सुधिजनो !
दिनांक 16 अगस्त 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 29 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.
इस बार के छंदोत्सव में भी दोहा और कुण्डलिया छंदों पर आधारित प्रविष्टियों की बहुतायत थी.
इसके बावज़ूद आयोजन में 20 रचनाकारों की दोहा छंद और कुण्डलिया छंद के अलावे
मनहरण घनाक्षरी छंद
तोमर छंद
वीर या आल्हा छंद
सार या ललित छंद
जैसे सनातनी छंदों में सुन्दर रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध और सफल हुआ.
पाठकों के उत्साह को इसी बात से समझा जा सकता है कि इस माह से आयोजन को तीन दिनों के बजाय दो दिनों का ही किये जाने के बावज़ूद प्रस्तुत हुई रचनाओं पर कुल 608 प्रतिक्रियाएँ आयीं.
इस बार के आयोजन की उल्लेखनीय बात रही, आयोजन का शुभारम्भ ओबीओ के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकर की रचना से होना. अपनी अस्वस्थता के कारण एक लम्बे अरसे से रचनाकर्म से दूर रहने के बाद आपका पुनः रचना प्रयास हेतु उद्यत होना हर लिहाज से मंच के लिए परम संतोष की बात है.
यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.
रचनाओं को संकलित और क्रमबद्ध करने का दुरुह कार्य ओबीओ प्रबन्धन की सदस्या डॉ. प्राची ने बावज़ूद अपनी समस्त व्यस्तता के सम्पन्न किया है.
ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति आभारी है.
सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
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1. श्री योगराज प्रभाकर जी
मनहरण घनाक्षरी छंद
(चार पद, हर पद में 4 चरण, 8,8,8,7 पर यति, अंत में लघु गुरु)
सुन रे नापाक पाकी, मेरी धरती जो ताकी
छोडूंगा न तुझे बाकी, समझ ले बात को
जूता मेरा नोकदार, ढीली तेरी शलवार
दी है सदा तुझे हार, भूल न औकात को
हिंदी चेहरों पे लाली, तेरी पगड़ी भी काली
सबकी तू खाए गाली, छि: है तेरी ज़ात को
घटिया हैं करतूतें, सबके तू खाए जूते
रोकें हम निज बूते, हर खुराफात को
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2. श्री सौरभ पाण्डेय जी
छंद - तोमर
संक्षिप्त विधान - 12 मात्राओं का सममात्रिक छंद. पदांत गुरु लघु (ऽ।)
कतिपय विद्वान सगण जगण जगण के वर्ण पर पदों को साधते हैं. किन्तु, मूलतः, यह मात्रिक छंद ही है.
आन बान शान मान
भावना जिए उठान
देह का असीम व्यास
देख तू सधा प्रयास
भाव-भंगिमा उछाह
मित्र, शत्रुता न डाह
मैं सपूत आन मान
देश की गुमान जान
शौर्य शक्ति का कमाल
पग उछाल छू कपाल
देख जोश में उबाल...
और धैर्य की मिसाल
साधना प्रयास देख,
शिष्ट-बल समास देख
देख रक्त में बहाव,
जोश-होश में जुड़ाव
देख रे, उठान देख,
पेशियाँ कमान देख
रंग-रूप उच्च तान,
वीरता हुई कमान
मन-शरीर से विरक्त,
धर्म-कर्म हेतु शक्त
राष्ट्र का प्रखर सपूत,
दे रहा मुखर सबूत
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3. श्री अरुण कुमार निगम जी
कुण्डलिया छंद : इसमें छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल २४ मात्राएँ, १३ व ११ पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (कुल २४ मात्राएँ, ११ व १३ पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
माना अपने बीच है , एक विभाजन रेख
भाई - भाई क्यों बँटे , जरा सोच कर देख
जरा सोच कर देख , खुदी क्यों गहरी खाई
लड़ने को तैयार , परस्पर भाई - भाई
लेकर दिल में प्यार ,शुरू कर आना-जाना
एक विभाजन रेख , बीच है अपने माना ||
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4.श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
1.
