For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज ओबीओ अपने चार वर्ष का सफ़र पूरा कर पांचवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. ज़िंदगी के अन्य सफ़रों की तरह यह सफ़र भी कई प्रकार उतार-चढ़ाव की एक गाथा रहा है. वर्ष 2010 में जो सफ़र भाई गणेश बागी जी के नेतृत्व में कुछ नौजवान साथियों द्वारा प्रराम्भ हुआ था, वह आज एक और मील का पत्थर पीछे छोड़कर अगले पड़ाव की तरफ रवाना हो चुका है.           

वर्ष 2010 में जब डरते डरते मैंने इस मंच की कमान थामी थी तो इस मंच की गर्भनाल भी नहीं काटी गई थी. लेकिन अपने शैशवकाल ही में इसका चेहरा-मोहरा आश्वस्त कर रहा था कि यह नन्हा बालक अपने पाँव पर खड़ा होने में अधिक समय नहीं लेगा. और हुआ भी वैसा ही. तब इस मंच को लेकर एक सामूहिक सपना देखा गया था, वह सपना था इस मंच को एक परिवार का रूप देने का. इसके इलावा यह निश्चय भी किया गया कि यहाँ सदैव स्तरीय नव-लेखन को प्रोत्साहित किया जायेगा, छुपी हुई प्रतिभायों को मंच प्रदान कर उन्हें सामने लाया जायेगा. इन्हीं 2-3 बिन्दुयों को लेकर इस मंच ने तब पहला लड़खड़ाता हुआ क़दम उठाया था. उसी दौरान कुछ नए साथी भी जुड़े, और मंच की नीतियों को नई दिशा मिलनी शुरू हुई. उसी दौरान भाई राणा प्रताप सिंह जी द्वारा ओबीओ पर "तरही मुशायरे" की शुरुयात हुई. यह मुशायरा इतना सफल हुआ कि बहुत ही जल्द यह साहित्यिक क्षेत्रों में चर्चा का विषय बन गया. भाई वीनस केसरी की प्रेरणा (प्रेरणा से ज़यादा डांट) से इस तरही मुशायरे में सम्मिलित रचनायों की गुणवत्ता में गज़ब का सुधार आया.        

ग़ज़ल और कविता तब तक इस मंच पर दो मुख्य विधाएं बन चुकी थीं, लकिन आचार्य संजीव सलिल जी और भाई अम्बरीश श्रीवास्तव जी की प्रेरणा से इस मंच पर भारतीय छंदों पर बात होनी शुरू हुई. यह बात इतनी आगे बढ़ी कि "चित्र से काव्य तक" नामक महाना आयोजन को पूर्णतय: छंद आधारित ही कर दिया गया. आज हमारा यह मंच छंदों पर जो काम कर रहा है वह अतुलनीय और अद्वितीय है. यही नहीं लगभग पूरी तरह से मरणासन्न "कह-मुकरी" और "छन्न-पकैया" जैसे  लोक-छंदों को पुनर्जीवित करने का पुण्य पुनीत कार्य भी हुआ है. यही नहीं, इन दोनों छंदों को बाक़ायदा शास्त्रीय छंदों की प्रमाणित गण-मात्रा, यति-गति व तुकांत-समांत आदि आभूषणों से विभूषित कर भारतीय सनातनी छंदों की श्रेणी में ला खड़ा किता गया है.

रचनाएं प्रकाशित करने वाले तो अनेक मंच मौजूद हैं, लेकिन रचनायों पर इतनी उच्च- स्तरीय समालोचना शायद ही कहीं और देखने को मिलती हो. हमारे सभी आयोजन एक वर्कशॉप की तरह होते हैं जहाँ रचना के गुण-दोषों पर खुल कर चर्चा की जाती है. उसी का परिणाम है कि कुछ अरसा पहले बेहद अनगढ़ साहित्य रचने वाले भी आज लगभग सम्पूर्ण रचनाएं रच रहे हैं. इसी क़वायद के तहत ग़ज़ल विधा की बारीकियों पर आ० तिलकराज कपूर जी द्वारा "ग़ज़ल की कक्षा" को  प्रारम्भ किया गया, तत्पश्चात एवं भाई वीनस केसरी जी के वृहद आलेखों ने ग़ज़ल लिखने वालों को एक नई दिशा प्रदान की. 

