For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 31 की समस्त रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 21 अक्तूबर 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 31 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इस बार के छंदोत्सव में भी दोहा छंद पर आधारित प्रविष्टियों की बहुतायत थी.

आयोजन में 22 रचनाकारों की निम्नलिखित 10 छंदों में, यथा,

दोहा छंद
कुण्डलिया छंद
दुर्मिल सवैया छंद
चौपाई छंद
वीर या आल्हा छंद
सार या ललित छंद
त्रिभंगी छंद
घनाक्षरी छंद
हरिगीतिका छंद
गीतिका छंद
 
में यथोचित रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध और सफल हुआ.

पाठकों के उत्साह को इसी बात से समझा जा सकता है कि पिछले माह से आयोजन को तीन दिनों के बजाय दो दिनों का ही किये जाने के बावज़ूद प्रस्तुत हुई रचनाओं पर कुल 700 से अधिक प्रतिक्रियाएँ आयीं.

इस बार के आयोजन से एक जो बात विशेष रूप से उभर कर आयी है वह ये कि दोहा और कुण्डलिया छंद रचनाकारों के पसंदीदा छंद हैं. कई-कई रचनाकार तो आयोजन दर आयोजन इन्हीं छंदों में रचनाकार्म करते हैं. लेकिन रचनाकारों के बीच इतना प्रचलित होने के बावज़ूद ये छंद कम ही रचनाकारों द्वारा साधे जा सके हैं. इनके विधान पर लगातार सार्थक चर्चा होने और उनके विधानों के सूक्ष्म नियमों को कई पूर्ववर्ती आयोजनों में साझा किये जाने के बावज़ूद रचनाकारों ने इन छंदों को सीखने की गति थोड़ी मंद ही रखी है.

आयोजनों का मूल मक़सद यही है कि मंच पर आयोजन का पटल रचनाकर्म के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छंद-कविताई पर कार्यशाला की तरह लिया जाय. इस हेतु कई रचनाकार सकारात्मक रूप से आग्रही भी दीखते हैं. लेकिन कई रचनाकार तो अपनी प्रस्तुति को साझा करने के बाद से कायदे से मंच पर ही नहीं आते, टिप्पणियों के माध्यम से बन रहे संवाद का लाभ क्या उठायेंगे. यह किसी रचनाकार की विवशता हो सकती है, इसे हमसभी समझ सकते हैं, लेकिन यदि यह किसी की प्रवृति ही हो तो ऐसी प्रवृति या आचरण किसी तरह से यह अनुकरणीय नहीं है.

इसके अलावे एक और तथ्य जो स्पष्ट हुआ है कि कई पाठक रचनाकार विशेष की ही रचना पढ़ते हैं और टिप्पणी भी करते हैं. जबकि उनको उस रचनाकार की रचना तक पहुँचने के लिए पृष्ठ प्रति पृष्ठ ही जाना होता होगा और कई एक रचनाकार की रचनाओं से उनका गुजरना होता होगा. बंधुओ, प्रणम्य है उनका ऐसा धैर्य और अन्य रचनाकारों से आँख मूँद लेने की कला !

खैर, आयोजन की सफलता और सदस्यों में इसकी लोकप्रियता यही बताती है कि जो रचनाकार इस सकारात्मक वतावरण का लाभ ले रहे हैं वे काव्यकर्म के कई पहलुओं से जानकार हो रहे हैं.

इस बार पुनः इस आयोजन में सम्मिलित हुई रचनाओं के पदों को रंगीन किया गया है जिसमें एक ही रंग लाल है जिसका अर्थ है कि उस पद में वैधानिक दोष है या व पद छंद के शास्त्रीय संयोजन के विरुद्ध है. विश्वास है, इस प्रयास को सकारात्मक ढंग से स्वीकार कर आयोजन के उद्येश्य को सार्थक हुआ समझा जायेगा.

आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

रचनाओं को संकलित और क्रमबद्ध करने का दुरुह कार्य ओबीओ प्रबन्धन की सदस्या डॉ. प्राची ने बावज़ूद अपनी समस्त व्यस्तता के सम्पन्न किया है.

ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति आभारी है.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

*******************************************************

1. राणा प्रताप सिंह  
छंद - दुर्मिल सवैया
संक्षिप्त विधान - सगण X 8

सब डूब गये घर बार जलाशय जान पड़ें सड़कें गलियाँ
बरसात न पूछ हुई इतनी तज पाट बढ़ी चलती नदियाँ
जलमग्न हुए पर है न थमा कुछ, मग्न खड़ी तकतीं सखियाँ
उठते गिरते ढलते खिलते हर वक्त चला करती दुनियाँ    

छंद - चौपाई 
संक्षिप्त विधान - सोलह मात्राओं का दो चरणों का छंद जिसका पदांत गुरु लघु से नहीं होता.

कैसे बने मित्र अब दाढ़ी| सब बह गई कमाई गाढ़ी |
नाई जी भी छंटे हुए हैं| मूंछ ऐंठ कर डटे हुए हैं ।
खींचे रहो अकेले रिक्शा| तुमको यही खुदा ने बख्शा |
ड्रिंकिंग-वाटर भर ले आओ| बेचो उसे कमाओ-खाओ |
चलो सहेली छतरी लेकर| बहुत रह लिए घर के भीतर |
पानी ने मौक़ा दे डाला| बाहर निकलीं ‘चम्पा’ ‘माला’ |
**********************************************************************************

2. सौरभ पाण्डेय  
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

रुका दिखे ना काम कुछ, चढ़ा छुरा भी सान  
इन्द्र-वरुण दोनों हुए, नाहक ही हलकान  

दैहिक-भौतिक विघ्न हों, या दैविक जलधार  
रोके से पर कब रुका, जीवन का व्यापार ?   

जीवन के बाज़ार में, सबको मिली दुकान
जुगत भिड़ी तो वाह-वा, नहीं चली तो टान

तब तो उड़ती धूल थी, अबकी उफनी बाढ़  
किस्मत को क्या कोंसना, खुद से खुद को काढ़

वज्र गिरे, गंगा चढ़े, या नभ उगले आग
जिम्मेदारी कह रही, "जीवन से मत भाग !"

खुद को फिर से झोंकती, दुनिया लगते भोर
सौ बातों की बात ये, भूख मचाये शोर !
 
रंग-रूप सुग्घर दिखे, मूँछ लगे तलवार
मार बाढ़ को गोलियाँ, बन दूल्हा दमदार !!
**********************************************************************

3. सचिन देव  
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

वाह री महिमा नीर की,  जित देखो उत नीर !
चहुँ तरफ बस नीर नीर, आपद विकट गंभीर !!

इस जीवन की देख गति, फिर भी रोक न पाय  !
घर का चूल्हा बुझे नही,  रिक्शा रहा चलाय !!

बाबू जी भी देख जल , मन ही मन हरसाय  !
जल के भीतर बैठ कर, दाढ़ी अपनी बनवाय  !!

नाई जी  भी पिल पड़े, कर  ऊपर पतलून !
बिन चिंता के चला रहे, हियर कटिंग सैलून !!

खुले खुले मैदान में, हवा मनोरम आय !
पंखा कूलर फेल भये, ऐसी नीर बहाय !!

तुम बड़े करतार प्रभु,  सागर देत सुखाय !   
और कभी गलीयन  को, सागर देत बनाय !!
*****************************************************************

4. डॉ० प्राची सिंह
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

वर्षा नें चौपट किया, पोपट का व्यापार
सब बीवी-बच्चे बहे, ध्वस्त हुआ घर बार
ध्वस्त हुआ घर बार, पड़े रोटी के लाले
झट कर ले फिर ब्याह, खुलें किस्मत के ताले
फ़ौरन रिश्ता ढूँढ, बुला नाई वो हर्षा
ब्याह करेगा आज, करे जो कर ले वर्षा
***************************************************************

5. कुमार गौरव अजीतेंदु
छंद - घनाक्षरी
संक्षिप्त विधान - 31 वर्ण, 8, 8, 8, 7 अथवा 16-15 वर्णों पर यति ; चार पद ; चारों पदों के अंत में गुरु वर्ण ; चारों पद तुकांत

मान का सवाल है जी, जाना ससुराल है जी, "फिट-फाट" न गया तो शान घट जाएगी।
क्या हुआ भरा जो पानी, मुझे दाढ़ी बनवानी, वरना साले हँसेंगे, साली भी चिढ़ाएगी।
नाई को मनाना पड़ा, दाम भी बढ़ाना पड़ा, छोड़ो, आखिर कमाई कब काम आएगी।
जल्दी अभी निपटाना, स्टेशन भी तो है जाना, ट्रेन यहाँ आ के मुझे थोड़े ही बिठाएगी॥
------------------------------

