सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन |
एक नहीं दो नहीं छह-छह ऋतुओं वाले इस देश की प्रकृति का सौंदर्य है ही सबसे निराला| शायद ही कोई साहित्यकार रहा होगा जिसकी कलम ने प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर कुछ लिखा न हो | तो आइए इस बार के महा इवेंट में हम लोग ऋतुराज वसंत के स्वागत में अपनी अपनी रचनाओं के माध्यम से बतियाते हैं 'प्रकृति सौंदर्य' के बारे में |
"OBO लाइव महा इवेंट" अंक- ४
विषय :- प्राकृतिक सौंदर्य
आयोजन की अवधि:- दिनांक १ फ़रवरी मंगलवार से ३ फ़रवरी गुरुवार तक
विधाएँ
विशेष:-
अब तक तो आप सभी को सब कुछ पता चल ही चुका है ओबिओ लाइव महा इवेंट के बारे में | बस एक छोटी सी प्रार्थना है, अन्यथा न लें | आप खुद ही सोचिए यदि हमारे सामने १० रचनाएँ हों तो हम में से कितने लोग उन में से कितनी रचनाएँ पढ़ पाते हैं? और उस से भी ज़्यादा ज़रूरी बात ये कि उन रचनाओं के साथ हम कितना न्याय कर पाते हैं? तो, सभी प्रस्तुतिकर्त्तओं से सविनय निवेदन है कि ओबिओ मंच के लाइव फ़ॉर्मेट को सम्मान देते हुए एक दिन में बस एक ही रचना प्रस्तुत करें | हमें खुशी होगी यदि कोई रचनाकार अपनी क्षमता के अनुसार तीन रचनाओं को तीन अलग अलग विधाओं में प्रस्तुत कर सके | यदि कोई व्यक्ति सिर्फ़ एक ही विधा का जानकार है, तो वह व्यक्ति उस एक विधा में भी प्रस्तुति दे सकता है, पर याद रहे:- एक व्यक्ति एक दिन एक रचना (कुल तीन दिनों मे अधिकतम तीन रचनानायें)
यदि किसी व्यक्ति को कोई शंका हो तो यहाँ क्लिक करें तरही मुशायरा / इवेंट्स से जुड़े प्रश्नोत्तर
अपनी रचनाएँ पोस्ट करने के लिए आयोजन की अवधि के दौरान सुनिश्चित करें कि आप अपनी रचनाएँ पोस्ट करते वक्त पेज नंबर १ पर हों | आपकी रचनाएँ इस अपील के ठीक नीचे के सफेद रंग वाले बॉक्स "Reply to This' में पेस्ट कर के 'Add to Reply' को क्लिक कर दें |
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ०१ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )
आप सभी के सहयोग से साहित्य के लिए समर्पित ओबिओ मंच नित्य नयी बुलंदियों को छू रहा है और आप सभी का दिल से आभारी है | इस ४थे महा इवेंट में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित पधार कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को आनंद लूटने का मौका दें |
नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १ फरवरी से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा इवेंट प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है|
सादर
नवीन सी चतुर्वेदी
ओबिओ परिवार
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ग़ज़ल
कलियों ने गाये फाग लो बसंत आ गया ,
भंवरों के जागे भाग लो बसंत आ गया |
हर शाख सुर्ख हो गयी हर गुल हुआ जवाँ ,
पोरों पे लगी आग लो बसंत आ गया |
कंगन की मनुहार में पायल पिघल गयी ,
अब रात भर की जाग लो बसंत आ गया |
इक हूक सी उठी है कोयल की कूक से ,
डंसते विरह के नाग लो बसंत आ गया |
मक्के की रोटी साथ में गुड - घी सना हुआ ,
सरसों का और साग लो बसंत आ गया |
महफ़िल सजाओ साज़ की संगत भी जुटाओ ,
गाता बसंत राग लो बसंत आ गया |
गा फूल सी गज़ल गया अंगार का शायर ,
ऐसा फिरा दिमाग लो बसंत आ गया |
वाह एक कठिन रदीफ ले कर उसमें मुश्किल काफिया चुन लिया और इतने खूबसूरत तरीके उसका निर्वहन भी किया
शेर भी लाजवाब लिखे
एक उम्दा गज़ल को और क्या चाहिए
कंगन की मनुहार में पायल पिघल गयी ,
अब रात भर की जाग लो बसंत आ गया |
क्या ही शेर कहा है और क्या ही कहन है
लाजवाब
कलियों ने गाये फाग लो बसंत आ गया ,
भंवरों के जागे भाग लो बसंत आ गया |
bahut hi badhiya gazal arun bhai.....dil khush hua padh kar
अभिनव भैया
बसंत ऋतू में होने वाली घटनाओं का सुन्दर वर्णन..
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई|
वन्दे मातरम अरुण जी,
मक्के की रोटी साथ में गुड - घी सना हुआ ,
सरसों का और साग लो बसंत आ गया |
हर शाख सुर्ख हो गयी हर गुल हुआ जवाँ ,
पोरों पे लगी आग लो बसंत आ गया |
बहुत कुछ कहना चाहते हुए भी नही कह पा रहा हूँ .......... एक शब्द में कहूँ तो "लाजबाव".......
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