वीर छंद (आल्हा छंद) 16-15 पर यति, चरणान्त गुरु गुरु या लघु लघु गुरु या गुरु लघु लघु यानि ऽऽ या ।।ऽ या ऽ।।)
दुश्मन नित्य रचता जा रहां, षड्यंत्रों के भारी जाल
छद्म भेष धर हमला करता,गले न फिर भी उसकी दाल
दुश्मन के ही छुपे वार से, सरहद हो जाती है लाल
देख न पाया वीर पूत की,जूती का अब देख कमाल |
समझौते का लाभ उठाते, करते रहते सीमा पार
डरता वह भारत वीरों से, अँधियारे में करता वार
तिलक लगा माँ सहर्ष कहती,माँ का दूध लजे ना लाल,
डरे न वीर योद्धा शत्रु से, ऊँचा रखते माँ का भाल |
अब भारत के लोगों जागो, माँ धरती की यही पुकार
कर्णधार शासक अब जागो, जन-जन की है यही गुहार
जर्रा जर्रा है अंगारा, है आहुती को सब तैयार
सूरज है हर बच्चा बच्चा, दुश्मन सुनले अब ललकार |
सबक मिले देश द्रोही को, करना होगा ऐसा काम
कड़े फैसले लेना होगा, सत्ता दे इसको अंजाम
हारे ना अब समझौते से, जन जन का है ये आह्वान
है व्याकुल भारत की जनता, सैनिक चाहे अब फरमान |
2.
दोहे - चार चरण को दोहा जिसमे,विषम चरणों में 13 तथा सम चरणों में 11 मात्राएँ. विषम चरणों के अंत में लघु गुरु या लघुलघुलघु तथा सम चरणों के अंत में गुरुलघु के साथ तुकांत आवश्यक है.
सैनिक ये लगते नहीं. लगते है शैतान
इंसानों की खाल में, आ जाते हैवान |
दुश्मन रचता जा रहा, षडयंत्रों के जाल,
छद्म-वेष में वार से, करदी सरहद लाल |
करते सीमा पार है, मचा रहे आतंक,
बचकर जाना है कहाँ, खा जूते का डंक |
समझौते माने नहीं, तोड़ रहे सम्बंध,
अब पडौस से आ रही, मार काट की गंध |
समझौते की आड़ में, जमा किये हथियार,
निर्दोषों का खून कर, मिथ्या करे प्रचार |
शह पा दूजे देश की, अकड़े तू दिन-रात,
मिली हार को याद कर,क्या तेरी औकात |
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5. आदरणीया कल्पना रामानी जी
कुण्डलिया छंद : इसमें छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
सीमा रक्षा हित खड़े, सीना तान जवान।
अपने अपने देश का, इनको बड़ा गुमान।
इनको बड़ा गुमान, सदा चौकन्ने रहते,
लिए हथेली जान, कष्ट सारे ये सहते।
करे न दुश्मन घात, नहीं हो भंग सुरक्षा,
करते वीर जवान, इसी हित सीमा रक्षा।
प्रहरी ये निज देश के, सच्चे वीर सपूत।
नस-नस में इनकी भरा, जज़्बा-जोश अकूत।
जज़्बा-जोश अकूत, अखंडित इनमें देखा।
किसकी भला मजाल, कि लाँघे लक्ष्मण रेखा।
सीमा पर सिर तान, चौकसी करते गहरी,
सच्चे वीर सपूत, देश के हैं ये प्रहरी।
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6. श्री गणेश जी बागी
घनाक्षरी छन्द (वार्णिक छन्द, 16-15 पर यति)
बार बार लात खाये फिर भी न बाज़ आये,
बेहया पड़ोसी कैसा देखो पाकिस्तान है |
छुप छुप वार करे वादे तार तार करे,
विश्व के बाज़ार मे आतंक की दूकान है |
काली करतूत तेरी कलगी भी काली काली,
लाल अपनी पगड़ी देश की जो शान है |
लड़ ले ऐलान कर रख देंगे फाड़ कर,
ध्यान रहे बाप तेरा यही हिन्दुस्तान है ||
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7. श्री पियुष द्विवेदी ‘भारत’ जी
कुण्डलिया छंद विधान : इसमें छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
भारत तेरा बाप है, सुन रे मूरख पाक !
रह अपनी औकात में, नही सहेंगे धाक !
नही सहेंगे धाक, कि जूता तू खाएगा !
कर बदमाशी बंद, नही तो पछताएगा !
निर्बल तुझको मान, कहे कुछ देश न मेरा !
