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मन के आँगन में फूटा जो प्रीतांकुर नवजात |(४८ )

एक गीत

==========

मन के आँगन में फूटा जो

प्रीतांकुर नवजात |

खाद भरोसे की देकर अब

सींच इसे दिन-रात |

**

ध्यान रहे यह इस जीवन का

बीत गया बचपन |

आतुर है दस्तक देने को

अब मादक यौवन |

उर-आँगन में जगमग हर पल

सपनों के दीपक

और रही झकझोर हृदय को

यह बढ़ती धड़कन |

वयः संधि का काल हृदय में

भावों का उत्पात |

खाद भरोसे की देकर अब

सींच इसे दिन-रात |

**

सावधान रह खो मत देना

मधुर प्रीत के पल |

स्वाभाविक है मन-सागर में

लहरें जो चञ्चल |

आकर्षण का जाल परस्पर

लाता नित्य निकट

अनजाने ही परवश होता

जाता अंतस्तल |

मौन साध कर भी हो जाती

नयनों से है बात |

खाद भरोसे की देकर अब

सींच इसे दिन-रात |

**

जीवन आह-कराह उबासी

का होता संगम |

और कभी खो देते तन मन

अपना जब संयम |

प्रीत वासना के चंगुल में

रह जाती फँसकर

बोध स्वयं को होने लगता

अपराधी के सम |

ऐसे क्षण में जाग किसी से

करना मत यह घात |

खाद भरोसे की देकर अब

सींच इसे दिन-रात |

**

मन के आँगन में फूटा जो

प्रीतांकुर नवजात |

खाद भरोसे की देकर अब

सींच इसे दिन-रात |

**

गिरधारी सिंह गहलोत तुरंत' बीकानेरी |

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 5, 2019 at 4:35pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी ,आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार | 


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2019 at 12:17pm

क्या बात है , आदरणीय गिरधारी भाई , बढिया गीत रचना की है , हार्दिक बधाई

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 24, 2019 at 12:38pm

आदरणीय  Samar kabeer साहेब आपकी सराहना से मन गदगद है ,इसी तरह स्नेह बनाये रखें और मार्गदर्शन भी करते रहें | सादर नमन | 

Comment by Samar kabeer on June 24, 2019 at 11:48am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,बहुत अच्छा गीत रचा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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