For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 56 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 19 दिसम्बर 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 56 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.

 

इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा और सार छन्द.

 

 

इस बार के आयोजन की विशेषता प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज भाईसाहब की छान्दसिक टिप्पणियाँ रहीं. दूसरे, जिस गंभीरता से कुछ सदस्य छन्दों और छन्द आधारित रचनाओं पर अभ्यास कर रहे हैं, वह मुग्धकारी है.

 

 

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

 

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

 

 

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

******************************************************************************

१. आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी
छन्नपकैया (सार छन्द)
===============
छन्न पकैया छन्न पकैया , श्रद्धा का ये मेला 

नाटक ना कह देना इसको , ना ही समझें खेला                     (संशोधित)

छन्न पकैया छन्न पकैया , हैं ये ग़ंगा मैया
पहले नमन करो तब कूदो, है ये बिनती भैया

छन्न पकैया छन्न पकैया, धो लो पाप कमाई
लेकिन ये भी ध्यान रखो तुम , रखना साफ सफाई

छन्न पकैया छन्न पकैया , मौसम ठंडा ठंडा
संगम बीच नहाने आये , ले कर कोई झंडा

छन्न पकैया छन्न पकैया , कर लो तुम तैयारी
भीड़ भाड़ है , मारो डुबकी , अपनी अपनी बारी

छन्न पकैया छन्न पकैया , डुबकी मारो भैया
साथ साथ सब कहते जाओ, जय जय गंगा मैया

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेचे भगवन नरियल
वहीं साइकल खड़ा किया है, देखो कोई अड़ियल

छन्न पकैया छन्न पकैया, गउ औ गंगा मैया
एक साथ दर्शन पाये वो, भाग्य वान है भैया

छन्न पकैया छन्न पकैया. चाहे जो भी करना
तुम पर नज़रें गाड़ रखे हैं, उन पंडों से बचना
******************************************************************************
२. सौरभ पाण्डेय
दोहे
====
प्लास्टिक वाले कैन का यथा उचित दे दाम ।
उतनी गंगा ले चले जितने से था काम ॥

पाप-पुण्य, ग्रह, देवता, बिकता दिखे नसीब !            (संशोधित)

गंगा-घाट अमीर तक मन से दिखे ग़रीब !!

गंगाजी के घाट पर किसिम-किसिम के लोग !
भूखे के परिवार हित जीने के उद्योग !!

परम्परा की ओट के यदि पूछो हालात ।
श्रद्धा-भक्ति-उदारता के ऊपर ही घात !!

भक्ति-भाव, उद्भावना, परम्परा की धार !
दिखी मुझे गंगा नदी सदा खुला बाज़ार !!

पाप-घड़ा मन का भरा, छलका बन दुष्कर्म ।
किन्तु सगर के पुत्र कब करते खुद पर शर्म ?

इस शिक्षा से लाभ क्या, जब हम रहे कुपात्र
कल की ’माता’ आज है, गन्दा नाला मात्र !!

बजरंगी की ले ध्वजा, कलुष-भेद उद्धार ।
गंगा तट कर आचमन, वैतरणी हो पार ॥

पतित-पावनी गंग का अद्भुत है इतिहास ।
पर पुत्रों के स्वार्थ से वर्तमान पर ग्रास ॥
******************************************************************************
३. आदरणीया कान्ता राय जी
छन्न पकैया (सार छन्द)
================
छन्न पकैया छन्न पकैया, गंगा लहर किनारा
युगों-युगों से मोहित करती ,प्रवल वेग की धारा

छन्न पकैया छन्न पकैया,जलनिधि की आकुलता
नाविक निज पतवार थामकर ,नापे अपनी क्षमता 

छन्न पकैया छन्न पकैया, कांवरिया की बारी 
छन छन छन छन घुंघरू बाजे, डुबकी की तैयारी 

छन्न पकैया छन्न पकैया, कल -कल बहती गंगा
डुबक- डूब में मनवा लागा ,पापी का मन चंगा

छन्न पकैया छन्न पकैया, गंगा तीरे डेरा
रंग बिरंगे भेष धरे है , पापी का हो फेरा      

छन्न पकैया छन्न पकैया, रोली, चन्दन ,कुप्पी 
दुकान पसार गुनिया बैठी , महगी होती चुप्पी       (संशोधित // शब्द कल अब भी संयत नहीं है)

