For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काफि़या को लेकर आगे चलते हैं।

पिछली बार अभ्‍यास के लिये ही गोविंद गुलशन जी की ग़ज़लों का लिंक देते हुए मैनें अनुरोध किया था कि उन ग़ज़लों को देखें कि किस तरह काफि़या का निर्वाह किया गया है। पता नहीं इसकी ज़रूरत भी किसी ने समझी या नहीं।

कुछ प्रश्‍न जो चर्चा में आये उन्‍हें उत्‍तर सहित लेने से पहले कुछ और आधार स्‍पष्‍टता लाने का प्रयास कर लिया जाये जिससे बात समझने में सरलता रहे।

काफि़या या तो मूल शब्‍द पर निर्धारित किया जाता है या उसके योजित स्‍वरूप पर। पिछली बार उदाहरण के लिये 'नेक', 'केक' लिये गये थे जिनमें सिद्धान्‍तत: मूल शब्‍द के अंदर नहीं घुसना चाहिये काफि़या मिलान के लिये और काफि़या 'क' पर निर्धारित मानना चाहिये लेकिन फिर भी हमने 'न' और 'क' पर 'ए' स्‍वर के साथ काफि़या निर्धारिण की स्थिति देखी। और यह देखा कि ऐसा करने पर किसी शेर में फेंक नहीं आ सकता क्‍यूँकि 'क' के पूर्व-स्‍वर 'ऐ' का ध्‍यान रखा जाना जरूरी है यह ऐं नहीं हो सकता और अगर ऐसा किया जाता है तो यह एक गंभीर चूक मानी जायेगी जिसे बड़ी ईता या ईता-ए-जली कहा जाता है। अत: एक सुरक्षित काफि़या निर्धारण तो यही रहेगा कि मूल शब्‍द के अंतिम व्‍यंजन अथवा व्‍यंजन+पश्‍चात स्‍वर पर काफि़या निर्धारित कर दिया जाये जिससे पालन दोष की संभावनायें कम हों। जैसे 'थका' 'रुका' जो क्रमश: मूल शब्‍द 'थक' और 'रुक' के रूप हैं।

इसका और विस्‍तृत उदाहरण देखें; 'पक' और 'महक' मत्‍ले में काफि़या रूप में लिये जाने से 'पलक', 'चमक', 'चहक' आदि का उपयोग तो शेर में किया जा सकेगा लेकिन मत्‍ले में 'दहक' और 'महक' काफि़या के रूप में ले लेने से सभी काफि़या 'हक' पर समाप्‍त होंगे अन्‍यथा काफि़या पालन में दोष की स्थिति बन जायेगी। काफि़या पालन के दोष गंभीर माने जाते हैं।

एक अन्‍य उदाहरण देखें कि अगर आपने 'बस्‍ते', 'चलते' मत्‍ले में काफि़या के रूप में लिये तो बाकी अश'आर में 'ते' पर काफि़या अंत होगा लेकिन 'ढलते', 'चलते' मत्‍ले में काफि़या के रूप में लिये तो बाकी अश'आर में ऐसे मूल शब्‍द लेने होंगे जो 'ल' पर समाप्‍त होते हों और जिनके अंत में 'ते' बढ़ा हुआ हो।

यहॉं एक बात समझना जरूरी है कि अगर आपने 'ढहते', 'चलते' मत्‍ले में काफि़या के रूप में लिये तो काफि़या में ईता-ए-ख़फ़ी या छोटी ईता का दोष आ जायेगा। इसे समझने की कोशिश करते हैं। हो यह रहा है कि दोनों शब्‍दों में 'ते' मूल शब्‍द पर बढ़ा हुआ अंश है और काफि़या दोष देखने के लिये इसे हटाकर देखने का नियम है जो यह कहता है कि मत्‍ले में काफि़या मूल शब्‍द के स्‍तर पर मिलना चाहिये और ऐसा नहीं हो रहा है तो छोटी ईता का दोष आ जायेगा।  

