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चिहुँकि उठिह 

भोर भइला के पहिले 

जब 

देखिह सपनवा मिलनवा के 

धीरज जनि छोड़िह 

कदम जनि मोड़िह 

परेम पग रहिया 

खनकि उठिह 

जस 

गीत काढ़े कलाई कंगनवा से 

कागा उचरिहें जब 

अंगना सगुनवा 

हमसे मिले, मोरे 

प्रीत क पहुनवा 

लुकाछिपी करत 

निकलि अइह 

जस 

बदरी से निकसे चंदरमा हे 

निनिया खुली त 

सपना सजाइल रही 

माँग 

सजना-सेनुरवा 

भराइल रही 

जस 

भोरे पुरूब असमनवा के । 

- - - प्रमोद श्रीवास्तव - - - 

अप्रकाशित व मौलिक 

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Replies to This Discussion

आदरणीय प्रमोद भाई, राउर पहिल रचना देख रहल बानीं का हम ? बाकिर नेह आ छोह के निकहा रसधार बहवले बानीं रउआ. गीत पक्ष के कमनीयता आ मुलामियत त बड़ले बा राउर एह रचना में नैसर्गिक उछाह बड़ुए जवन एह भासा के बड़हन तागत हऽ. बस एगो निहोरा बा. उमेद बड़ुए जे रउआ साहित्यिक सुझाव का नजर से देखत आ सँकारत ओह के मान देबि.  गीत जब साहित्यिक हो जाले त लोकगीत से तनिका फरक बेवहार करे लागेले. तब शिल्पपक्ष प धेयान दिहल उचित बुझाए लागेला. रउआ एह दिसाईं गँभीरता से सोचत रचनात्मक कोरसिस आ रचना-अभ्यास करत रहब.

दिल से धन्नबाद आ शुभकामना..

जै जै

आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी, राउर  सूझाव पढि के जियरा गदगदाइ गइल बा।तनि अउरि खोलि के समझइतीं अपना मे सुधारे खातिर अउर सहुलियत मिलि जाइत। राहि देखावे खातिर आभार । 

आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी, रउआ एह मंच पर बनल रहीं आ रचनाकर्म के कूल्हि पहलू प निकहे धेयान बनवले रहीं. सभ बिन्दु एकैगो करत बुझात चल जाई.

जै जै 

जै जै ।

भावो  से ओत प्रोत इस रचना के लिए  हार्दिक धन्यवाद i 

.सादर

राउरा के सादर आभार ।

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