परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 71 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह क्लासिकल शायरी के महत्वपूर्ण शायर जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"
2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय मिथिलेश भाई, आप इस विधा से पूर्व परिचित हैं यह जानकर ही हम दंग हैं ! बहुत खूब कोशिश भी की है आपने. वो भी इस ग़ज़ल के मेरे प्रिय शेर पर !
वाह वाह वाह !
हार्दिक आभार सर
गोयलीय जी की पुस्तक "शेर-ओ-सुखन" में इस विधा का उल्लेख है. (पांच भागों में से किस भाग में है यह याद नहीं आ रहा ) ग़ालिब पर बहुत शानदार तज़्मीन भी पढ़े हैं लेकिन सन्दर्भ अभी याद नहीं आ रहा है. सादर
अच्छा ! गोयलीय के शेरोसुखन के पाँचों भाग हैं मेरे पास. मैंने अध्ययन भी किया है. लेकिन, अभी पूरी तरह से विस्मरण का शिकार हूँ. आपने कहा है. आदरणीय मिथिलेश भाई, तो कल अवश्य इसे ढूँढने का प्रयास करूँगा.
सर जिस भाग में नसीम और आतिश दोनों शायरों का उल्लेख हो उसी में है संभवतः ....
जी...
आदरणीय समर साहब, ग़ज़ल के अलावा उर्दू शाइरी या उर्दू पद्य-लेखन की जितनी भी विधाएँ मैं अभी तक जानता था, उनमें तज़मीन को इस हिसाब से नहीं सुना था. कहना नहीं होगा, जनाब, अरुज़ को थोड़ा-बहुत जानने के क्रम में मैंने भी कुछ इधर-उधर से जमाकर पढ़ा है, लेकिन मेरी जानकारी में ऐसी विधा पर कहीं चर्चा नहीं हुई है.
आपने जिस आत्मीयता से इस विधा का मुज़ाहिरा किया है उसके लिए तहेदिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ. एक-एक शेर पर जिस सहजता से आपने भाव-शब्द खड़े किये हैं, वे मेरे शेरों को एक अलग ही रूप-रंग और परिचय देते हुए दिख रहे हैं. नत-नस्तक हूँ.
अब इस विधा के प्रति उत्सुकता बढ़ गये है क्या यह कहना बाकी है ?
आपसा सादर धन्यवाद आदरणीय.
आपकी इस गहन कोशिश पर सिर झुका कर आपका अभिवादन ही कर सकता हूँ, आदरणीय समर साहब.
अगर यह विधा चल निकली तो ओबीओ के इस पटल को कह-मुकरी और छन्नपकैया के साथ-साथ एक और विधा को पुनर्जीवित करने का श्रेय जायेगा. यह आयोजन इस मायने में अहम आयोजन साबित होने वाला है, बल्कि हो गया है.
सादर
आपकी तज़मीनों का इंतज़ार है, आदरणीय.
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