गाँव यहाँ उपलाता, थोबड़ा ये चमकाता, घुस गया इसमें क्या भूत सरकारी है।
शीशा है शरम नहीं, याद भी धरम नहीं, नागरिकों की भी होती कुछ जिम्मेदारी है।
फावड़े, कुदाल लाओ, मिट्टी नाली से हटाओ, मर्द हो जवान, अरे! ऐसी क्या लाचारी है।
सिर्फ रूपवान होना बंधु किसी काम का न, गुणवान को ही पूजे दुनिया ये सारी है॥
------------------------------

खुशी हो या गम आयें, फूल खिलें-मुरझायें, चलते ही जाना यारों जिन्दगी सिखाती है।
परिस्थितियाँ सम हों या हालात विषम हों, धौंकनी ये साँसोंवाली थम थोड़े जाती है।
लोग झुकते नहीं हैं, काम रुकते नहीं हैं, जिजीविषा मनुज की सब करवाती है।
यही तो वजह बसा धरती पे जीवन है, वर्ना दुनिया तो मृत्युलोक कहलाती है॥
**********************************************************************************

6. सरिता भाटिया  
प्रथम प्रस्तुति :
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

जीना है दूभर हुआ, जल फैला चहुँ ओर
मूढ हजामत में लगे ,लोग ढूंढते ठौर
लोग ढूंढते ठौर, फिरें हैं मारे मारे
सबकी अटकी जान, कौन लगाये किनारे
दूषित जल चहुँ ओर, कहे सरिता मत पीना
जान बचा अनजान ,हुआ है दूभर जीना
___________

पानी चारों ओर है ,रुका नहीं है काम
चौखट में कुर्सी लिए , आ बैठे हज्जाम
आ बैठे हज्जाम ,देख बना रहे दाढ़ी
छाता लेकर नार ,खड़ी हैं ओढ़े साड़ी  
भरेगा कैसे पेट ,देख रही राह रानी
बिसलेरी ले भाग ,हुआ है दूषित पानी
________________
द्वितीय प्रस्तुति :
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

गंगा घर में आ गई धोने सबके पाप
फुर्सत में बैठो मियां ,काहे का संताप/
काहे का संताप , नयन हैं ऐसे चमके
घर आया सैलून , फेस है कैसे दमके
कुर्सी का जो मोह, न छोड़े बाबू रंगा
सारा राशन माल ,बहा ले जाए गंगा//
***********************************************************************

7. कल्पना रामानी  
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

दीनों की दुनिया अलग, होती सबसे खास
आशा की इक पोटली, रहती इनके पास।

चाहे खरपतवार हो, या बिखरे हों शूल।
हर विपदा के बाग में, खिलते ये बनफूल।

बाधाओं की बाढ़ में, जीवन हो दुश्वार।  
थामे रहते किन्तु ये, हिम्मत की पतवार।

छूटे चाहे आशियाँ, या रूठे तकदीर।
मगर नहीं है टूटता, इनके मन का धीर।

शीत, ताप, हिमपात को, सहज मानते मीत।
बारिश भी इनके लिए, कब लिखती नवगीत।

हाकिम इनके हाल पर, करते केवल शोर।
इनकी काली रात की, कभी न होती भोर।

यही प्रार्थना, 'कल्पना', इनको मिले प्रकाश।
विषम भूमि इस देश की, सम हो पाती काश!
**************************************************************************

8. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव  
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

रात बहुत बारिश हुई, लोग हुये बेहाल।
गंगा घर तक आ गई, गांव बना है ताल॥    

गांव गली में घूमता, पेटी ले हज्जाम।
जल बरसे, ओला गिरे, करना होगा काम ॥

सुबह-सुबह ग्राहक मिला, नकद मिलेगा मोय।
गुरुजी से शुरुवात है, बोहनी अच्छी होय॥

करें किसानी कर्ज से, होत फसल से आय।
पाँच माह सेवा करो, तब पैसे मिल पाय॥

अकड़बाज कितने मिले, कितने मिले दबंग।
सिर झुकाते लोग सभी, मंत्री और मलंग॥

सुख-दुःख में साथ रहें, इज्ज़त सब की होय।
प्यार कहाँ है शहर में, मानुष निर्दय होय॥

नाई होत नारदमुनि, सब की बात बताय।
मोबाइल मिल जाय तो, खबर दूर की लाय॥
**************************************************************************