इसका एक हल यह रहता है कि एक पंक्ति का काफि़या ऐसा लें जो बढ़े हुए अंश पर समाप्‍त हो रहा हो और दूसरी पंक्ति में काफि़या का शब्‍द मूल शब्‍द हो। जैसे कि 'चम्‍पई' और 'ढूँढती' जिसमें 'चम्‍पई' मूल शब्‍द है और 'ढूँढती' है 'ढूँढ' पर 'ती' बढ़ा हुआ अंश। इस उदाहरण में काफि़या होगा 'ई' अथवा इसका स्‍वर स्‍वरूप जैसा कि 'ती' में आया है। अब इसमें आदमी, जि़न्‍दगी आदि सभी शब्‍द काफि़या हो सकते हैं।

एक अन्‍य हल होता है कि काफि़या दोनों पंक्तियों में मूल शब्‍द पर ही कायम किया जाये।

जितना मैनें समझा है उसके अनुसार मत्‍ले में काफि़या निर्धारण में ईता दोष छोटा माना जाता है और अगर मत्‍ले में काफि़या निर्धारण ठीक किया गया है लेकिन उसका सही पालन नहीं किया गया है तो वह दोष गंभीर माना जाता है।

अगर मत्‍ले के शेर में ही बढ़े हुए अंश पर काफि़या निर्धारित किया  जाये तो ईता दोष आंशिक रहकर छोटी ईता या ईता-ए-ख़फ़ी हो जाता है। जबकि मत्‍ले में काफि़या निर्धारण मूल शब्‍द पर किया गया हो लेकिन उसके पालन में किसी शेर में ग़लती हुई हो तो ईता दोष गंभीर होकर बड़ी ईता या ईता-ए-जली हो जाता है।

हिन्‍दी ग़ज़लों में छोटी ईता का दोष बहुत सामान्‍य है और इसे कम लोग पहचान पाते हैं इसलिये इस पर चर्चा कम होती है।

अब लेते हैं प्रश्‍न और उनके उत्‍तर:

१. ईता दोष की परिभाषा क्या हुई? उदाहरण सहित समझाएं.

इसके उदाहरण और विवरण उपर दे दिये गये हैं।

२. अगर 'चिरागों' और 'आँखों' में ईता दोष नहीं है क्योंकि काफिया स्वर का है(ओं का), तो फिर 'दोस्ती' और 'दुश्मनी' में ईता दोष क्यों हुआ? यहाँ भी तो काफिया 'ई' के स्वर पर निर्धारित हुआ.  जो समझ आ रहा है वो यह कि 'चिरागों' और 'आँखों' में केवल शब्दों का बहुवचन किया है और शब्द का मूल अर्थ नहीं बदला है जबकि 'दोस्ती' और 'दुश्मनी' में 'ई' बढ़ाने से शब्द का अर्थ ही बदल गया है. क्या मेरा यह तर्क ठीक है?

अब जब हम काफि़या को समझने का प्रयास कर चुके हैं, दोष पर भी बात कर लेना अनुचित नहीं होगा। 'चिरागों' और 'आँखों' को मत्‍ले में लेना निश्चित् तौर छोटी ईता का दोष है। दोनों के मूल शब्‍द 'चिराग' और 'आँख' मत्‍ले में काफि़या नहीं हो सकते। यही स्थिति 'दोस्ती' और 'दुश्मनी' की है। इनमें भी मूल 'दोस्‍त' और 'दुश्‍मन' मत्‍ले में काफि़या नहीं हो सकते। 

३. 'गुलाब' और 'आब' में अगर दोष है तो 'बदनाम' और 'नाम' के काफियों में दोष क्यों नहीं है?

'नाम' और 'बदनाम' में 'नाम' शब्‍द पूरा का पूरा बदनाम में तहलीली रदीफ़ के रूप में है इसलिये 'नाम' इस प्रकरण में काफि़या नहीं हो सकता।
अब इसे अगर हिन्‍दी के नजरिये से देखें और कहें कि हिन्‍दी में बदनाम एक ही शब्‍द के रूप में लिया गया है तो बाकी काफि़या केवल वही शब्‍द हो सकेंगे जो 'नाम' में अंत होते हैं। जैसे हमनाम, गुमनाम आदि।

4. सिनाद के ऐब पर  पर भी थोड़ा विस्तार से बताएं|

सिनाद दोष मत्‍ले में होने की संभावना रहती है जब काफि़या के मूल शब्‍द में जिस व्‍यंजन पर काफि़या निर्धारित किया जाये वह दोनों पंक्तियों में स्‍वरॉंतर रखता हो।