वर्ना तो तू जान, काल है भारत तेरा !
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8. सुश्री महिमा श्री जी
दोहों : दोहा में चार चरण होते हैं ,विषम चरणों में 13 मात्राएँ तथा सम चरणों में 11 मात्राएँ होती है. विषम चरणों के अंत में लघु गुरु या लघुलघुलघु तथा सम चरणों में गुरुलघु के साथ तुकांत आवश्यक
भारत के हैं सपूत हम ,है ना तुम को ज्ञात
तू तो कपूत हो गया , करे है नित्य घात
हम प्रहरी रहते खड़े , देश प्रेम है जान
कुर्बान हो करे रक्षा , इसमें है शान
लाल है मेरी पगड़ी ,लहू भी मेरा लाल
मत फैला जंजाल तू ,बंद कर हर बबाल
नोच लेंगे तेरा पर ,होगे तुम बर्बाद
देख जूती तेरे सर ,कारगिल है न याद
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9. श्री अनिल चौधरी ‘समीर’ जी
छंद विधान : कुण्डलिया छंद में छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल २४ मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (कुल 24 मात्राएँ, 11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
बॉर्डर वाघा पर खड़े, दोनों ओर जवान।
एक तरफ कश्मीर बसे, दूजे में मुल्तान।।
दूजे में मुल्तान, लगे गिरगिट का बच्चा।
बात करे सब झूठ, करे ना वादा सच्चा।।
कह समीर चिल्लाय, तुझे हम करते ऑर्डर।
कर देंगे बरबाद, अगर तुम लांघे बॉर्डर ।।
रहना है यदि चैन से, सुन ले पाकिस्तान।
बन जा नेक-शरीफ तू, जैसे हो इन्सान।।
जैसे हो इन्सान, बात चाहत की करता।
नेकी जिसका धर्म, बदी से है जो डरता।।
चाहत मानव धर्म, सभी धर्मों का कहना।
गीता और कुरान, सिखाते मिलकर रहना।।
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10. श्री सत्यनारायण सिंह जी
कुण्डलिया छंद विधान : इसमें छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
प्रहरी सीमा पर सजग, खाकी वर्दी अंग।
सोहे कलगी लाल सिर, देखके दुश्मन दंग।।
देखके दुश्मन दंग, पहन तन काला चोला।
भोली सूरत लगे, मगर ना मनका भोला।।
कहे सत्य कविराय, नाग यह काला जहरी।
डसता मौका पाय, कुचल सिर इसका प्रहरी।।
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11. आदरणीया सरिता भाटिया जी
छंद – दोहा (विधान - दोहा में चार चरण होते हैं ,विषम चरणों में 13 मात्राएँ तथा सम चरणों में 11 मात्राएँ होती हैं. विषम चरणों के अंत में लघु गुरु या लघुलघुलघु तथा सम चरणों में गुरु लघु के साथ तुकांत आना आवश्यक है)
सब्र का न इम्तिहान ले, सुनो पाक कमजात
धोखेबाजी छोड़ दे ,खायेगा तू लात ||
पछतायगा पिटकर तू ,रोज लेता पंगा
सरेआम कर दें तुझको ,विश्व में अब नंगा ||
लाल अपनी पगड़ी है,ऊँची हमारी शान
आतंक की तू फैक्ट्री ,तू है बेईमान ||
बेटा अब तू सुधर जा,बक न अनाप शनाप
ढीली तब सलवार हो , आ जाए जब बाप ||
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12. श्री संदीप कुमार पटेल जी
कुण्डलिया छंद विधान : कुण्डलिया छंद में छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
सीमा पर तैनात ये, दोनों दिखते शेर
खाकी वर्दी लाल पग, करती काली ढेर
करती काली ढेर, जड़े है लात करारी
भारत की रख शान, सदा जीते खुद्दारी
सोच समझ नापाक, करा ले इनका बीमा
मिलेगी इनको मौत, मिटा देंगे हम सीमा
मत देखो कश्मीर को, करके तिरछी आँख
गर हम सीधा देख लें, नहीं मिलेगी राख
नहीं मिलेगी राख, मिटा डालेंगे ऐसा
जाओगे तुम भूल, पाक दिखता था कैसा
लातों के तुम भूत, लात खाना ही है लत
सुन खोले तू कान, नज़र भारत पे रख मत
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13. श्री अलबेला खत्री जी
चार पंक्तियों का छंद घनाक्षरी / कवित्त / मनहरण
प्रत्येक पंक्ति में 8,8,8,7 या कुल 31 वर्ण
दीदे फाड़ फाड़ मुझे काहे देखता है बेटा,
यदि बाप कहके पुकार नहीं सकता
कशमीर की तो बात छोड़ मेरा जूता देख,
इसे भी तू पाँव से उतार नहीं सकता
तेरा ये सौभाग्य और मेरा हतभाग्य है कि
मेरे हाथों स्वर्ग तू सिधार नहीं सकता
बांध रखे हाथ मेरे शिखंडी हुकूमत ने,
चाह के भी तुझे लात मार नहीं सकता
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14. श्री अविनाश बागडे जी
कुण्डलिया छंद विधान : कुण्डलिया छंद में छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
कहता है ये चित्र
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जूता मेरा मखमली ,नहीं समझना यार .