9. राजेश कुमारी
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

बहती ने जलथल किया ,रुके नहीं पर काम
घुटनों तक जल में खड़ा,काम करे हज्जाम
काम करे हज्जाम ,कमाई होगी गाढ़ी
दूल्हा है जिजमान ,बनाता उसकी दाढ़ी
देख रहे नर नार ,निगाहें कुछ-कुछ कहती
बाहर है सैलून ,घुसी है घर में बहती
********************************************************************************

10. रमेश कुमार चौहान  
छंद - हरिगीतिका
संक्षिप्त विधान - 16,12 पर यति 5वी,12वी 19वी एवं 26वी मात्रा लघु पदांत गुरू

वर्षा इतनी भई तज कर तट, आ पहुँची नदी गली ।
घर बार दुकान सब घिरे है, चिंतित है आज अली ।।
करना पड़े कुछ ना कुछ काम, रिक्त उदर है भरना ।
रिक्शा खिचना है जरूरी अब, बाढ़ से जो उबरना ।।1।।

गति जीवन पहचान जगत में, है विराम मौत कही ।
चलते रहता सृष्टि अविराम, प्राणि तू भी चल सही ।।
अनुकूलन है विज्ञान सम्मत, समय के साथ चल तू ।
बुरा समय हो लाख सही पर, चाह से राह चुन तू ।।2।।
-------------------------

द्वितीय प्रस्तुति

छंद - गीतिका
संक्षिप्त विधान - 14,12 पर यति 3री, 10वी 17वी एवं 24वी मात्रा लघु पदांत गुरू

आज बरखा नाचन लगी, बेसुध हो गली गली ।
देख नीर नीर चहु ओर, हर्षित सब सखा सखी ।।
ताल तलईया तट तोड़, नगर डगर नदी बही ।
द्वार द्वार तक पहुँचे जल, किंचित नही खलबली ।।

हाट बाट जलाजल भये, छप छप दो नार चली ।
शेव करावे एक बांका, नीर बीच बैठ गली ।।
पेंट मोड़ अड़े वह सेन, काम करे खड़े खडे ।    
वाहन खिचे चालक मस्त, जूझ रहे अड़े अड़े ।

देख दृश्‍य मन हरशाये, मनुज मन विचलित नही ।
सघन हो या सरल पथ अब, शुभफल की कमी नही ।
हाथ पर हाथ धर कर हम, बैठ नही रहे कदा ।
चिर कर हर संकट हम सब, जीत चले सदा सदा ।।
********************************************************************************

11. गिरिराज भंडारी
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

पानी पानी जग भया, डूब गया घर बार
जो तैरा बस वो बचा, तू भी हो जा पार

पानी पानी रासता , पानी पानी गाँव
बाल कटाने के लिये , मनुज खोजता ठाँव

आपस में मिल जुल करो , अपना बेड़ा पार
बिन पानी के डूबती , है तेरी सरकार

चाहे जहाँ नहाइये , दाढ़ी लो कटवाय
घुटनों पानी में खड़ा, नाई करे उपाय

भूख नही है देखती, नीर शीत अरु धूप
पानी में रिक्शा चले, साबित है ये रूप
*******************************************************************************

12. सत्यनारायण सिंह

छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

करे हजामत युवक की,  नाई चतुर सुजान।
कुर्सी पर आसीन है, श्यामल गात जवान।।
श्यामल गात जवान,  हरे मन देह गठीला ।
कटि पर गमछा लाल, युवक सोहे रंगीला।।
शीशा कर में धार, युवक निज रूप निहारत।
नाई भी पतलून, मोड़कर करे हजामत।।
______
पानी घुटनों तक चढ़ा, बाढ़ सदृश है हाल।
जलमय सारा शहर है, जन जीवन बेहाल।।
जन जीवन बेहाल, सभी की हालत खस्ता।
रहा प्रशासन सोय, प्रबंधन कितना पुख्ता ?
देख बाढ़ विकराल, मरी शासन की नानी।
खुला  प्रशासन पोल, हुआ जग पानी पानी।।
******************************************************************************

13. चन्द्र शेखर पाण्डेय  
छंद - त्रिभंगी  
संक्षिप्त विधान - 10,8,8,6 पर यति ; अंत लघु गुरु या गुरु गुरु से। अंतिम चरण में जगण वर्जित

