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बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,

बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,
आग लगइबु का हो गोरिया बीच बजरिया आई के ,

चाल बा तोहर नागिन जइसन अचरा जब सरकावेलू ,
देख के मुखड़ा मन इ बोले अंगिया काहे न लगावे लू ,
तोहरो सुरतिया मनवा मोहे काहे जालू ललचाई के ,
बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,

जवन तू कह्बू उहे करब हमरा के अपनाs लs हो ,
तहरे खातिर जियत बानी मन के आसरा पूरा द हो ,
मन में तूही बsसल बारू रखs अंगिया से हमके लगाइ के ,
बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,

तन मिली त मनवा खिली जियरा भरी उड़ान हो ,
तहरे अईला से हो गोरिया आवे ला ईहा बहार हो ,
मुश्कि तोहार बा मनमोहन खुश बानी तोहे पाई के ,
बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,

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Replies to This Discussion

आग लगाइबु का हो गोरिया बिच बजरिया आई के ,
...................................................................
जवान तू कह्बू उहे करब हमरा के अपना ल हो ,
तहरे खातिर जियत बानी मन के आसरा पूरा द हो ,
....................................................................जय हो गुरुजी की। रवि भाई ए तहार गीत पढ़ि के मन गदगदा गइल....अउर हाँ एइसन गीतन के कलेक्सन के एगो बहुत बढ़िया एलबम निकालल जा सकेला...त भाई देर मति करS...कुछु अउरी एइसने गीत सुना दS इहाँ अउर भेर एइसन करS की एगो एलबमो तइयार हो जाव...आज के सुनवइया लोगन के माँग के हर तरह से पूरा करत इ गीत लाजवाव बा।। जय हो। जय हो। जय हो।।
हई देखs हो भाई बवाल कर देहलस ,
गुरु जी के लेखनी कमाल कर देहलस,
इ त आग लगावे के पूरा बेवस्था हो गइल,
OBO बहुतन के नींद हराम कर देहलस,

जय हो गुरु जी , जब राउर ई हाल बा त नवहन के का होई , रउवा त गरदा उड़ा देहनी महाराज , प्रभाकर भईया ठीके कहत बाडन अब एल्बम निकाल ही दिही , बहुत बढ़िया , नीमन गीत लिखले बानी रौवा , बिलकुल फ़िल्मी अंदाज, जय हो,
चाल बा तोहर नागिन जइसन अचरा जब सरकावेलू ,
देख के मुखड़ा मन इ बोले अंगिया काहे न लगावे लू ,
तोहरो सुरतिया मनवा मोहे काहे जालू ललचाई के ,
बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,

jai ho guru jee ke......waah bhai....bahut badhiya likhale bani...lagal rahi aisehi
गणेश भएया रौव त पूरा तएयरी कएले बनी आग लगवे के
चाल बा तोहर नागिन जइसन अचरा जब सरकावेलू ,
देख के मुखड़ा मन इ बोले अंगिया काहे न लगावे लू ,
तोहरो सुरतिया मनवा मोहे काहे जालू ललचाई के ,
बाली उमिरिया पतली कमरिया चलेलु तू इठालाइ के ,
हाय - हाय गज़ब ढा दिए गुरूजी. नि:संदेह बड़ा ही जानदार तथा जानलेवा रचना है. आपका तो मैं नहीं जानता पर पढ़ने वालों की उम्र जरुर दस - बीस साल कम हो जायेगी. जय हो.

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