छन्न पकैया छन्न पकैया,सोचत काहे मैया
मेला अबकी जोर पकरिहें , नचिहौं ता- ता थैया

छन्न पकैया छन्न पकैया ,मेले में है ठेला 
जहाँ- तहाँ हैं चोरी- चर्चा , लूट- पाट का  खेला

छन्न पकैया छन्न पकैया, मैली होती मंदा 
काली होती गोरी गंगा ,शिवा की अलक नंदा

(संशोधित)

******************************************************************************
४. आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी
[१] सार छंद - [छन्न पकैया]
==================
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाग्य नदी के जागे,
नर-नारी बच्चे सारे जब, नदी किनारे भागे ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, संक्रांति पर नहावें,
पुण्य दानों से पाप धोवें, प्रतिफल अद्भुत पावें ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, ध्वज अपना फहरावें,
धरम-करम कर मेले में हम, साइकिल फिर चलावें ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, पूजा-पाठ करावें,
ध्यान, दान, तर्पण सब करके, शक्ति सूर्य से पावें ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रसाद सबको देवें,
लाई, तिलवा, चूड़ा-तिलकुट, कुछ तो ख़रीद लेवें ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, संयम कौन दिखावे,
स्वच्छता रख पवित्र नदी की, सदी हमें जतलावे ।

[२] सार छंद] -
पाप धोये कितनों ने यहाँ, कितने पुण्य कमाये,
मेले-झमेले सभी देखे, सुख-दुख सुने सुनाये ।

पुष्प, अश्रु, पूजा-सामग्री, अपने संग समाये,
दूषित जल का तमग़ा लेकर, विवाद ही करवाये ।

विचार, वचन योजना बनकर, आश्वासन दे जाये,
कथनी-करनी अंतर बनकर, नाटक ही दिखवाये ।

धरम-करम चरम पर करा कर, मानव पुण्य कमाये,
जल दूषित चरम पर करा कर, मानव ख़ूब सताये ।

स्वर्ग-नरक हैं यहीं धरा पर, यह कैसे समझाये,
सद्कर्मों का प्रतिफल पाकर, स्वर्ग यहीं पा जाये ।

[3] दोहा छंद
हरियाली दिखती नहीं, नहीं पेड़ इस घाट ।
दूर खड़े हैं कुछ मगर, जंगल भये सपाट ।।

महँगी हुई वस्तुयें, दुकान सूनी हाय ।
घर के बने प्रसाद पर, पूजा-पाठ कराय ।।

प्लास्टिक बोतल भर लिये, पीकर परखें स्वाद ।
दूषित नीर-अमृत हुआ, मानव का अवसाद ।।

विधर्मी यहाँ घिर गया, शंका सबको होय ।
स्नान बात पर भिड़ गया, अपना आपा खोय ।।

पानी गंगा में यहाँ, पानी तन में सभी ।
देश-रक्त पानी धरा, रग-रग में ही सभी ।।
******************************************************************************
५. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
दोहा छंद - प्रथम प्रस्तुति
==================
नदिया तट पर भीड़ है, भक्त और बदमाश।
सब हैं धंधे में लगे, सब की अपनी आस॥

कलियुग में भगवान को, बेच रहा इंसान।
भिन्न भेष आकार में, मिल जाये भगवान॥

पूजन की सब सामग्री, सस्ते में ले जायँ।
भोग नारियल का लगे, मन वांछित फल पायँ॥

ध्वजा एक फहरा दिये, जगह घेर कुछ लोग।
वहीं करेंगे मस्तियाँ, वहीं लगेगा भोग॥

देख सायकल की दशा, याद देश की आय।
कबाड़ भारत को बना, नेता शोक मनाय॥

घूम रही है गाय भी, भोजन कुछ मिल जाय॥
राम भरोसे देश है, कृष्ण भरोसे गाय॥

बोतल में गंगा भरें, ले जायें घर आप।
गलत काम कर पीजिए, मिट जाये सब पाप॥
******************************************************************************
६. आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी
छन्न पकैया (सार छन्द)
===================
छन्न पकैया छन्न पकैया, संगम माघ सुहाए
मेले का आगाज सुहाना, हुआ निशान कराए