दिखलाता दर्पण, करो समर्पण, खेल अजब है, करवाता
बनकर के नाई, काटे काई, अहम् मनुज का, हर जाता
कर देगा कर्तन, पल में मर्दन , हाथ उसी के, चक्र धरा
सर्वत्र नियंता, वह भगवंता, कौन भेष कब, रूप वरा
*******************************************************************************

14. अविनाश एस० बागडे 
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

फुरसत में ये  बैठ कर, देखे खुद का फेस।  
नाई भी है फुरसत में ,काट रहा है केस।।
काट रहा है केस ,देखता रिक्शावाला !
छतरी लेकर खास,चल पड़ी देखो बाला।।
कहता है अविनाश , देखिये नर की हिम्मत।  
लोग बचाए जान, इसे फुरसत ही फुरसत !!!!!
******************************************************************************

15. केवल प्रसाद  
छंद - दुर्मिल सवैया   
संक्षिप्त विधान - सगण X 8

इस वर्ष भयानक बारिश में, नुकसान नहीं कुछ देख रहे।
गर आफत है मजदूर दशा, जल प्रेम दिशा शुभ चेत रहे।।
घर अन्दर-बाहर नीर भरा, मनु दैनिक कार्य सहेज रहे।
नर खींच रहा जल वाहन को, सखि संग चली पथ नेह रहे।।
*****************************************************************************

16. अरुण कुमार निगम  
छंद - आल्हा
संक्षिप्त विधान - प्रत्येक चरण में 16-15 मात्रायें ; विषम चरणांत गुरु गुरु या लघु लघु गुरु या गुरु लघु लघु या लघु लघु लघु लघु और सम चराणांत गुरु लघु

लचर व्यवस्था सुस्त प्रशासन,देखो तो कस्बा बदहाल |
मुखिया अकड़ू  उकड़ू बैठे , चिकने करवाते  है गाल ||
मोह नहीं छूटे कुर्सी का , जिसके बल से आता माल |
कुर्सी पाने से पहले ये  , एक  तरह से  थे  कंगाल ||

“जनहितकारी काम किये हैं” , सदा पीटते रहते ढोल |
पहली बारिश हुई नहीं है,खुली व्यवस्था की हर पोल ||
जलाशयों का जल दूषित है , बेच रहे हैं निर्मल नीर |
चाँदी काट  रहे  धनवाले , भोग  रही है  जनता पीर ||

कहें  कवेलू  हम  टपकें  तो , तुरत  बदल देते  हैं लोग |
बदल नहीं क्यों पाते उनको,जो खाते नित छप्पन भोग ||
कागज में  उन्नति  दर्शाते , सपने  सारे सच से दूर |
लूट रहे  भोली जनता को, ये  सत्ता के  मद में चूर ||

घुटने तक पानी भर आया,चित्र बहुत कुछ कहता मौन |
अब तो सिर के ऊपर पानी  , चढ़ आया है समझे कौन ||
लाज शर्म का पानी इनकी , आँखों से गायब है आज |
पानी-पानी  हुआ शर्म से , सपनों वाला  ग्राम सुराज ||  
****************************************************************************

17. गीतिका वेदिका  
छ्ंद-  सार / ललित
संक्षिप्त विधान - 2 पद, 4 चरण, 16, 12 पर यति, पदांत गुरु गुरु से या लघु लघु गुरु   

छन्न पकैया छन्न पकैया, नगर भर गया पानी
और बन गयी धरती मैया, मेघों की रजधानी ||1||

छन्न पकैया छन्न पकैया, आज करूंगा शादी
बीच बाढ़ दूल्हे राजा ने, अरजी सबै सुना दी ||2||

छन्न पकैया छन्न पकैया, चाह मिले इक बाला
चले कर्तनालय बाबू जी, कर लूँ  रूप निराला ||3||

छन्न पकैया छन्न पकैया, छ्तरी लिये सुहानी
घूम रहीं है गलियाँ गलियाँ, छोटी और जिठानी ||4||

छन्न पकैया छन्न पकैया, कुदरत भी है न्यारी
कहीं चटकती जल बिन धरती, कहीं बाढ़ है भारी ||5||

छन्न पकैया छन्न पकैया, पृथक पृथक है पानी
गंदा पानी और साफ जल, सीमा सबने जानी ||6||
*****************************************************************************