जैसे 'रुक' और 'थक' में स्‍वरॉंतर है। 'छॉंव' और 'पॉंव' तो ठीक होंगे लेकिन 'पॉंव' और 'घाव' स्‍वरॉंतर रखते हैं।

 

5. 'झंकार' एवं 'टंकार' का प्रयोग भी सही रहेगा ,,, वस्‍तुत: इनमें 'कार' तो दोनों पंक्तियों में तहलीली रदीफ़ की हैसियत रखता है।

'घुमाओ' और 'जमाओ' का 'ओ' तो वस्‍तुत: तहलीली रदीफ़ है।

इन् दो बात में विरोधाभास दिख रहा है 'झंकार' एवं 'टंकार' में "कार"  तहलीली रदीफ़ है तो 'घुमाओ' और 'जमाओ' में केवल "ओ" क्यों  "माओ" तहलीली रदीफ़ होना चाहिए ?

उत्‍तर:

इसे इस रूप में देखें कि घु और ज तो काफि़या के रूप मे स्‍वीकार नहीं हो सकते; ऐसी स्थिति में काफि़या 'मा' पर स्‍थापित होगा और शायर को हर काफि़या 'माओ' के साथ ही रखना पड़ेगा जबकि 'झंकार' एवं 'टंकार' में 'अं' स्‍वर पर काफि़या मिल रहा है। काफि़या निर्धारण में आपको मत्‍ले की दोनों पंक्तियों में आने वाले शब्‍दों में पीछे की ओर लौटना है और जहॉं काफि़या मिलना बंद हो जाये वहॉं रुक जाना है, इसके आगे का काफि़या-व्‍यंजन और स्‍वर मिलकर काफि़या निर्धारित करेंगे और अगर केवल स्‍वर मिल रहे हैं तो केवल स्‍वर पर ही काफि़या निर्धारित होगा। 

शुद्ध काफि़या की नज़र से देखेंगे तो 'झंकार' एवं 'टंकार' के साथ ग़ज़ल में सभी काफि़या 'अंकार' में अंत होंगे। अगर केवल 'र' पर या 'आर' पर समाप्‍त किये जाते हैं वह पालन दोष हो जायेगा।

6. काफिया और रदीफ़ की चर्चा में बहुत कुछ नयी जानकरी मिली, मेरा प्रश्न है मतले के पहले मिसरे में काफिया में नुक़ता हो बाकी शेरों में भी क्या नुक़ते वाले शब्द आयेंगे या नुक़ते रहित जैसे सज़ा, बजा

 

उत्‍तर:

यहॉं महत्‍वपूर्ण यह है कि नुक्‍ते से स्‍वर बदल रहा है कि नहीं। बदलता है। ऐसी स्थिति में इस स्‍वर का प्रभाव तो काफि़या पर जा रहा है और काफि़या नुक्‍ते के स्‍वर से व्‍यंजन का घनत्‍व कम होता है उच्‍चारित करके देखें। आपने जो उदाहरण दिये इनमें काफि़या नुक्‍ते के व्‍यंजन के साथ 'आ' स्‍वर पर निर्धारित हो रहा है। 'सज़ा' और शायद आपने 'बज़ा' कहना चाहा है जो त्रुटिवश 'बजा' टंकित हो गया है। अगर 'सज़ा' और 'बज़ा' लेंगे तो नुक्‍ते का पालन करना पड़ेगा। अगर 'सज़ा' और 'बजा'' लेंगे तो नुक्‍ते का पालन नहीं करना पड़ेगा क्‍योंकि फिर 'ज' और 'ज़' में साम्‍य न होने से काफि़या केवल 'ओ' के स्‍वर पर रह जायेगा।

 

7. झंकार और टंकार में स्वर साम्य है और "अंकार" दोनों में सामान रूप से विद्यमान है इसलिए "अंकार" काफिया होगा पर टंकार और संस्कार में स्वर साम्य तो है पर इस बार केवल "कार" ही उभयनिष्ट है अतः इस दशा में "कार" को ही काफिया के तौर पर लिया जाएगा. इसी तरह आकार और आभार में स्वर साम्य है पर केवल "आर" उभय्निष्ट है अतः "आर" ही काफिया होगा. 

