For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या – माह जनवरी 2017 – एक प्रतिवेदन :: डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या – माह जनवरी 2017  – एक प्रतिवेदन :: डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

 

करता हूँ शुरू मैं काव्य पाठ तुझे शीश झुकाकर माँ

तेरी ही कृपा से छलक रही गीतों की गागर माँ

     

     ग़ज़लकार कुंवर कुसुमेश की उक्त वाणी वंदना से 37, रोहतास एन्क्लेव, लखनऊ  में उपस्थित सभी साहित्य अनुरागियों का हृदय रस रंजित हो उठा. यह आगाज था, नव वर्ष के आगमन पर ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की प्रथम साहित्यिक गोष्ठी का, जो संयोजक डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी के आवास पर दिनांक 21-01-2017, शनिवार, सायं 3 बजे प्रारम्भ हुयी. कार्यक्रम का सञ्चालन कर रही थीं प्रतिष्ठित कवयित्री आभा खरे.

   

     इस गोष्ठी में शहर के जाने माने संधिवात विशेषज्ञ (RHEUMATOLOGIST ) एवं भाषाविद् डॉ० स्कन्द शुक्ल की उपस्थिति एक उपलब्धि थी. उन्होंने शब्दों के प्रयोग में सावधानी बरतने की सलाह देते हुए बताया कि किसी भी शब्द के पर्याय सर्वशः समानार्थी नहीं होते. अतः शब्दों के पर्याय का प्रयोग करने में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता है. उन्होंने धरती और उसके  पर्याय पृथ्वी के सम्बन्ध में अर्थान्तर की व्याख्या करते हुए कहा कि धरती धरित्री शब्द का तद्भव है जिसका अर्थ है धारण करने वाली जबकि पृथ्वी का अर्थ है राजा पृथु की पुत्री. राजा पृथु ने धेनुरूपा धरती का दोहन किया था और उसे अपने पुत्री के रूप में स्वीकार किया था. अतः इन शब्दों का प्रयोग करते समय इन शब्दों की व्युत्पत्ति को ध्यान में रखना आवश्यक है. डॉ0 शुक्ल ने सुमित्रानंदन पन्त के शब्द चयन और उसके सार्थक प्रयोग की अनुशंसा की. उन्होंने यह भी कहा कि नए रचनाकारों को पन्त जी के काव्य ‘पल्लव’ की भूमिका अवश्य पढ़नी चाहिए.

 

    संचालिका आभा खरे ने काव्य पाठ हेतु पहले कवि के रूप में इन्ही डॉ० स्कन्द शुक्ल का आह्वान किया, जिन्हें लगता है कि धरित्री पर सृजन अलसित है और उसे गति और प्रकाश की आवश्यकता है , तभी वे कहते हैं –

 

है सृजन आलस भरा लेकिन

है ऊंघती सोती धरा लेकिन

तन्द्रिमा अलसित जगत को गति प्रखर दो

भानु की हिय प्रेयसी आलोक भर दो

 

    कवयित्री एवं कथाकार कुंती मुकर्जी ने ‘हवा और पत्थर’ शीर्षक से एक छोटी और भावपूर्ण कविता सुनायी. इसका मुख्य अंश इस प्रकार है –

 

छिड़ी है जंग हवा में

एक पत्थर को तराशने की...!!-

-- - - -  - - - - -- - -- --

शब्द और संवेदना के बिना

कैसे तराशेगा ?

सोच रहा है शिल्पकार,

पत्थर का सख़्त होना ज़रूरी है!

 

    डॉ० शरदिंदु मुकर्जी ने सर्व प्रथम वीनस केसरी की एक ग़ज़ल पढ़ कर सुनायी. इसके बाद उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की आत्म-कथा "जीवन स्मृति" की भूमिका का अनुवाद पढ़ा. यह अनुवाद स्वयं डॉ० शरदिंदु मुकर्जी का किया हुआ है  और गुरुदेव की भावनाओं को यथार्थ रूप में प्रकट करने की कैफियत रखता है. इसका एक अंश यहाँ पर बानगी के रूप में दिया जा रहा है –

 

पथिक जब पथ पर चलता है या विश्राम गृह में ठहरता है तब वह पथ अथवा विश्राम गृह उसके लिए चित्र नहीं होता – तब वह उसकी आवश्यक्ता है, प्रत्यक्ष सत्य है. जब पथिक की अवश्यक्ता पूरी हो जाती है, जब वह पथ पार करके आगे बढ़ जाता है तब पीछे का अनुभव चित्र बन कर परिस्फुट होने लगता है. जीवन के प्रभात में जिन शहर अथवा मैदान, नदी तथा पहाड़ के बीच से यात्रा करनी पड़ती है, उनकी ओर अपराह्न की वेला में विश्राम गृह में प्रवेश करते समय मुड़कर देखने से, आसन्न दिवावसान के आलोक में वे सभी चित्र बनकर दृष्टिगोचर होते हैं

गुरुदेव की भूमिका का अनुवाद पढने के बाद उन्होंने स्वरचित कविता “बगावत” का पाठ भी किया

----

पता चला है

कि पटरियों की मरम्मत शुरू की गयी है.