छन्न पकैया छन्न पकैया, संगम घाट विराजे
देव भक्त हित बिकने खातिर, प्रतिमाओं में साजे

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुन्दर संगम दर्शन

मोक्ष कामना सफल मनोरथ, वर्धित हो पुण्यार्जन    (संशोधित)

छन्न पकैया छन्न पकैया, मन जिसका हो चंगा

सारे तीरथ घर में उसके, उसे कठौती गंगा

छन्न पकैया छन्न पकैया, धर्म साइकल प्यारी
कर्म भाव के पहिये सुंदर, हैंडल निष्ठा न्यारी
******************************************************************************
७. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
सार छन्द
पानी पानी कितना पानी ,तीर जमा है मेला
मित्र मंडली साथ है कोई ,कोई दिखे अकेला

अलग अलग हैं रंग समेटे ,पावन नदी किनारा
अपने जैसा देश न दूजा ,कहे नदी की धारा

धर्म पताका यहाँ चढ़ेगी ,जुटे हुए कुछ भाई
पूजा का सामान बिछाये ,दिखी सोच में माई

गहन सोच में तीन खड़े हैं ,लगे इशू कुछ भारी
कब अपने भगवान बिकेंगे ,सोच रही वो नारी

अपने में ही खोया देखो ,टोपी वाला बंदा
सबकी गर्दन में चढ़ बैठा ,मोबाइल का फंदा

सार छंद [छन्न पकैया ]

==================

छन्न पकैया छन्न पकैया ,तज फुर्सत का रोना 

गंगा की डुबकी भर देगी ,मन का खाली कोना          (संशोधित)

छन्न पकैया छन्न पकैया ,छंदों के हैं झूले
सोलह बारह गाते गाते ,हम सब खुद को भूले

छन्न पकैया छन्न पकैया ,पहने पीली कुर्ती
कुछ जल्दी में दिखती बाला ,लम्बे डग है भरती

छन्न पकैया छन्न पकैया ,गंगा या नल पानी
पावन मन तो आँगन गंगा ,यही कहें सब ज्ञानी

दोहा छंद

======

सोच रही है साइकिल ,भूले मुझे सवार 

मोटरबाइक फेर में ,दौड़े जाते यार                          (संशोधित)

देवों की फोटो सजी ,कुछ पानी के केन
पेट धरम सबसे बड़ा, बात यही है मेन

भोले भाले लोग हम ,सियासती सब चाल
पन्नी कचरा खा रही ,देखो गौ का हाल

घुटने पानी में खड़ा ,बचपन करे विचार
रंग रूप सब एक हैं ,फिर काहे की रार

गंगा जमनी एकता, पर हमको है नाज़
भाईचारे में छिपा ,है विकास का राज़
******************************************************************************
८. आदरणीय अशोक रक्ताळे जी
सार छंद

=====

गंगा के इस तट पर प्रतिदिन, लोग दूर से आते |
दिखता है पर जमघट जितना, उतने नहीं नहाते ||

प्लास्टिक के डिब्बों में भरते, गंगा जी का पानी |
बदल गया है कितना यह युग , होती है हैरानी ||

डिब्बा भर सामान पसारे, बैठी है माँ काली |
कुछ रुपयों में दे देगी यह, भर पूजा की थाली ||

धर्म ध्वजा को घेरे हैं कुछ , अपने हाथ उठाये |
लेकर मन में अभिलाषा जो, तट गंगा के आये ||

अस्त-व्यस्त है यहाँ सवेरा, सब करते मनमानी |
भरते हैं श्रृद्धा से फिरभी, गंगा जी का पानी ||                 (संंशोधित)

******************************************************************************
९. आदरणीय डॉ. टी. आर. सुकुल जी
"भावजड़ता" - सार छंद
================
कैसी कैसी पृथा बनायीं ,हमने इस जीवन में।
प्रकृति का माधुर्य प्रदूषित ,कर डाला क्षण क्षण में।
.
चलो चलें संक्रांति काल में, खूब लगाएं डुबकी।
गंगा मैया दे ही देंगी, सभी पापों से मुक्ति।
.
गहरे जाकर मैल हटाओ, तिल से अपने तन का।
फिर अर्पितकर फूल हार, सब भार मिटाओ मन का
.
खाकर सब पकवान फेक दो, शेष सभी इस जल में।
गंगाजी की एक लहर से , सब बह जाएगा पल में।
******************************************************************************
१०. आदरणीया राजेश कुमारी जी
दोहे
===
गंगा जी के घाट पर ,जगी नींद से भोर|
भक्तों का मेला लगा ,चहल-पहल हर ओर||