नुक्ते से सावधान रहना बहुत जरूरी है क्योंकि नुक्ते का प्रयोग उर्दू लब्ज़ के मायने भी बदल देता है जैसे अज़ीज़ और अजीज़. यहाँ पहले का अर्थ प्रिय, प्यारा है जब की दूसरे का अर्थ है नामर्द, नपुंसक. हिन्दी में ग़ज़ल लिखते वक्त उर्दू शब्दों का प्रयोग बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए.

उत्‍तर:

इसमें यह देखना जरूरी है कि झंकार और टंकार स्‍वयंपूर्ण मूल शब्‍द हैं अथवा नहीं। झंकार और टंकार और हुंकार क्रमश: झं, टं और हुं की ध्‍वनि उत्‍पन्‍न करने की क्रिया हैं। संस्‍कार मूल शब्‍द है टंकार के साथ मत्‍ले में काफि़या के रूप में आ सकता है। ब्‍लॉग पर मेरा उत्‍तर अपूर्ण अध्‍ययन पर था। बाद में शब्‍दकोष देखने से स्‍पष्‍ट हुआ।

 

Views: 6218

Replies to This Discussion

धन्यवाद तिलक राज जी बहुत अच्छे से समझते हे आप ,

आदरणीय तिलकराज जी! क्या किसी मतले में 'ख़ुश्बू' और 'गुफ़्तगू' को काफिये की तरह प्रयोग किया जा सकता है?

'ख़ुश्बू' और 'गुफ़्तगू' दोनों मूल शब्‍द हैं और इनमे से 'ऊ' का स्‍वर अलग नहीं किया जा सकता है। अलग करने पर निरर्थक शब्‍द बचेंगे। ऐसे में केवल 'ऊ' के पर स्‍वर मेरी समझ से तो मत्‍ले में काफि़या ठीक ही रहेगा। बढ़ा ह़आ अंश हटाकर तभी देखा जा सकता है जब यह मूल शब्‍द से बढ़ा हुआ हो।

सिनाद दोष पर जो स्‍वरॉंतर की बात कही है वह काफि़या के शब्‍द से पूर्व के स्‍वर से संबंधित है। काफि़या के व्‍यंजन के बाद 'अ' से भिन्‍न कोई स्‍वर आने पर पूर्व-स्‍वर नहीं देखा जाता है लेकिन काफि़या का व्‍यंजन 'अ' स्‍वर पर हो तो यह देखना आवश्‍यक हो जाता है।

उदाहरण के लिये 'थका' और 'रुका' मान्‍य हैं लेकिन 'जाग' और 'रोग' में सिनाद दोष है।

 

मेरा एक विशेष निवेदन है कि टिप्‍पणी में मेरा नाम या इस प्रकार का कोई और संबोधन अनावश्‍यक है। हम सभी यहॉं परस्‍पर चर्चा के माध्‍यम से प्रयास कर रहे हैं इस विधा को समझने का। न कोई गुरू न छात्र। भावनायें तो शब्‍दों में संप्रेषित रहती ही हैं, उन्‍हें संबोधन की आवश्‍यकता नहीं होती। मैं स्‍वयं ग़ज़ल का विद्यार्थी ही हूँ। आलेख किसी को तो प्रस्‍तुत करने ही थे, यह दायित्‍व मुझे दिया गया, निबाह रहा हूँ; इससे गुरू नहीं हो जाता।

प्रश्‍न आयें तो अपनी समझ रखने का अधिकार सभी को समान रूप से है।

बड़प्पन की निशानी।

तिलक जी, बहुत ही बढ़िया पोस्ट है. बहुत सी बातें समझ आईं. प्रशन लेकर फिर आता हूँ.

