For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -डरता हूँ घर जले न कहीं इस शरर से, मैं -- ( गिरिराज भंडारी )

221    2121     1221       212

तंग आ गया हूँ हालते क़ल्ब-ओ-ज़िगर से मैं

उकता गया हूँ ज़िंदगी, तेरे सफर से मैं

 

होश ओ हवास ओ-बेख़ुदी की जंग में फ़ँसे

दिल सोचने लगा है कि जाऊँ किधर से मैं

 

मंज़िल मेरी उमीद में जीती है आज भी
पर इलतिजाएँ कर न सका रहगुज़र से मैं

 

ऐसा नहीं गमों से है नाराज़गी कोई

उनकी ख़बर तो लेता हूँ शाम-ओ-सहर से मैं

 

अब नफरतों, की शक़्ल भी आतिश फिशाँ हुईं

डर है झुलस न जाऊँ कहीं इस शरर से मैं

 

जब जब हवायें तुँद हुई डर के छिप गया
उक्ता गया हूँ अब तो मियाँ हमसफ़र से मैं

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 11:26am

आ. अभिषेक भाई , आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Abhishek kumar singh on January 11, 2017 at 10:14pm
वाहहहहह लाजवाब

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:25pm

आदरनीय बड़े भाई , गज़ल को आपका आशीष मिला तो गज़ल कहना सार्थक हो गया , आपका हृदय से अभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:24pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:24pm

आदरनीय धर्मेन्द्र भई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:23pm

आदरनीय मिथिलेश भाई , सराहना और उचित सलाह के लिये आपका हृदय से आभार । आदरणीय समर भाई जी की इस्लाह के अनुसार सुधार कर रहा हूँ । सलाह के लिये पुनः आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:21pm

आदरणीय समर भाई , आपकी पारखी निगाहों ने सही बात पकड़ी , ये ग़ज़ल जल्दबाज़ी मे ही पोस्ट की थी कुछ कारण वश । आपकी इस्लाह शानदार है , सुधार कर रहा हूँ । समय से इस्लाह के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:18pm

आदरणीय दिनेश भाई , सराहना के लिये आपका आभार , आपका कहना दुरुस्त है , सुधार कर रहा हूँ , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:17pm

आदरनीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:17pm

आदरनीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service