शायद कल्पना की रेलगाड़ी

फिर से चल पड़े.

क्रमश: अदृश्य होते खेतों में

कौन सी फसल उगायी जा रही है

मैं कह नहीं सकता-

लेकिन आप सब निश्चिंत रहें

मैंने अपनी कलम को समझा दिया है

ऐसे भिखमंगे की तरह

हाथ मत फैलाया करो

तुम्हें

मुझसे कोई आरक्षण नहीं मिलेगा.

 

    कवयित्री संध्या सिंह ने कुछ सुन्दर एवं सामयिक दोहे सुनाये और एक ग़ज़ल के चंद शेर प्रस्तुत किये. उन्होंने ख्वाब और हकीकत को बिम्बों के माध्यम से इस प्रकार रूपायित किया -

 

ख्वाब

रात के खुले सीने पर

ठहरी हुयी शबनम सा

हकीकत

दिन की नंगी पीठ पर

रेंगती बूँद

पसीने की .

 

    सुश्री आभा चंद्रा ने एक लघुकथा सुनायी – “कॉफी का कप”. उन्होंने यह स्वीकारते हुए कि ग़ज़ल की दुनिया में उनके कदम अभी नए हैं अपनी ग़ज़ल का मतला कुछ इस तरह पेश किया.

 

ये जो दुनिया है दाइमी कम है.

गम बहोत हैं यहाँ खुशी कम है.

 

    संचालिका आभा खरे ने दुनिया के उल्लास के बीच जीवन संग्राम से थके एक तटस्थ चरित्र को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि –

 

यूँ तो किनारों पर कहकहों के मेले हैं

फिर भी वे कितने उदास और अकेले हैं

 

आज की युवा पीढ़ी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा-

 

कुछ परिंदे

उड़ने की चाह लिए 

भूल जाते हैं घर लौटना 

और जब लौटते हैं 

तो दरवाजे तो खुले मिलते हैं

लेकिन घर, घर नहीं रहता.

 

    कुंवर कुसुमेश ने अपनी एक ग़ज़ल में पहली जनवरी को बड़ी शिद्दत से याद किया और नये वर्षागम की याद एक बार फिर से ताजा कर दी. फिर उन्होंने एक नयी ग़ज़ल पढ़ी जिसके कुछ शेर इस प्रकार हैं -

 

डगमगाने लगी हैं भंवर में

कश्तियाँ मुब्तिला किस सफ़र में

आदमी छोड़कर आदमीयत

डूबता जा रहा मालो जर में

 

    कार्यक्रम में अंतिम पाठ डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने किया. उन्होंने कुछ हिन्दी ग़ज़लें पेश की. उनमें से एक के कुछ अंश निम्न प्रकार हैं -

 

वृन्दावन की वीथी में तुमने ही झिटकी थीं बाहें

फिर उन बाँहों को मंदिर की शाला में गहते हो क्यों ?

 

युग की निष्ठुरता का बाना धारण यदि कर ही डाला

तो सबसे उस मधुचर्या की मृदु बातें कहते हो क्यों ?

 

    अन्धेरा अपनी सुरमई बाहें फैला चुका था. शीत बढ़ने लगी थी. लोग अपने घरों को जाने को आतुर हो उठे. तभी दूर से एक संगीत भरी स्पष्ट आवाज आती सुनायी दी. लोग चौंक उठे और फिर एक दूसरे को देख मुस्कराते हुए प्रस्थान का उपक्रम करने लगे.

 

नशा उतरा है खुमार बाकी है

बहुत गुबारों का  उतार बाकी है

कभी मिलेंगे तो जश्न फिर होगा

अभी तो सफरे शुमार बाकी है    (सद्यरचित )

 

 

 

 

Views: 707

Reply to This

Replies to This Discussion

आ० शरदिंदु जी .मैं सद्य्ररचित कविता का सही  स्वरुप फोने पर नहीं दे पाया  - रचना यूँ है - 

नशा उतरा है खुमार बाकी है

बहुत दिल का गुबार बाकी है

कभी मिलेंगे तो जश्न फिर होगा

अभी तो सफरे शुमार बाकी है    ---------------------------सादर .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service