वजा तिरंगा हाथ, साहस बढ़ता ही जाय

रोके ना अवरोध, उजाला राह दिखाय  

लक्ष्य हमारा नियत, चढ़ें जा ऊंचे कोटे

चलना ही है मन्त्र, साथ हों बड या छोटे

 

 

 

 

 

15

आ० सचिन देव जी

नाजुक कोमल हाथ मैं , झंडा प्यारा थाम

शिखर पताका लहराय , देता है पैगाम

 

पहने है सफ़ेद हरा , केसरिया परिधान

ध्वज तिरंगा देता है , भारत को पहचान

 

जैसी इसकी आन है , वैसी ही है शान

इसकी रक्षा के लिये , सैनिक देते जान

 

झंडा ऊँचा हो सदा, वीरों का अरमान

तीन रंग मैं हैं छिपे, कितने ही  बलिदान

 

घर-घर झंडा लहराय , लेकिन रखना ध्यान

भूले से भी न करना , झंडे का अपमान

 

 

 

 

 

 

16

आ० अरुण कुमार निगम जी

दोहा छन्द :

*******************************************
धरे   तिरंगा  हाथ  में , धरा   धरा  पर  पाँव 
यहीं  बसाना   है   मुझे ,  बापू  वाला   गाँव ||

तन का रंग न देखिये ,  सुनिये मन की तान 
झूम-झूम गाता चला, जन गण मन का गान ||

कुण्डलिया छन्द :

*********************************************

(1)

बंजर   है   मेरे   लिये  , उपवन   उनके  पास 
पाया   उनसे छल-कपट , जिन पर था विश्वास 
जिन  पर  था   विश्वास ,  बने  थे  बड़े  करीबी 
लूट   लिये   टकसाल ,   बाँट  दी  मुझे गरीबी
लेता   हूँ   संकल्प , बदल   दूंगा   अब   मंजर 
उगलेगा   कल   रत्न ,  परिश्रम  से  यह  बंजर ||

 (2)

हीरा   हूँ   मैं  खान  का,  मुझे न कमतर आँक
रंग   देखता   बावरे , अन्तस्   में   तो   झाँक 
अन्तस्   में   तो   झाँक, शुभ्र - किरणें पायेगा 
अगर  लगाया  हाथ , काँच – सा  कट  जायेगा 
है   मेरा   आकार ,  ऊँट   के   मुँह   में   जीरा 
मुझे  न  कमतर  आँक, खान  का  मैं  हूँ  हीरा ||

उल्लाला छन्द :

**********************************************
अच्छे  दिन की  चाह में, निकल  पड़ा है राह में
लिये  तिरंगा  हाथ में ,  सपने  लेकर  साथ में ||

छला न जाये फिर कहीं ,नहीं नहीं फिर से नहीं 
धैर्य - बाँध  टूटे  नहीं , अब  किस्मत फूटे नहीं ||

अब  मृगतृष्णा  दूर  हो ,  सच्चाई  भरपूर  हो 
मान मिले शिक्षा मिले , नव - पीढ़ी फूले खिले ||

 

 

 

 

17

आ० अनिल चौधरी ‘समीर’ जी

कुण्डलिया छन्द 

इक दिन आधी रात को, हुई अनोखी बात,
भारत सुखमय हो गया, दुःख को देकर मात,
दुःख को देकर मात, देश आज़ाद हुआ जब,
खिल गयीं सब कलियाँ, फूल गुलज़ार हुए सब,
याद वही दिन करें, आज हम हर इक पलछिन,
भूलें हर इक बात, न भूलें बस वो इक दिन

लेकर झण्डा हाथ में, बच्चा दौड़ लगाय,
आज़ादी की है खुशी, जग को रहा बताय,
जग को रहा बताय, खुशी है आज़ादी की,
और  साथ में टीस, वहीं पर बरबादी की,
पड़ा है डाँका सा, हमारे अधिकारों पर,
करते नेता ऐश, हमारा हिस्सा लेकर

 

 

 

 

18

आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

दोहे

लिए तिरंगा दौड़ता रुके न इसके पाँव  

यह तो एक प्रतीक है, देख समूचे गाँव |

 