18. योगराज प्रभाकर  
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

सह जाता जो पौष भी, सह जाता आषाढ़  
तक इन्सानी हौसला, हुई पराजित बाढ़
हुई पराजित बाढ़, आदमी हुआ विजेता
हिम्मत ही उपचार, समय संदेसा देता
जिसने मानी हार, कहाँ ग़ाज़ी बन पाता
कहलाता है वीर, मुसीबत जो सह जाता
-----------------------------------------------
चौमासा चौपट करे, सारे चलते काम
छत से बेछत हो गया, बेचारा हज्जाम
बेचारा हज्जाम, उस्तरा चोखा तीखा
बिन साबुन की शेव, बनाना उसने सीखा
ठंडा है जो काम, चलेगा अच्छा ख़ासा,
पकड़ेगा रफ़्तार, ज़रा थम ले चौमासा
--------------------------------------------
झेले लाख मुसीबतें, रुके नहीं संसार
बारिश हो भूचाल हो, चलते कारोबार
चलते कारोबार, पेट का मसला भाई
कोई खींचे बोझ, कहीं पानी में नाई
हर आफत के बाद, लगें हैं रौनक मेले    
मौके ऐसे लाख, यहाँ मानव ने झेले
****************************************************************************

19. लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

गरजे बरसे मेघ यूँ,  खूब मचाए धूम,
मस्ती में लहरा रहे, भू की रज को चूम |

सडको पर पानी भरा, कैसा है ये चित्र,
हाँके डींग विकास की, लगती बड़ी विचित्र |

आजादी के बाद भी, जन जन करे मलाल,
फुटपाथों पर देख ये, गुजर करे किस हाल |

मिले हमें दो हाथ हैं, करने को कुछ काम,
घुटनों पानी में खड़े, मजदूरी के नाम |

श्रम करने को हाथ में, ले अपने औजार,
नाई लेकर उस्तरा,  दाढी को तैयार |

शीशा लेकर देख ले, बन गई दाढी नीक,
जैसा ये माहौल है, उसमें लगती ठीक |

ऊपर से यूँ झाँकते, खिड़की के पट खोल,
कौतुक भरी निगाह से, देख रहे माहौल |
**********************************************************************

20. अरुण श्रीवास्तव  
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

झूठी   राहत   योजना  ,  बना   रही    सरकार
धूल   चटाकर  बाँध  को  ,  नदी  आ  गई  द्वार
नदी  आ  गई द्वार , किन्तु  कब  रुकता जीवन
सब करते निज कर्म, लगाकर अपना तन मन
पर  कुछ करो विचार , भला क्यों  कुदरत रूठी
मनुज विजय  की कथा , हो  गई  पल में झूठी
**********************************************************************

21. अजीत शर्मा 'आकाश'  
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

अब की बारिश ने किया जन-जन को बे-हाल
ख़त्म हुआ घर में रखा आटा- चावल- दाल ।
आटा- चावल- दाल, शाम तक लाना ही है
चाहे जो हो जाय काम पर जाना ही है ।
नर-नारी हलकान खड़ी है खटिया सब की
संकट में है जान घोर बारिश में अब की ।।
*******************************************************

22. रविकर जी
छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

ताल- तलैया तमतमा, चले खींचने ध्यान |
इन्सानी नादानियाँ, कितना की नुकसान |
कितना की नुकसान, मिटा के भवन बनाये |
इसीलिए सैलाब, आज सड़कों पे आये |
तेज उस्तुरा धार, धार पर तैरे नैया |
रहे फावड़ा खोज, घरों में ताल-तलैया ||
***********************************************************************

Views: 1671

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी 

संकलित रचनाओं के साथ में आयोजन की सारगर्भित रिपोर्ट के लिए धन्यवाद!

आपने मुख्यतः जो तीन बिंदु  उठाये हैं वह तीनों ही महत्वपूर्ण हैं..

1.  दोहा और कुण्डलिया छंद रचनाकारों के पसंदीदा छंद  होने के बाद भी कम ही रचनाकारों द्वारा साधे जा सके हैं... 


2.  मंच पर आयोजन का पटल रचनाकर्म के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छंद-कविताई पर कार्यशाला की तरह लिया जाय.

3.  कई पाठक रचनाकार विशेष की ही रचना पढ़ते हैं और टिप्पणी भी करते हैं. 

इन बिन्दुओं पर रचनाकार सदस्य अवश्य स्वयं ही मनन चिंतन करें तो रचनाकर्मिता और पाठकधर्मिता दोनों ही उत्तरोत्तर सार्थक दिशा पाएं.