एक ओर बातें करें ,खड़े हुए कुछ लोग|
किसी गाँव का लग रहा ,उत्सव का संयोग||

दिखे चित्र में साइकिल,और कई नर नार|
पूजा के सामान से ,सजी दुकानें चार||

एक साथ मिलकर कई ,ध्वजा रहे हैं थाम|
पावन जल कुछ भर रहे ,ले गंगा का नाम||

बेच रही तट पर बिछा ,पूजा का सामान|
महिला है बैठी मगर ,कहीं ओर है ध्यान||

गंगा जल के वासते ,बोतल लिए अनेक|
बैठी पास दुकान पर,दूजी नारी एक||

स्वार्थी मानव शीश पर,अंध चलन का ताज|
आडम्बर के नाम पर,लुटती गंगा आज||

दिए जख्म कितने सदा,किया सदा अपमान|
घायल गंगा अब कहो,क्या देगी वरदान||
******************************************************************************
११. आदरणीया नीता सैनी जी
दोहे
===
युगों-युगों से धो रहीं, गंगा मैया पाप।
निर्मल मन करतीं सदा, हरतीं पीड़ा-ताप।।

गंगा-दर्शन के लिए, दौड़े आते लोग।
पूर्ण मनोरथ हो रहा, फल हैं पाते लोग।।

बढ़ा प्रदूषण गंग में, स्वार्थ रहे सब साध।
भक्ति-भाव सच्चा नहीं, श्रद्धा नहीं अगाध।।

मन मैला यदि आपका, तन धोए बेकार।
गंगा मां कहतीं यही, रखो न मनहिं विकार।।

******************************************************************************
१२. आदरणीय सचिनदेव जी
दोहे
===
पावन गंगा घाट पर, जमा हुए हैं लोग
लगता गंगा स्नान का, आज ख़ास है योग

पूरे निष्ठा भाव से, गंग स्नान के बाद
करो समर्पित नारियल, फिर बांटो परसाद

देख भरोसे साइकिल, छोड़ गया इंसान
नरियल वाली ओ बहन, कहाँ आपका ध्यान

बोतल लेकर हाथ में, भर गंगा का नीर
डुबकी लेकर आ रहा, देखो बालक वीर

धर्म पताका थामकर, लेते प्रभु का नाम
जय हो गंगा मात की, जय-जय सीताराम

भारत को भगवान का, गंगा है वरदान
गंगा मैली हो नही, इसका रखिये ध्यान
******************************************************************************
१३. आदरणीय सुशील सरना जी
सार छंद
======
छन्न पकैया छन्न पकैया, लगा घाट पे मेला
तीर नदी के भजन करे सब, जग का छोड़ झमेला !1!

छन्न पकैया छन्न पकैया, कोई समझ न पाया
पहले धो लो मेल हिया की ,फिर धोना तुम काया !2!

छन्न पकैया छन्न पकैया, अजब ईश का खेला
पाप कर्म सब जल में छोड़ें, सज्जन दुर्जन चेला !3!

छन्न पकैया छन्न पकैया,जल में भोर समाई
तन का चोला मल मल धोया,मिटी न मन की काई !4!

छन्न पकैया छन्न पकैया, जल में नभ की छाया
मोक्ष जीव का जल में होता, मिट जाती जब काया !5!
******************************************************************************
१४. आदरणीय सतविंदर कुमार जी 
छन्न पकैया - सार छन्द
=================
छन्न पकैया छन्न पकैया गंगा तीरे मेला
भीड़ भले ही थोड़ी लागे कोई नहीं अकेला।।

छन्न पकैया छन्न पकैया दीखत है गौ माता
गंगा जल से लिया नहा जो बच्चा बाहर आता।।

छन्न पकैया छन्न पकैया सज गई हैं दुकानें
सामान नहीं खरीदे कोई क्या हो माता जानें?

