चालाक सियार
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शेर जंगल का राजा
निकला हो कर तैयार
भूख लगी भारी उसको
मिल जाए कोई शिकार
दहाड़ सुन कर शेर की
पशु इधर उधर भागे
सोये पड़े पशु पक्षी भी
तड पड़ तड पड़ जागे
किये प्रयास सारे उसने
मिल न सका आहार
शेर जंगल का राजा .....
गुफा देख झांका अंदर
पशु न था कोई वहाँ
लौटेंगे शाम जरूर घर
जायेंगे वे आखिर कहाँ
जा छुप बैठा गुफा अंदर
करता रहा इन्तजार
शेर जंगल का राजा ....
बीता दिन आयी संध्या
सियार वापस घर आया
पद चिन्ह देख गुफा ओर
मन ही मन सकपकाया
शत्रु कोई छुपा है भीतर
हो न जाए तकरार
शेर जंगल का राजा ....
आता जब शाम को वापस
गुफा तुम आवाज लगाती
खामोश आज क्यों इतनी
बात कुछ समझ न आती
बोलो जल्दी या बदलूँ खोली
पुकार चुका तुमको कई बार
शेर जंगल का राजा .....
समझ सका न शेर चालाकी
सियार के झांसे में वो आया
गुर्राया पहले धीरे धीरे से वो
फिर जोर से दहाड़ लगाया
देख जान खतरे में अपनी
भागा दुम दबा कर सियार
शेर जंगल का राजा ....
लाख आये संकट प्यारों
कभी न उनसे घबराना
सीखना जीवन भर तुमको
कभी न इससे भय खाना
धैर्य संयम विवेक चतुराई
जीवन के हैं हथियार
शेर जंगल का राजा
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१६-४-२०१३
मौलिक /अप्रकाशित
Tags:
बहुत ही सुन्दर रचना! मेरी बधाई स्वीकारें।
आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, बहुत ही सुन्दर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
शेर और सियार की पंचतंत्र की कहानी को काव्य रूप देने का सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी
सुंदर
सादर आभार
आदरणीय त्रिवेदी सर जी
आदरणीया प्राची जी
सादर अभिवादन
प्रयास सफल हुआ कि नहीं, किसी सुधार की आवश्यकता तो नहीं है प्रोत्साहन हेतु आभार
स्नेही केवल प्रसाद जी
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीय ब्रजेश जी,
प्रोत्साहन हेतु आभार
सस्नेह.
लाख आये संकट प्यारों
कभी न उनसे घबराना
सीखना जीवन भर तुमको
कभी न इससे भय खाना
धैर्य संयम विवेक चतुराई
जीवन के हैं हथियार.......... बहुत सही निष्कर्ष.. .
पंचतंत्र की कहानी को पद्यरूप दिये जाने का प्रयास भला लगा है. आपको सादर धन्यवाद, आदरणीय प्रदीपजी.. .
आदरणीय गुरुदेव
सादर अभिवादन
आपका स्नेह मेरी पूंजी है
आदरनीय जीतेन्द्र जी
प्रोत्साहन हेतु सादर आभार
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