शीश फोड़ दें कसम गर! ,आज्ञा दे सरकार .
आज्ञा दे सरकार , ईट से ईट बजा दें .
भर के भूंसा खूब ,घरों में तुझे सजा दें .
कहता है अविनाश , चले ना तेरा बूता !
एक बार उठ जाय ,जरा ये काला जूता!!
कहता है अविनाश
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नहीं मानता मै कभी , खतरा पाकिस्तान .
खतरे की घंटी बनी , अपनी ही संतान .
अपनी ही संतान ,सियासी पेट बड़े हैं .
भूख मिटाने सभी ,यहाँ गद्दार खड़े हैं .
कहता है अविनाश ,कौन जो नहीं जानता?
देश बड़ा खुशहाल ,आज मै नहीं मानता !!!
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15. श्री कुमार गौरव अजीतेंदु जी
(आल्हा छंद)
वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति 16-15 मात्रा पर नियत होती है. छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है. इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं. कथ्य अकसर ओज भरे होते हैं.
इस छंद को आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहा जाता है.
शठ, कायर, कुंठित नापाकी, भूल नहीं जाना औकात।
तुझे मसलने को काफी है, हिन्दी वीरों की इक लात।
विश्वपटल से मिट ही जाती, अबतक तुम दनुजों की जात।
विवश मगर हम हो जाते हैं, वोटबैंक की बिछी बिसात।
चार बार आया लड़ने तू, थूक-थूक चाटा हरबार।
इकहत्तर में अंग गँवाया, तो करगिल में मान अपार।
भूख नाचती घर में फिर भी, जुटा रहा घातक हथियार।
अरे रक्त ही गंदा तेरा, औ' बर्बर, वहशी संस्कार।
छुरा पीठ में घोंप रहा है, फेंक-फेंक अनगिन छलजाल।
चिनगारी देखी है तूने, देखा नहीं अभीतक ज्वाल।
अबकी बजने दे रणभेरी, लाएंगे ऐसा भूचाल।
घर में घुस-घुसकर मारेंगे, खींच-खींचकर तेरी खाल।
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16. श्री रविकर जी
कुण्डलियाँ छंद विधान : इसमें छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
नौबत-बाजे द्वार पर, किन्तु कँटीली बाड़ |
काट फिदायीन घुस रहे, बरबस मौका ताड़ |
बरबस मौका ताड़, काट के शहरी सैनिक |
तोड़े गोले दाग, सीजफायर वो दैनिक |
केवल कड़े बयान, यहाँ बाकी नहिं कुब्बत |
कल देते गर मार, आज नहिं होती *नौबत ||
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17. श्री अरुण शर्मा ‘अनंत’ जी
वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति 16-15 मात्रा पर नियत होती है. छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है. इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं. कथ्य अकसर ओज भरे होते हैं.
इस छंद को आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहा जाता है.
पाकिस्तानी थर थर काँपे, वीर भरें जब जब हुंकार,
गीदड़ जैसे डरके भागें, हिन्द शेर जब करें शिकार,
जूता मेरा हिन्दुस्तानी, नोक बड़ी तीखी तलवार
जूते की भाषा तुम समझो, रास न आता तुमको प्यार,
मैं भारत का वीर सिपाही, तू नापाकी काला चोर,
चाहे जितनी कोशिश करले, नहीं चलेगा हमपे जोर,
मन के भीतर मैल भरा है, और इरादें हैं नापाक
पाँव उठा कर दिल करता है, तोडूं तेरी गन्दी नाक
सर पर पगड़ी लाल चढ़ाके, और पहन खाकी परिधान
तेरी ऐसी तैसी कर दूँ, जब चाहूँ मैं पाकिस्तान..