छन्न पकैया छन्न पकैया पास खड़ी अस्वारी
माँ गंगा के तीरे खाती दिखे गौ माँ न्यारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया ध्वज है फहराना
चाहते घर की शुद्धि को भी गंगा जल ले जाना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया मानें इसको माता
गंगा माँ को निर्मल रखना है अब सबको भाता।।
******************************************************************************
१५. आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी
सार छंद
=======
घाट बाट पर फुटकर बैठे, सजे घाट पर मेला ।
सबकी नजरे नदी धार पर, है वह पावन बेला ।।

गंगा पूजन करने आये, कुछ भक्त लिये श्रद्धा ।
नारियल आदि बेच रही हैं, दो यौवना एक वृद्धा ।।

चार लोग गड़ा रहे झंड़ा, मिलकर हाथ मिलाये ।
गंगा मैया गंगा मैया, मिल जयकार लगाये ।।

गाय दान की महिमा भारी, एक व्यक्ति तो बोले ।
सुनकर उनकी मीठी बातें, कुछ भक्तों के मन डोले ।।

पाप मुक्त करती मां गंगे, लोग सभी तो माने ।
दूर गंदगी ना कर सकती, लोग कहां है जाने ।।

मां कहती अपने भक्तो से, सही पुण्य तुम पाओ ।
स्वच्छ रखो तुम तट को मेरे, जल से मैल हटाओं ।।
******************************************************************************
१६. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
दोहे
===
करे पाप हर आदमी फिर गंगा में नहाए
डर है यही कहीं गंगा मैली न हो जाए

गंगा जल है दोस्तो नहीं है पानी आम
पीने वालों पर करे यह अमृत का काम

गंगा जी के घाट पर पापी धोए पाप
कोई पूजा अर्चना करता कोई जाप

आया है तन्हा कोई कोई किसी के संग
देखो गंगा घाट पर तरह तरह के रंग

भेद भाव कुछ भी नहीं गंगा जी के द्वार
राजा हो या रंक हो हो सब का उद्धार
******************************************************************************
१७. आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
दोहा छंद आधारित गीत
================
सबकी खातिर खोल दे,
दिल के सारे पाट
बन जा मनवा आज तू, गंगाजी का घाट

हम दोनों तो है सखा,
इक धारा के छोर
मंदिर मस्जिद छोड़ के,
चल गंगा की ओर
बाग़ लगा के प्रेम का, नफरत झाड़ी काट

नगरों की इस दौड़ में
हारा जब से गाँव
बरगद की तब से लुटी,
मधुमय ठंडी छाँव
आज बसा दे गाँव का, फिर से उजड़ा हाट

नवयुग के इस खेल में,
तहजीबों की मात
जड़ को बैठा खोदने,
इक डाली का पात
घर के बाहर मत लगा, दादाजी की खाट

दुनिया का मेला सदा,
खींचे अपनी ओर
पिया मिलन की आस दे,
इस मन में घनघोर
माया मखमल से भली, तेरे दर की टाट

खुशियों की खातिर मनुज
मत फैलाना हाथ
अपने मन में झाँक ले,
खुशियाँ तेरे साथ
अब तो थोड़ा बाज़ आ, यूं मत तलवे चाट

 

सार छंद आधारित गीत

===============

ज़रा कटौती कर लो लेकिन.... मन को रखना चंगा
सुन लो भाई ! सुन लो दादा ! क्या कहती है गंगा

कर्म बिना कोई भी इच्छा, कब होती है पूरी
सुख-दुख दोनों गंगा-तट, वो इनके बिना अधूरी
जीवन की उलझन में कितना, है किस्मत का पंगा

पाप किया फिर आकर बैठे, गंगा तट पर सारे 

इस आशा में स्वर्ग मिलेगा, हर इक डुबकी मारे   (संशोधित)

बाहर से भी, भीतर से भी, देखा आदम नंगा 


कोई तो बतलाओ क्यों गुम, मेरी पावन धारा
दुनिया भर का रोग रसायन, डाला कचरा सारा
प्रेम जताया तुमने माँ से, कितना ही बेढंगा

अब तो घर की तू-तू मैं-मैं, देखे दुनिया सारी
मजहब के थोथे झगड़ों से, भारत माता हारी
धर्म नाम ले के मत करना, मेरे घर में दंगा