आदरणीय तिलकराज जी इतनी शानदार पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें तथा बतायें क्या इन शब्दों में सिनाद दोष है

चला,  मिला  । घुला, मिला । काला, पीला । सादर

आपके दिये उदाहरण सिनाद दोष से मुक्‍त हैं।

उपर टिप्‍पणी में मैनें यह स्‍पष्‍ट करने का प्रयास किया है कि ' सिनाद दोष पर जो स्‍वरॉंतर की बात कही है वह काफि़या के शब्‍द से पूर्व के स्‍वर से संबंधित है। काफि़या के व्‍यंजन के बाद 'अ' से भिन्‍न कोई स्‍वर आने पर पूर्व-स्‍वर नहीं देखा जाता है लेकिन काफि़या का व्‍यंजन 'अ' स्‍वर पर हो तो यह देखना आवश्‍यक हो जाता है।

उदाहरण के लिये 'थका' और 'रुका' मान्‍य हैं लेकिन 'जाग' और 'रोग' में सिनाद दोष है।' 

तिलक जी मैंने बहुत पहले एक मतला लिखा था 
रहने दिया जब ख़त खुला 
रुसवाई का फिर क्या गिला 
यह मतला आपके बताये नियम से तो सही है और इसमें सिनाद दोष नहीं आना चाहिए 
परन्तु इलाहाबाद के एक बड़े अरूजी श्री बुद्धि सेन शर्मा जी ने इस कारण ही इसे ख़ारिज कर दिया है 

मैं तो यही कह सकता हूँ अब तक देवनागरी लिपि में जितना ग़ज़ल ज्ञान उपलब्‍ध है उसमें सिनाद दोष पर बहुत संक्षिप्‍त विवरण है। बुद्धि सेन शर्मा जी ने जो कहा उससे असहमत होने का मेरे पास तो कोई कारण नहीं है, निश्चित् ही इस दोष पर और बहुत कुछ विवरण होगा जो उन्‍हें ज्ञात होगा। उन्‍होंने जो कहा उसके बहुत से कारण हो सकते हैं।

आपने जो काफि़या लिये थे उनमें एक मूल शब्‍द है और एक बढ़ा ह़आ और यह मत्‍ला गैर-मुरद्दफ़ भी है।

काफि़या पर चर्चा का आलेख तैयार करने के लिये मैनें करीब तीन सौ ग़ज़लें पढ़कर समझने का प्रयास किया और ये ग़ज़लें जाने माने शुअरा की पुस्‍तको से थीं।

मेरा यह मानना है कि अगर हम हर्फ़े-रवी के दोनों तरफ़ स्‍वरसाम्‍यता देखने का प्रयास करेंगे तो एक प्रश्‍न का उत्‍तर देना होगा और वह है कि काफि़या कहॉं निर्धारित हुआ।

उदाहरण के लिये हमने 'जैसा' और 'वैसा' मत्‍ले में बतौर काफि़या लिया तो इसमें आप काफि़या किसे मानेंगे; 'अै' के स्‍वर पर या 'स' के साथ 'आ' के स्‍वर पर। मेरी समझ से तो यहॉं काफि़या 'अै' के स्‍वर पर निर्धारित हो गया और 'सा' का अस्तित्‍व तहलीली रदीफ़ का हो गया। अब यह कहा जा सकता है कि ऐसे तो 'खेल' और 'धकेल' में भी होगा कि काफि़या 'अे' पर निर्धारित हो गया और 'ल' तहलीली रदीफ़ हो गया, लेकिन यहॉं एक अंतर है कि 'ल' में केवल 'अ' स्‍वर है और ऐसे में पूर्व-स्‍वर में साम्‍यता आवश्‍यक है भले ही वह 'अ' के स्‍वर में हो जैसे कि 'कल' 'ढल' 'चल' आदि।

अगर बुद्धि सेन शर्मा जी से संपर्क हो सके तो उनके सहयोग से इसपर और स्‍पष्‍टता आ सकती है।

 

tilak ji,

मेरे पास एक पुस्तक है "हिन्दुस्तानी गज़लें" देश के सबसे बसे प्रकाशक राजपाल एंड सन्स से प्रकाशित और केवल देश के बड़े व स्थापित ग़ज़लकारों की ग़ज़ल को छापा गया है
पिछले दिनों मैं उस पुस्तक में देश के शीर्ष ग़ज़लकारों की ग़ज़ल में दोष चिन्हित करने लगा तो देख कर ही मेरा दिमाग घूम गया :(
२०० ग़ज़ल में से २५ गजल अरूज की दृष्टि से दोष पूर्ण है,,, अब आप नाम न ही पूछे तो बेहतर ...

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, आपकी इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा। "
10 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
38 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
54 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
56 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service