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18. श्री रवि बिहारी जी
घनाक्षरी - 31 वर्ण, पदांत लघु गुरु से.
पाकिस्तानी प्रधान से , जान बूझ अंजान से ,
भटके ना वो ज्ञान से , बोल दे नापाक को ,
नाप दें पाँवो तले या ना समझ बन भले ,
दो टुकड़ा की पहले , काट तेरे नाक को ,
ऊपर नीचे तू काला , तू बुरी नजर वाला ,
समझ जा अब लाला , फोर दूंगा टाक को ,
घटिया हैं तेरे आका , फिर से इधर ताका ,
मिटा दूंगा अब पक्का , आतंकी की धाक को ,
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19. श्री अजीत शर्मा ‘आकाश’ जी
कुण्डलिया छंद विधान : कुण्डलिया छंद में छः चरण होते हैं ! प्रथम दो चरण दोहा (कुल 24 मात्राएँ, 13 व 11 पर यति) तथा अंतिम चार चरण रोला (11 व 13 पर यति) होता है ! छंद का पहला और अंतिम अक्षर एक ही होता है.
[एक]
हम तो स्वागत के लिए प्रस्तुत हैं दिन-रात
लेकिन मन में छल रखा, तो खाओगे लात.
तो खाओगे लात, जो हरदम याद रहेगी
और करोगे प्रेम, तो रस की धार बहेगी.
भारत माँ की शान नहीं होने देंगे कम
तन-मन-धन की भेंट चढ़ाने को तत्पर हम.
[दो]
ऐसे क्या समझायें हम तुम को भाई जान
सारी दुनिया ने कहा भारत देश महान.
भारत देश महान, न हलके में लो प्यारे
यदि मन में लें ठान, दिखा दें दिन में तारे
निभा रहे हैं साथ तुम्हारा जैसे-तैसे
बहुत हो चुका पाक, न अब इतराओ ऐसे
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20. श्रीमति गीतिका ‘वेदिका’ जी
सार छंद : सार/ललित छंद 16, 12 मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु गुरु अर्थात s s से,
छन्न पकैया छन्न पकैया, भारत देश हमारा
अरे नहीं हम जुदा-जुदा है, इक ही पिता हमारा ॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, सुन लो ओ गद्दारो
हिम्मत हो ललकारो सम्मुख, पीठ न खंजर मारो ॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, लिया हमारा पानी
हमने अपना जाना तुमको, हाय अरे! नादानी ||
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Tags:
इस उत्कृष्ट आयोजन के लिए पूरे OBO परिवार का हार्दिक अभिनन्दन-
सादर
इस आयोजन के सफल संचालन तथा सभी रचनाओं को एक साथ प्रस्तुत करने के श्रमसाध्य कार्य के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय सौरभ जी ! सादर !
आदरणीय सौरभ सर एवम आदरणीया डॉ. प्राची मैडम इस सफल आयोजन तथा रचनाओं के संकलन जैसा श्रम साध्य काम को सफलता पूर्वक करने के लिये आपको ढेर सारी बधाइयाँ
आदरणीया प्राची दी एवं सौरभ सर जी आप दोनों का हार्दिक बधाई प्राची दीदी जी ने इतनी व्यस्तता के बावजूद सभी रचनाएँ एक साथ संकलित और क्रमबद्ध करके एक सराहनीय कार्य किया है इस हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें.
इस चित्र पर बड़ी ही मजेदार रचनाएँ हुई है. इसी बीच में आ. अरुण निगम सर की पंक्तियों ने दिल को छू लिया-
माना अपने बीच है , एक विभाजन रेख
भाई - भाई क्यों बँटे , जरा सोच कर देख
जरा सोच कर देख , खुदी क्यों गहरी खाई
लड़ने को तैयार , परस्पर भाई - भाई
लेकर दिल में प्यार ,शुरू कर आना-जाना
एक विभाजन रेख , बीच है अपने माना ||
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