दोहे
===
छोटे से इक केन में, जब गंगा हो सेट
दो बच्चों का जानिए, तब भरता है पेट

चाहे तू जिस रंग की, धर्म ध्वजा को तान
लेकिन दिल में रख सदा, तीन रंग का मान

क्या दुनिया की लालसा, क्या माया से आस
सबको जाना एक दिन, गंगाजी के पास

माना वैसे आप हैं, साधू संत फकीर
ऐसे तो मत बाँटिये, गंगाजी का नीर

जब से देखा मैल का, गंगाजी में झाग
माता का दुःख देखकर, रोया खूब प्रयाग

यारो लगती है तनिक, जब मानव की वाट
धोने पापों को सदा, दौड़े गंगा घाट
******************************************************************************
१८. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
दोहे
===
सभी लोग आते यहाँ, जात-पात अदृश्य,
गंगा तट पर देखते, मेले जैसा दृश्य |

कुछ सैलानी घुमते, कुछ है शहरी लोग
ऐसी है कुछ मान्यता, होते यहाँ निरोग |

श्राद्ध कर्म करते यहाँ, रहें मोक्ष के भाव,
अस्थि विसर्जन जो करे,उसके मन सद्भाव |

गंगा को मैली करे, बढे स्वार्थ की ओर,
मानव अत्याचार से, नदी हुई कमजोर |

जन जन तो धोते यहाँ, अपने सारे पाप,
किससे माँ गंगा कहे, हरने को संताप |

भर शीशी ले जा रहे, गंगा जल कुछ लोग
धार्मिक अनुष्ठान जहां, वहाँ करे उपयोग |

बच्चें औरत आदमी, डुबकी ले सब संग,
शर्म लाज को छोड़कर, करते हर हर गंग |

 

सार छंद
======
बहती रहती अविरल गंगा, रुके न इसका पानी
युगों युगों से कलकल करती,इसकी यही कहानी |

घाट घाट पर भीड़ लगी है, हर हर गंगे बोले
मोक्षदायिनी माता माने, ये श्रद्दा को तोले |

गाँव शहर जंगल में होती, बहती संगम करती
सीख सदा ही देती आई, संतो की ये धरती |

प्राण सुधा ये भारत भू की, देती है हरियाली
जन जन में सद्भाव जगाती,देती है खुशहाली |

गंगा माँ ने दिया सभी को, भाग्य उदय का न्योता
पनप रहे उद्योग यहाँ पर, पशुपालन भी होता |
******************************************************************************

१९. आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
दोहा छंद
**********
भीड़ अमावस पर जुटी, गंगा जी के तीर
कर्मो की ना सोच कर, धोएंगे तकदीर /1

पैदल बस या साइकिल, चढ़ पहुँचे सब घाट
थकन मिटाते बैठ फिर तट पर फैला टाट /2

विधवा बेबस खोल कर, बैठी एक दुकान
रोजी उसकी बन गया, पूजा का सामान /3

हिम कण सी शीतल हुई, पानी की हर बूँद
हर इक बंदा सोचता, कैसे जाऊँ कूँद /4

गंगा के तट आज है, इक दुर्लभ संयोग
यही सोच कर दे लगा, गौ माता को भोग /5

गंगा माँ को सौंप दे, झोली भर भर पाप
पावन जल डुबकी लगा, कम करले संताप /6

क्षमता नापे थाम क्यों, नाविक तू पतवार
गंगा माँ की बोल जय, कर मैया को पार /7

सबकी अपनी पीर है, सबके अपने सोग
ध्वजा धर्म की तान पर, खुश हैं यारों लोग /8

जो मन में घारण करे, सद्इच्छा सद्कर्म
उसको ही फलता सदा ,गंग स्नान का धर्म /9

डिब्बा बोतल जो मिले, भर ले जाओ नीर
मरते को दो घुट पिला, हरलो उसकी पीर /10

पावन गंगा नित रहे, इसका रक्खो ध्यान
पूजा तर्पण ठीक पर, मत फेंको सामान /11
************************************************

२०. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
दोहे
===
है कार्तिक की पूर्णिमा सुन्दर सुभग विहान
साधु-संत सामान्य जन आये करने स्नान

