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लोकपाल विधेयक आज सबसे ज्यादा गंभीर बहस का मुद्दा है. लोकपाल विधेयक के लिए दोनों तंत्रों में भारी भिड़न्त है. एक विधेयक सरकारी तंत्र के द्वारा लाया जा रहा है और दूसरा विधेयक प्रख्यात गांधीवादी अन्ना हाजरे के द्वारा. अन्ना हाजरे का दावा है कि उनके द्वारा बनाया जाने वाला विधेयक ही भ्रष्टाचार का निदान है जिसे जनता का व्यापक समर्थन है. जबकि सरकारी तंत्र का दावा है कि उनका विधेयक स्वयं इतना ताकतवर है. बहस के इस मुद्दे पर असली सवाल छूट जाता है. दरअसल इस बहस में जनता का असली मुद्दा गायब है और वह मुद्दा है जनता के रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा को बरकरार रखना. असली मुद्दा है विधेयक नहीं वरन् यह व्यवस्था है जिसका सर्वेसर्वा अवशेष सामंत और पूंजीपति है, जिसकी सेवा करना ही इस व्यवस्था का असली मकसद है. इसमें जनता कहीं भी नहीं है. देश में विभिन्न प्रकार की सैकड़ों कानूनें बनायी गई है, जिसका मूल आत्मा अंग्रेजी हुकूमत की है. आजाद भारत ने वह तमाम धारायें व कानूनें आज तक सलामत रखी है, जिसका निर्माण अंग्रेजी हुकूमत ने किया था. जिसका उद्देश्य कतई जनता की सेवा करना नहीं था. जिस प्रकार बनी या बनाई गई सैकड़ों-हजारों कानून जनता की कोई सेवा नहीं कर सकी है, उसी तरह क्या गारंटी है कि लाई जाने वाली लोकपाल विधेयक भी जनता की सेवा कर सकेगी ?
नहीं, कोई गारंटी नहीं है.
दरअसल भ्रष्टाचार के कारण देश में शासक वर्ग जो सामंतवाद और पूंजीवाद का सेवा करता है, देश तथा दुनिया की निगाहों में व्यापक बदनामी से बचना चाहता है. किसी हद तक माओवादियों का आतंक भी सर पर मंडरा रहा है, जो देश में गृहयुद्ध छेड़ कर शासक वर्ग को नस्तेनाबूद कर अपना शासन कायम करने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. दरअसल अन्ना बनाम सरकार की लड़ाई से जनता का कुछ भी लेना देना नहीं है, यह दरअसल शासक वर्गों का आपसी अन्तरविरोध ही है, जिसका हल अन्ततोगत्वा अमेरीका के सहमति से हो जाना है. आम जनता महज दर्शक है. कानून बनाने से समस्या हल नहीं होगा, यह हम पिछले सात-आठ दशकों से देख चुके हैं. वरन् व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव करके ही भ्रष्ट्राचार की समस्या सहित जनता की तमाम मूल समस्या का निदान होना संभव है. जैसे सूचना के अधिकार का कानून बन जाने मात्र से सूचना मांगने पर मिल नहीं जाती, वरन् सूचना मांगनेवाले मौत के घाट भी उतारे जा रहे हैं. एक ऐतिहासिक तथ्य है: एक बादशाह के जमाने में एक कानून पारित किया गया था कि जिस दरोगा के क्षेत्र में किसी व्यापारी को जान-माल की क्षति होगी, उस दरोगा को उसकी भरपायी करनी होगी. एक व्यापारी का माल डकैतों ने लूट लिया. दरोगा को रिपोर्ट देने गया. दरोगा ने उस व्यापारी की इतनी बेरहम पिटाई करवाई की वह बिना अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाये वहां से चला गया. क्या बिना व्यवस्था बदले लोकपाल के इस नियम से भ्रष्टाचार मिट जायेगा या काबू कर लिया जायेगा ? यह एक गंभीर सवाल है, जिसका हल सिर्फ जागरूक और लड़ाकू जनता ही खोज सकती है.

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खाओ कसम इस देश से चोरो को भगा देंगे बेईमान मंसूबो मे आग लगा देंगे भारत मे रहकर जो करे राष्ट्रद्रोह की बाते एसे सभी निशान भारत से मिटा देंगे" देश की सरकार जनता को यू गुमराह नही कर सकती इस देश की मिट्टी मे बहुत दम हे सरकार इस देश से भ्रष्टाचार हटाना ही नही चाहती. जागो देश वासीयो हमे जनलोकपाल चाहिए और हम लाकर रहेंगे. एक ७० साल के व्रद्ध ९ दिन से बिना कुछ खाए अनशन पर हे वो भी हमारी भलाई के लिए देश की भलाई के लिए उनका साथ दो. ईश्वर को भी मुँह दिखाना हे अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो वरना तुम्हारा अंतरमन तुम्हे कभी माफ़ नही करेगा

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