दौड़े नंगे पाँव ही, लिए तिरंगा हाथ,

कांटे चुभते जा रहे, भली करेंगे नाथ |

 

कर्णधार यह देश का, दिल में है अरमान, (संशोधित)

देश भक्ति के भाव की,यही बड़ी पहचान |

 

ऐसे निश्छल भाव के, भारत माँ के लाल

भावी प्रहरी है यही, इनकी करे सँभाल |

 

मक्कारी छल छद्म से, ये है कोसों दूर,

जय जय माँ जय भारती, ये ही तेरे नूर |

 

कुण्डलिया

छोटी सी ही उम्र में, समझे अपना कर्म,   (संशोधित)

लिए तिरंगा दौड़ता, राष्ट्र प्रेम ही धर्म |

राष्ट्र प्रेम ही धर्म, प्रेम पर प्रभु बलिहारी

अब हम पर दायित्व निभाना जिम्मेदारी

हम भारत के लाल, करे न समय की खोटी

बड़े करे अब काम, जिन्दगी चाहे छोटी | 

 

 

 

 

19

आ० राम शिरोमणि पाठक जी

दोहे

नन्हे-नन्हे कर लिए, कोमल पुष्प समान।
फहराता किस प्रेम से,देखो ध्वजा महान !!

 

देश प्रेम की भावना,गहरी और अथाह।
पथ पथरीला है मगर, चलने की है चाह।।

 

शीश कटा पर झुका नहीं,हँस कर देते जान!!
इसीलिए कहते सभी,भारत देश महान!!

 

खुद को देते कष्ट वे,हम सब को आराम 
ऐसे बीरों को करो,बारम्बार प्रणाम !!

 

लिए तिरंगा हाथ में,चेहरों पे मुस्कान
झूम उठा इस पर्व पे,सारा हिन्दुस्तान!!

 

 

 

 

 

 

Views: 4143

Replies to This Discussion

आदरणीय आपके निवेदन का अनुपालन हुआ.

सादर

इस अत्यंत सफल आयोजन के आप सभी सदस्य गण का ह्रदय से अभिनन्दन।
मेरे दोहों में जो त्रुटी बताई गयी है मैंने सुधारने का प्रयत्न किया एडमिन महोदय से सुधारने हेतु निवेदन है

पहले दोहे में..फहराऊँगा मैं ध्वजा
दुसरे दोहे में आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ने बहुत ही सुंदर परिवर्तन का सुझाव दिया था वो भी में बदलना चाहूँगी
बेच दिया है देश को के स्थान पर बेच रहे जो देश को
तीसरे दोहे में ..आजादी आई भले, आम आदमी दूर किया है
निवेदन हे कि जीता रण स्वातंत्र का, आजादी क्यों दूर में गलती मुझे समझ नही आ पाई है यदि समझा देंगें तो आभारी हूँ।

आदरणीया सीमाजी, आपकी रचना को संशॊधित किया गया.

//जीता रण स्वातंत्र का, आजादी क्यों दूर में गलती मुझे समझ नही आ पाई है //

स्वातंत्र शब्द को आप शब्दकोष में ढूँढ़ें. देखिये उसका क्या अर्थ है.

आपको अलबत्ता एक शब्द स्वातंत्र्य अवश्य मिलेगा.

सादर

सफल आयोजन, संचालन के साथ साथ  शीघ्र संकलन उपलब्ध करने  हेतु  परम आदरणीय  सौरभ जी एवं  आ, डॉ. प्राची जी को  हार्दिक बधाई 

साहित्य एवं मंच के प्रति आपकी  यह  अटूट निष्ठा का परिचायक है जो  अनुकरणीय  भी है आदरणीय,,,,,सादर 

आप जैसे सक्रिय सदस्यों और तमाम पाठकों का संबल बहुत बड़ा कारक है आदरणीय कि हम सभी निष्ठा के साथ संलग्न रहते हैं. इस संलग्नता को किसी सूरत में अन्यथा अर्थ दिया जाना एकजुट साहित्यकर्म के प्रति असंवेदनशील होने के बराबर है.

आपके अनुमोदन से ऊर्जा मिलती है.