सोने जैसी धूप है चांदी जैसी धार
गंगामृत में है घुला ममता का संसार

कही अखाड़ा साधु का ध्वजा पत्ताका साथ
हाथ किसी के हैं भरे कोई खाली हाथ

गंगा के तट पर अहो मेले जैसी शान
महिला बैठी है लिए मंगल का सामान

तट पर निश्चल है खडी एक मंगला गाय
अच्छा यदि यजमान हो गऊ दान हो जाय

मसनद है खाली पड़ा मालिक अंतर्धान
बिखरी सारी संपदा गंगा भी हैरान

एक साइकिल भी खड़ी टेढ़े करके पैर
ना काहू से मित्रता ना काहू से बैर

स्नान-पान कुछ कर रहे तीर रहे कुछ छोड़
कुछ अपने परिधान को जल में रहे निचोड़

कुछ हैं चिंतन में लगे कुछ विचार में मग्न
गंगे तेरी पुलिन पर सकल भाव-संलग्न

दूर क्षितिज पर दीखती तरु की हरित कतार
गंगा के साम्राज्य पर रूपहला संसार

मुक्तिदायिनी जान्हवी सबके धोती पाप
हरती है संताप सब करती है निष्पाप II
************************************************

Views: 5078

Replies to This Discussion

आदरणीया प्रतिभाजी, 

सर्वप्रथम तो हम समझें कि कोई छान्दसिक रचना मेरे ना या हाँ करने से दोषयुक्त या दोषमुक्त नहीं हो जायेगी. उसे दोषयुक्त या दोषमुक्त होना है तो उसका आधार या कसौटी छन्दों के विधान ही हैं.

:-))

आदरणीया, आप द्वारा संशोधित पंक्तियाँ एकदम से सही है.  यथा संशोधित एवं निवेदित, तथा प्रतिस्थापित !

सादर

 धन्यवाद आदरणीय . ',आपके अनुसार '   से मेरा तात्पर्य ' छन्द विधान के अनुसार'  ही था ,  सादर 

// ',आपके अनुसार '   से मेरा तात्पर्य ' छन्द विधान के अनुसार'  ही था //

आदरणीया प्रतिभाजी, ऐसा कभी न कहें. हम सभी छन्द-विधानों के शिष्य मात्र हैं.. शुद्ध भाषा में कहें तो चेला.. ! 

अर्थात, सभी विद्यार्थी हैं इस मंच पर. ये अवश्य है कि कोई यहाँ इस मंच पर कुछ दिन पहले से है, सो थोड़ा-बहुत अधिक सुन-समझ गया है, कुछ बाद में आये हैं, सो वे अब सुन-समझ रहे हैं. वर्ना अथाह है यह क्षेत्र !

सादर

चित्र से काव्य तक छंदोत्सव की बेहतरीन सफलता मय समुचित प्रोत्साहन व मार्गदर्शन के और त्रुटि इंगित करते हुए त्वरित संकलन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद सम्मान्य मंच। विनम्र निवेदन है कि सार छंद व दोहा छंद का पुनः अध्ययन करने के बाद शीघ्र ही संशोधित पंक्तियाँ/रचनायें प्रेषित करूँगा, कृपया संकलन में स्थापित रचनाएँ तब तक नहीं हटाईयेगा ।
विनम्र निवेदन यह भी है कि यहीं कमेंट में ही मेरी रचनाओं की "कलों" संबंधी या शब्द संयोजन संबंधी त्रुटियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने का कष्ट करें कुछ सरल शब्दों में, वह मेरे लिए सुविधाजनक रहेगा। पिछली बार मेरे दोहे बिलकुल सही रहे थे, इस बार कैसे चूक हुई ,समझ नहीं पा रहा हूँ,जबकि जांच कर के पोस्ट की थी रचनाएँ। "कल"व्यवस्था कृपया यहीं समझा दीजिएगा। सादर

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी शुभकामनाओं का आभार.

//कृपया संकलन में स्थापित रचनाएँ तब तक नहीं हटाईयेगा ।// 

ऐसा कभी नहीं होता. रचनाएँ संकलित और चिह्नित होने के बाद यहीं रहती हैं. रचनाकार अपनी अशुद्ध पख्म्तियों को दुरुस्त कर पुनः इसी जगह टिप्पणियों के रूप में प्रस्तुत करते हैं. उन रचनाओं पर आयोजन के दौरान चर्चा हो चुकी है. अतः रचनाकारों के लिए संशोधन कर पाना सरल हो जाता है.  यह सीखने का सबसे सहज तरीका है. 