मठाधीशी और मठाधीशों के लिए इस मंच पर न कभी कोई स्थान रहा है और न ही कभी होगा, हमारा उद्देश्य केवल और केवल साहित्य-सेवा और साहित्य-साधना रहा रहा है और रहेगा. इन चार सालों में बहुत से नए साथी हमारे साथ जुड़े. सभी लोग भले ही अलग-अलग दिशायों और विधायों से आये थे लेकिन सब ने वही सपना देखा तो इस मंच का साझा सपना था. लेकिन कुछ लोग जिनकी महत्वाकांक्षाएं और अपेक्षाएं इस सपने के मेल नहीं खाती थीं, वे इस मंच को खैराबाद कहकर कर अपने अपने रस्ते हो लिये.

4 वर्ष पहले हम एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल पड़े थे, कहाँ जाना है इसका पता तो था. लेकिन वहाँ तक कैसे पहुंचना है यह नहीं मालूम था. तब रास्ते में नए साथी  मिले, कुछ बुज़ुर्गों ने सही रास्ता बताया. धीरे-धीरे हम ऊबड़-खाबड़ रास्तों के काँटों को हटाते हुए आगे बढ़ते रहे. चार वर्ष के लम्बे सफ़र में कई पड़ाव पार करने के बाद भी हमे किसी तरह की कोई खुशफहमी नहीं होनी चाहिए. हमें सदैव याद रखना होगा कि दिल्ली अभी बहुत दूर है. इसलिए आवश्यक है कि हम सब एक दूसरे का हाथ मज़बूती से थामें रहें और अपना सफ़र जारी रखें.

मैं इस शुभ अवसर पर ओबीओ संस्थापक भाई गणेश बागी जी को हार्दिक बधाई देता हूँ  जिन्होंने यह मंच हम सब को प्रदान किया. मैं उन्हें दिल से धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने मुझे चार वर्ष पहले इस परिवार की बागडोर सौंपी. आदरणीय साथियो, भले ही मैं इस मंच का कप्तान हूँ लेकिन सच तो यह है कि अपनी टीम के बगैर मैं शून्य हूँ. इसलिए इस अवसर पर मैं  अपनी प्रबंधन समिति के सभी विद्वान साथियों आ० सौरभ पाण्डेय जी, श्री राणा प्रताप सिंह जी एवं डॉ प्राची सिंह  जी का हार्दिक व्यक्त करता हूँ जिन्होंने क़दम क़दम पर मेरा साथ दिया तथा मंच की बेहतर के लिए उचित निर्णय लेने में मेरा मार्गदर्शन किया. मंच की कार्यकारिणी के सभी सदस्यों का भी दिल से शुक्रिया जिनकी अनथक मेहनत ने मंच को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं. मैं मंच से जुड़े हुए हर सदस्य को भी धन्यवाद कहता हूँ जिनके स्नेह की बदलैत आज यह मंच अपने पांचवें वर्ष में पहला कदम रखने जा रहा है.

सादर
योगराज प्रभाकर

Views: 3843

Reply to This

Replies to This Discussion

आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, यह देखकर बेहद हर्ष होता है कि आप छंदों के चेहरे मोहरे से वाक़िफ़ हो रहे हैं. यह सब ओबीओ ही की क्या माया है. आपकी शुभ-कामनायों के लिए दिल से शुक्रिया।

ओबिओ के चतुर्थ वर्षगाँठ पर सभी गुरुजनों और ओबिओ परिवार से जुड़े मित्रों को हार्दिक बधाईयाँ.. सादर

हार्दिक आभार प्रिय महिमा श्री जी.