सादर

परम आ. सौरभ जी सादर, 

            आदरणीय आपके प्रति, इस मंच के प्रति एवं मंच से जुड़े सभी सदस्यों के प्रति मेरे मन में आदर एवं सम्मान  भाव  है  एवं भविष्य में भी बरकरार  रहे ऐसी ही नेक कामना सदैव ईश्वर से चाहता हूँ. यदि कहन में कहीं कोई भूल हुई हो तो उसके लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ. आदरणीय 

सादर धन्यवाद 

आपकी सदाशयता और आत्मीयता, आपका समर्पण हम सभी का हृदय अनुभव करता है, आदरणीय सत्यनारायणजी.

आपके रचनाकर्म उसके प्रति आपकी गंभीरता को हम हृदय से मान देते हैं.

सादर आभार आदरणीय.

आदरणीय मंच संचालक महोदय , यदि उचित हो तो  मेरी रचना की  पंक्तियों में  निम्नानुसार सुधार करने की कृपा करें ----

तन मन सुकोमल, अंग श्यामल, मन अडिग विश्वास।
द्वय चल पड़े पग, जीतने जग, मन भरे उल्लास ।।

मान तिरंगा देश का, है अनुपम वरदान।

.........

भारत की पहचान, देश का मान तिरंगा

लिया आज प्रण बाल ने, हाथ तिरंगा थाम।

ऊँचा अपने देश का, आज करूँगा नाम।१। 

वीर सपूतों से सजी, मात भारती गोद।

देख जोश निज लाल का, होता माँ को मोद।२।

बैर भाव उपजे नहीं, लगे न कोई गैर। 

देश प्रेम मन में जगे, देश की चाहें खैर।५। 

सादर धन्यवाद 

यथा निवेदित तथा संशोधित

देश प्रेम मन में जगे, देश की चाहें खैर।५।   इस पद के सम चरण पर अभी और काम करना होगा.

सम चरण  यही देश की खैर .. भी हो सकता है.  किन्तु यही वाक्यांश एक मात्र उपाय नहीं है.

सादर
  

सादर धन्यवाद, आदरणीय 

आदरणीय सत्यनारायणजी, उपरोक्त पद   देश प्रेम मन में जगे, देश की चाहें खैर  के सम चरण में मात्रिक दोष है.

आदरणीय  सौरभ जी

      आपका संकलन धर्म  स्पृहणीय  है i  अनायास  ही  मै कामरूप छंद जाने किस दुष्प्रेरणा  से 10,7,10 मीटर पर लिख गया i मैंने तुरंत दूसरा  कामरूप छंद लिखा फिर याद आया एक छंद एक ही बार भेजना है i  फिर चुप बैठ गया और त्रुटिपूर्ण कामरूप छंद को संशोधित किया i पर वर्जना थी की प्रविष्टि के समय संशोधन  का अनुरोध न किया जाय  i आज आपका संकलन आ गया i इतनी लालिमा देखकर मन छुब्ध हो गया  ग्लानि  भी हुयी i  सशोधित रचना निम्न प्रकार है -

               कामरूप छंद

 

मन देखता है          मुग्ध इस नव     चरण-तल की छांह

पांव छोटे से            नंगे मृदुल                  काँटों भरी राह

लाल वसुधा का      चोप अद्भुत           अंतस में अगाह

जन्म-भूमि जननि   का महकता          है वत्सल उछाह

 

धुन है लगन गति    रवानी है             संकल्पयुत चाल

इस धरा मानस         पर तैरता           यह शावक मराल

राष्ट्र ध्वज इक कर   दूजे सूत              मुठ्ठी बंधा हाथ

तरणि वात मधुर      सुरभित स्वप्न    कामना का साथ

 

बालक देश का     कौपीन तक            का नही निस्तार

चला एकाकी         बाल हरि सा         पीत अम्बर धार

या वीर वामन     बन फिर बढ़ा     निज काया कलाप

एकदा फिर से      तू लोक त्रय           को पदों से नाप

 

संशोधन संभव नहीं तो आशिर्वाद ही सही i सादर i

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Wednesday
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Wednesday
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Oct 31
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service