For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
प्रस्तुत है.....
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126
विषय : पहचान
अवधि : 29-09-2025 से 30-09-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 278

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

पहचान
'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया।
'.........?'
'मैं करीम।' दूसरे का उत्तर था।
फिर दोनों ने तीसरे अजनबी से पूछा, ' कौन हो तुम? '
'आदमी।' उसने कहा।
' अरे अपना नाम, पता बताओ।' दोनों गुर्राए।
' बताया तो। नहीं समझे? ' तीसरा बेबाकी से बोला।
" मौलिक तथा अप्रकाशित "

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे चिंतन की ओर ले जाती है। यह सवाल उठाती है कि हम पहचान को कैसे परिभाषित करते हैं और समाज दूसरों से क्या अपेक्षा करता है। तीसरे अजनबी का जवाब न केवल सुमन और करीम को चुनौती देता है, बल्कि पाठक को भी आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करता है। यह लघुकथा हल्के-फुल्के अंदाज़ में गंभीर दार्शनिक सवाल छोड़ जाती है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर

लघुकथा को मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय, मिथिलेश जी। 

आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। इंसानियत ही असली पहचान है। इंसानियत वाला ही आदमी है, नाम और पता वाले से पहचान हो भी तो क्या?

आदरणीय उस्मानी जी, लघुकथा की मार्मिकता की परख हेतु आपका दिली आभार। 

प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मनन जी

आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। 

डिलेवरी बॉय 

मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले पर चढ़कर डिलेवरी बॉय पसीने से तरबतर ऑफिस के रिसेप्शन सह वेटिंग रूम में पहुंचा । 

उसे देखकर स्नेहा ने कहा, "भैया ऑफिस की पार्टी का खाना है आप अकेले ही ले आए?"

उसने कोई जवाब न देते हुए बस मुस्कुरा दिया और सवालिया निगाहों से स्नेहा की ओर देखता रहा।

स्नेहा ने पास के टेबल की ओर इशारा करते हुए कहा, "यहां रख दीजिए।" और खुद भी उसकी सहायता के लिए आगे बढ़ गई।

अविनाश बस खड़े खड़े यह सब देख रहा, तो स्नेहा ने आगे बढ़ते हुए कहा, "अविनाश प्लीज हेल्प।"

अविनाश को टस से मस न होता देख स्नेहा ने ऑफिस बॉय को आवाज लगाई। 

ऑफिस बॉय की मदद से उसने खाने के पैकेट टेबल जमा दिए।

स्नेहा ने फिर आवाज लगाई, "अविनाश वाटर कूलर से एक ग्लास पानी ले आओ, भैया धूप से आए हैं।"

लेकिन अविनाश नहीं हिला। स्नेहा ने जब तक भुगतान किया तब तक ऑफिस बॉय एक ग्लास में पानी ला चुका था। उसने एक सांस में पूरा पानी गटक लिया।

स्नेहा टिप देना चाहती थी लेकिन उसके पास चेंज नहीं थे। उसने फिर अविनाश को आवाज़ लगाई। 

अविनाश इस बार भी टस से मस न हुआ। ऑफिस बॉय दौड़कर अविनाश के आगे खड़ा हो गया। 

अविनाश ने जेब से एक सौ का नोट निकाला। उसे सुबह ही उसके पिता ने सौ सौ के पांच करारे नोट दिए थे।

डिलेवरी बॉय ने ऑफिस से बाहर निकलते हुए जेब से निकालकर फिर उस सौ के नोट को देखकर मुस्कुराते हुए बुदबुदाया, चलो सुबह के पांच सौ में से सौ तो लौट गए। उसे उम्मीद थी कि पीछे से आवाज आएगी "पापा।" 

लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।

( मौलिक व अप्रकाशित)

सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब। बहुत दिनों बाद गोष्ठी में आपकी रचना पढ़कर हम धन्य हुए। //स्नेहा टिप देना चाहती थी....// यहां लेखकीय प्रवेश लग रहा है। इस बात को किसी तरह संवाद में पिरोया जा सके, तो बेहतर।

//"ओह, मेरे पास तो फुटकर पैसे भी नहीं हैं!", अपनी ज़ेब टटोलते हुए स्नेहा बुदबुदाई और तुरंत ही उसने अविनाश को पुकारा/आवाज़ लगाई।// ऐसा कुछ लिखा जा सकता है मेरे विचार से।

उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो रिसेप्शनिस्ट है न! 

जी दोनों सहकर्मी है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service