ओ .बी .ओ की चतुर्थ वर्षगाँठ के अवसर पर  आ. योगराज जी ,मंच के संस्थापक एवं सम्पूर्ण टीम को हार्दिक बधाई .

हार्दिक आभार आ० ज्योतिर्मय पंत जेी.

साहित्य कि उर्वरा भूमि में ओ.बी.ओ. के रूप में एक बीजांकुर का रोपण करने वाले संस्थापक सदस्यों, और इस बीज को समय व धन रूपी खाद पानी देकर इसे संरक्षित - संवर्धित करने वाले आदरणीय महानुभावों को मैं ह्रदय कि असीम गहराईयों से प्रणाम करता हूँ। जिन संकल्पवान, दृढ़प्रतिज्ञ और साहित्य-हितैषी विद्वजनों के अनथक परिश्रम से ये बीज अंकुरित ,पल्लवित , और पुष्पित हुआ वे निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं। बहुजन-हिताय बहुजन -सुखाय कि अवधारणा सम्प्रेषित करता हुआ ये अंकुर चार वर्ष कि अल्पावधि में एक विशाल वटवृक्ष का रूप ले चूका है, जिसकी घनी शाखाओं में साहित्य जगत के कई नवजात पंछियों के आश्रय-स्थल निर्मित हैं। नई पुरानी विविध साहित्य विधाओं का ज्ञान यहाँ उपलब्ध है। हर मन का अभीष्ट यहाँ आकर पूर्ण हो जाता है। उस सर्वशक्तिमान ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि ये वटवृक्ष यूँही विस्तारित होता रहे और एक दिन साहित्य के क्षेत्र में कल्पवृक्ष के समान सुशोभित हो। ईश्वर मेरी कामना को पूर्ण करे। ओ. बी.ओ. परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।

भाई गजेन्द्र जी, हमें मिलजुल कर इस वट वृक्ष को खाद पानी देते रहना है. शुभ-कामनायों के लिए हार्दिक आभार।

क्या ऐसा हुआ है !!! सच में

हाँ ये तो "चार साला" मामला हो गया .... असतिज़ा बताते हैं कि रचना में वर्षों के पर्यायवाची "सालों" शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए ... सम्बन्धवाचक शब्द का बोध होने लगता है मगर यहाँ तो ज़बान से "चार साला जश्न" ही निकल रहा है पांचवा स्थापना दिवस कहके भी काम चलाया जा सकता है मगर जब जश्न की बात हो तो कौन इतना दिमाग घुसेड़े ....

फिर तो चार साला जश्न की तैयारी होनी चाहिए ... कहीं मिला जाए !!! इलाहाबाद में ??? हाँ कुछ ऐसी पिलानिंग की तो जा रही थी कि १ अप्रिल को मिलना मिलाना होगा ... ये प्रकाशन के चक्कर में दिमाग से ही स्लिप हो गया ./.... वो तो गमेश भाई ने कहा कि चार साल हो गए तो मुझे चौंकना पडा ... अरे हो गए !!! हाँ भाई ये तो आज सच में १ अप्रैल है और आज चार साल हो गए,,,,, फिर तो बधाई हो

भाई वीनस जी, इस मंच पर ग़ज़ल विधा के बीज भले ही भाई राणा प्रताप सिंह जी द्वारा ही बोये गए थे लेकिन आपकी कुशल अगुवाई ने ग़ज़ल प्रेमियों को सही राह दिखाने में बहुत मदद की है. अत: इस मौके पर आपको भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ.

बहुत बधाई व शुभकामनायें l

हार्दिक आभार मा० शन्नो जी.

ओ. बी. ओ. वर्षगाँठ पर इस सम्पूर्ण परिवार को हार्दिक बधाइयाँ 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
6 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service