परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 65 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद शायर जनाब "एहतेराम इस्लाम" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो"
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
१. पहला रुक्न फाइलातुनको फइलातुन अर्थात २१२२ को ११२२भी किया जा सकता है
२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है|
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 नवम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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वाह वाह.... क़ाबिले तारीफ़.... लाजवाब.... शानदार.... बधाई स्वीकारें जनाब इस शानदार ग़ज़ल हेतु !!!
क्या बात है , आदरनीय सीतापुरी भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है , शे र दर शे र आपको दिली मुबारक बाद ।
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको ढेरों बधाइयाँ जनाब नफ़ीस सीतापुरी। गिरह भी क्या खूब लगाया आपने,वाह।।
वाह्ह्ह वाह्ह्ह बेहतरीन ग़ज़ल हुई है मोहतरम नफ़ीस जी एक एक शेर मोती की तरह दमकता हुआ |दिल से बहुत बहुत दाद कुबूलिये
मतले के उला मिसरे में कुछ उलझन लग रही है क्या कोई शब्द छूट गया ? एक बार देखें
क्या ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है आ० नफीस सीतापुरी जी, बहुत बहुत बधाई हाज़िर है I मतले के ऊला में शायद टंकण त्रुटी की वजह से "गुज़रा" की जगह "गुज़र" हो गया है, दोबारा देख लें I
जनाब नफीस साहब अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएँ.....मत्ले के उला मिसरे में गुज़रा की जगह गुज़र टाइप हो गया है ...देख लीजिए .....मक़ते के उला मिसरे में बहर से बाहर लग रहा है....फिर भी देख लीजिए.....शुक्रिया
आदरणीय नफीस जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. एक एक शेर मोती की तरह है. इस लाजवाब ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है. सादर
आदरणीय नफीस साहब, नफीस गज़ल हुई. दिली बधाइयाँ ......
जने से मेरे बन जाता है भगवान मगर
छोड़ दूं इस को तो हो जाएगा पत्थर देखो
होश जाता हैं तो जाएं मुझे परवाह नहीं
बे सबब ही सही इक बार तो मुड़कर देखो
बहुत ही उम्दा , वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!
हर कोई ख़ुद को समझता है सिकन्दर देखो ।
रोज़ उठता है नया एक बवण्डर देखो ।
लीक पर चलते ही जाने से नहीं कुछ होगा
लीक से हटके ज़रा तुम कभी चलकर देखो ।
कोई दुश्मन न कभी तुमको नज़र आयेगा
धुन्ध आँखों पे जो छायी है हटाकर देखो ।
सारी दुनिया तुम्हें पूजेगी यक़ीनन लेकिन
चाँद-सूरज तो ज़रा ख़ुद को बनाकर देखो ।
नष्ट गंगा को प्रदूषण न कभी कर पाये
देश की ये तो है अनमोल धरोहर देखो ।
एकजुट इनके मुख़ालिफ़ हमें होना होगा
ज़ुल्म मासूमों पे ढाते हैं सितमगर देखो ।
अपनी ये धरती ही जन्नत से हसीं हो जाए
प्रेम सद्भाव बढ़ाकर तो परस्पर देखो ।
शर्मगीं कितना है अन्दाज़ा इसी से कर लो
[[ पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो ]]
[मौलिक/अप्रकाशित]
आदरणीय अजीत भाई , खूबसूरत मतला और गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ आपको ।
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