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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ तिरसठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम -  छंद मनहरण घनाक्षरी 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

18 जनवरी’ 25 दिन शनिवार से

19 जनवरी 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

18 जनवरी’ 25 दिन शनिवार से 19 जनवरी 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ भाईजी, 

ये टिप्पणी प्रसाद है, भाईजी धन्यवाद है, सीख पाया जितना भी, उसका ये सार है|

छंदों को सही लिखना,चित्रानुसार कहना, आप ही बतलाएँ  है, आपका आभार है||

आ. भा ई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण भाईजी 

हार्दिक धन्यवाद आभार आपका  

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को महाकुम्भ से जोड़कर आपने बहुत सुन्दर घनाक्षरी रची हैं. यदि गाकर रचा जाता तो मात्र शब्दों के हेरफेर से ही गेयता में और भी वृद्धि होती. सादर 

आदरणीय अशोक भाईजी, 

हार्दिक धन्यवाद प्रशंसा के लिए | गेयता के संबंध में आप सही हैं| 


कुम्भ लगा प्रयाग में, संतो का जमघट है,आमजन भी आ जुटे, मुक्ति स्नान करने।
पर्व सनातन का है, लिए कामना मोक्ष की, जन्मों के कष्टों से सब, आये पार तरने।।
मिला सौभाग्य जिनको, संगम तट आने का, बहे जहाँ पर गंगा, जमुना , सरस्वती,
बिना प्रभु कृपा कब, कौन पहुँचा यहाँ है, चाहे इच्छा रही हो, कितनी बलवती।।
*
कोई पुण्य कमाने को, कोई पापों को धोने, कोई बस सोचकर, पर्यटन आया है।
फिर भी सत्य यही है, फल मिलना आने का, पर प्रभु ही जानते, कौन क्या कमाया है।।
सच्चे मन से आकर, तन मन जिसने धोए, सफल उसी का आना, बाँकी तो व्यर्थ है।
किसी को भीड़ व्यापार, किसी को बस मौज है, सबको अपना-अपना, कुम्भ का अर्थ है।।
*
बरसों बाद का मेला, विशेष ग्रह संयोग, सक्षम अक्षम जो, जा सको वो झट जाओ।।
विविध रंग जीवन के, संगम पर देखो, भले न पुण्य कमाओ, मन की शांति पाओ।।

देखना खुशी मनाते, हर उस निर्धन को, भूल अभाव जीवन के, जो चला आया है
उसके मुख तेज देखना, जो है बस बैरागी, साथ देखना उसको भी, जो खूब अघाया है।
**
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण भाईजी 

चित्र  पर बहुत कुछ लिख गए | प्रयास सराहनीय है | पर छंद के नियमों का पालन नहीं हो पाया, विशेषकर पंक्तियों के मध्य और  अंत में |

आदरणीय सौरभजी  ही इस पर सही जानकारी और सुझाव दे सकते हैं| 

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर आपकी उपस्थिति व कमियों को उजागर करने के लिए आभार।

इस छंद पर पहला प्रयास है। यदि कमियों पर विस्तृत मार्गदर्शन मिले तो प्रयास को बेहतर करने में मदद मिलेगी। सादर..

आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रदत्त चित्र को बहुत शाब्दिक किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी छंदों में गेयता और शिल्प एक बार और ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. सादर 

मनहरण घनाक्षरी

_________

लो कुंभ का मेला जमा,भाव भक्ति मन रमा,धर्म का झंडा उठाये,भीड़ में उमंग है

डुबकियाँ लगा रहे,पुण्य सब कमा रहे,कुंभ की तो शान देख,आसमान दंग है

तीर संगम के नहीं,भेदभाव कुछ कहीं,एक ही विश्वास और,एक धर्म रंग है

शीत की हो क्यों फिकर,मस्त हैं सारे इधर,झूमते और नाचते,साधुओं का संग है

____

मौलिक व अप्रकाशित 

आदरणीया प्रभाजी

बहुत ही सुन्दर तरीके से हर पद में तुकांतता का ध्यान रखते हुए मनहरण घनाक्षरी की रचना की है आपने| हार्दिक बधाई|

भाव भक्ति मन रमा, ........भक्ति में है  मन रमा,

तीसरी पंक्ति का अर्थ स्पष्ट होते हुए भी कुछ कमी लगती है 

संगम के आस पास , करते सभी निवास, कहीं भेद भाव नहीं, एक धर्म रंग है | (( या कुछ इसी प्रकार ))

मनहरण घनाक्षरी

 

लगता न पल एक, शंख कोई फूँक दे तो, सोते  सनातनियों  को, कभी  कहीं जाग में।

बतलाती  भीड़  यही, डुबकी  लगाती यहाँ, आये  जैसे  कोटि-कोटि, बतख  तडाग में।

रात  भी  ढली न  और, घाट पाट  चुके  लोग, झूम रहे ऐसे  जैसे, डोलते  हैं  फ़ाग में।

साधु और संतों संग, कुम्भ का है मेला लगा, धर्म ध्वजा साथ लिए, पावन प्रयाग में।।

#

~ मौलिक/ अप्रकाशित.

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