//विनम्र निवेदन यह भी है कि यहीं कमेंट में ही मेरी रचनाओं की "कलों" संबंधी या शब्द संयोजन संबंधी त्रुटियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने का कष्ट करें //

अवश्य प्रयास रहेगा कि आपके प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया जा सके. परन्तु आप से विनम्र निवेदन है कि आप भी उपलब्ध आलेखों को पढ़ें और उन आलेख पोस्ट पर अपने तत्सम्बन्धी प्रश्न डाल दें. आपको यथासम्भव उत्तर मिल जायेगा. इससे आपके प्रश्नों के ऊपर दिये गये उत्तरों से अन्य पाठकों को भी लाभ होगा. 

शुभेच्छाएँ 

त्वरित उत्तर व सुझाव देते हुए मार्गदर्शन हेतु तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री सौरभ पाण्डेय जी ।

मैं भी अपनी प्रस्तुति को संशोधित कर रहा हूँ .. पुण्य की अक्षरी पूण्य हो गयी थी. और यह अक्षरी दोष बना भी रह गया था.

 

अस्त-व्यस्त यह दृश्य भोर का, सब करते मनमानी |
भरते हैं पर लोग आज भी , गंगा जी का पानी ||

कृपया मेरी प्रस्तुति के उक्त लाल रंगे छंद को इसतरह करने की कृपा करें.

अस्त-व्यस्त है यहाँ सवेरा, सब करते मनमानी |
भरते हैं श्रृद्धा से फिरभी, गंगा जी का पानी ||

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, ओ बी ओ पर रचनाओं के संकलन फिर चिन्हित करने का निर्णय और फिर संकलित रचनाओं में संशोधन का अवसर जितनी प्रशंसा की जाए कम है. छ्न्दोत्सव में सम्मिलित होने वाले रचनाकारों को इसका सतत लाभ मिल रहा है. इस सुविधा के कारण ही मैं आज पुनः अपनी रचना में हुई गलती को जान सका और उसमें सुधार कर सका.

बहुत-बहुत आभार. सादर.

आदरणीय अशोक भाईसाहब,  आपकी संशोधित हुई पंक्तियों को प्रतिस्थापित कर दिया गया है. 

सादर

आदरणीय सौरभ भाई , संकलन के लिये और एक सफल आयोजन के लिये आपको और समस्त प्रतिभागियों को हार्दिक बधाइयाँ और साधुवाद ।

निवेदन-
 मेरे पहले छंद  की निम्न पंक्ति को उसके नीचे दिये पंक्ति से बदलने की कृपा करें

कोई नाटक नहीं हो रहा , और नहीं है खेला  -- 
नाटक ना कह देना इसको , ना ही समझें खेला
                                                           सादर निवेदन ।

मै ओ बी ओ साइट खोलने में बहुत कठिनाई महसूस कर रहा हूँ , अगर खुल भी जाये किसी तरह तो रिप्लाई बटन दबाते ही पेज जंप कर रहा है , आपको फोन के द्वारा आयोजन के दर्मियान सूचित करने का प्रयास भी किया था , पर बात नहीं सो सकी , ये तकलीफ महाउत्सव के समय से है , उस समय भी फोन मे बात नही हो पाई थी ।

आपके मिस-कॉल को देख कर फोन मिलाता हूँ तो आपका फोन या तो बन्द होने की सूचना देता है या आपके पहुँच से बाहर होने की सूचना मिलती है, आदरणीय गिरिराज भाईजी।

आदरणीय आपकी संशोधित पंक्ति को प्रतिस्थापित कर दिया गया है.

बी एस एन एल मे भी ऐसी ही स्थिति है , मै जब भी बात करता हूँ घर से बाहर रोड पर खडे हो के बात करता हूँ । आप मेरे लैंडलाइन पर फोन कर लिया करें -- 0788  2223656 -- ओनली इन कमिंग होने के कारण मै खुद इससे फोन नही कर सकता ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service