साथ ही मैं सुधीजनों से सबकी रचनाओं पर (करवाचौथ की तैयारियों के चलते साथ ही मेहंदी लगे होने के कारण) रचनाओं को पढ़ कर भी टिप्पणी न कर पाने की असमर्थता के लिए क्षमा चाहती हूँ.

सादर! 

इस बार छंदोत्सव में सम्मिलित रचनाओं के दोषयुक्त पदों को चिह्नित कर एक संदेश साझा करने का प्रयास किया गया है. आपसे मिला अनुमोदन इसकी सार्थकता को प्रतिष्ठित कर रहा है.

डॉ. प्राची, कार्य कोई हो या उसकी सफल परिणति के लिए हुआ प्रयास, उसके प्रति गंभीरता होनी ही चाहिये.

ओबीओ के पटल पर आयोजनों का उद्येश्य मात्र रचना प्रस्तुतीकरण कभी नहीं रहा है. इसके विन्दुवत कारण रहे हैं. इन आयोजनों के चलते या इनके कार्यशाला प्रारूप के चलते कई रचनाकारों ने अतिशय लाभ उठाये हैं.  अब यह नव-हस्ताक्षरों पर निर्भर करता है कि वे आयोजनों में अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर क्या चहते हैं.

आपने उठाये गये तीनों विन्दुओं को अनुमोदित कर इन्हें उठाये जाने के पीछे के वैचारिक पहलुओं को मान्य बनाया है.

सादर धन्यवाद.

आदरणीय सौरभ भाई , आयोजन के सफल संचालन और इस संकलन के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!! और पाठको के विश्लेषण के लिये भी आपको हार्दिक बधाई और साधुवाद !!!!!  बंधुओ, प्रणम्य है उनका ऐसा धैर्य और अन्य रचनाकारों से आँख मूँद लेने की कला ! !!!!! इस वाक्य के किये आपको नमन !!!!!!

आदरणीय गिरिराजभाईजी, इस बार आयोजन की संकलित रचनाओं में वैधानिक या शब्द-संयोजन से हुए दोषों वाले पदों को रंगीन किया गया है ताकि रचनाकार अपने प्रयासों को विन्दुवत कर सकें.


आदरणीय, रिपोर्ताज़ की पंक्तियों में आप पाठकों पर हुआ विश्लेषण भर कहेंगे तो संभवतः प्रक्रिया पर बनाये गये संवाद के साथ क्या ज्यादती न होगी ! ..   :-)))

मंच के तीनों आयोजनों का उद्येश्य स्पष्ट और विन्दुवत है. उनका सफल होना सभी सहभागी सदस्यों की सहयोगी तथा सकारात्मक सोच से ही संभव है.

रचनाकर्म केवल सुनाना और लगातार सुनाना ही नहीं बल्कि सुझावों के अनुरूप स्वयं के रचनाकर्म में सुधार लाना भी है. तथा, यह भी कि, अपनी सुनाने के साथ-साथ अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर अपनी बात कहना भी है.  ताकि, ’सीखना-सिखाना’ की महती वैचारिकता सधती और परिपक्व होती चले.


हर रचना पर कोरी ’वाह-वाह’ करने से या ’आपकी रचना अच्छी लगी’ की उक्ति दे देने से हम किसका भला कर रहे हैं ? या, विधा विशेष या रचनाकार विशेष पर ही अपनी टिप्पणियाँ करना किस लिहाज से श्लाघनीय है ? मैंने यही निवेदन किया है.
मुझे विश्वास है, आप मेरे कहे का अनुमोदन करेंगे.
सादर

आदरणीय सौरभ भाई , मै आपकी बातो का दिल से अनुमोदन करता हूँ !!!!  विधा विशेष या रचनाकार विशेष पर ही अपनी टिप्पणियाँ वाली बात भी आपकी दुरुस्त है , उपर भी मै इसी बात के अनुमोदन लिये गलत शब्द (पाठको के विश्लेषण )  चुन लिया था , इसी लिये आपको बात नही समझा पाया था , क्षमा करेंगे !!!!! 

आपके साथ बना प्रस्तुत संवाद कई तथ्यों को सापेक्ष कर रहा है, है न ?

:-))))

सादर

बहुत सही बात 

इस संकलन की भूमिका को नव अभ्यासियों  को एक बार अवश्य पढना चाहिए.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service