For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र विवरण-अगला चरण:

पिछली पोस्‍ट में जो जानकारी दी गयी थी उससे एक स्‍वाभाविक प्रश्‍न उठता है कि सभी मुफ़रद बह्र एक ही रुक्‍न की आवृत्ति से बनती हैं तो वो प्रकृति से ही सालिम हैं और मुरक्‍कब बह्र अलग-अलग अरकान से बनती हैं तो सालिम हो नहीं सकतीं फिर सालिम परिभाषित करने की आवश्‍यकता कहॉं से पैदा हुई। जहॉं तक मूल अरकान की बात है उनके लिये सालिम परिभाषित करने की वास्‍तव में कोई आवश्‍यकता नहीं थी लेकिन अरकान के जि़हाफ़़ से मुज़ाहिफ़ बह्र बनती हैं और उनमें एक ही जि़हाफ़़ की आवृत्ति होने पर सालिम की स्थिति बनती है। जि़हाफ़़ क्‍या होते हैं और मुज़ाहिफ़ बह्र क्‍या होती हैं इस पर पृथक से बात करेंगे। जि़हाफ़़ के रूप में एक नया विषय खोलने से पहले उचित होगा कि पहले मूल अरकान से बनने वाली मुरक्‍कब बह्रों पर चर्चा पूरी कर ली जाये। आज का आलेख मुरक्‍कब बह्र पर जानकारी लेकर प्रस्‍तुत है।
पिछले आलेख में हमने मुफ़रद बह्र देखीं जो किसी एक ही मूल रुकन की आवृत्ति से बनती हैं। संगीत अगर मुफ़रद बह्र में ही सीमित कर दिया जाये तो 7 मुफ़रद बह्रों से उनके मुसम्मन्, मुसद्दस् और मुरब्‍बा रूप मिलाकर कुल हुए 7x3=21 रूप और इन सबके मुदाईफ़ रूप भी ले लें (6 और 8 रुक्‍न के) तो कुल 35 रूप हुए। एक ही रुक्‍न की आवृत्ति में बह्र की लंबाई में तो अंतर पड़ता है लेकिन विविधता का पूर्ण आनंद प्राप्‍त नहीं होता है। यह काम आंशिक रूप से आगे बढ़ता मुरक्‍कब बह्रों से जिनमें एक से अधिक मूल रुक्‍न अरकान के रूप में प्रयोग में आते हैं। जैसा कि तालिका में दर्शाया गया है।

मुरक्‍कब बह्रें

बह्र

रुक्‍न-1

रुक्‍न-2

रुक्‍न-3

रुक्‍न-4

वो बह्रें जो शाखाओं के साथ प्रचलित हैं

मुन्सरेह

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

मुजारे

मफाईलुन्

फायलातुन्

मफाईलुन्

फायलातुन्

मुजास वा मुज्तस

मुस्तफ्यलुन्

फायलातुन्

मुस्तफ्यलुन्

फायलातुन्

तवील

फऊलुन्

मफाईलुन्

फऊलुन्

मफाईलुन्

वो बह्रें जो प्रचलित हैं

मुक्तजिब

मफ्ऊलात

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

मुस्तफ्यलुन्

सरीअ

मुस्तफ्यलुन्

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

 

वो बह्रें जो कम प्रचलित हैं लेकिन जिनकी शाखायें प्रचलित हैं

मदीद

फायलातुन्

फायलुन्

फायलातुन्

फायलुन्

बसीत

मुस्तफ्यलुन्

फायलुन्

मुस्तफ्यलुन्

फायलुन्

वो बह्रें जिनकी केवल शाखायें प्रचलित हैं

खफीफ

फायलातुन्

मुस्तफ्यलुन्

फायलातुन्

 

जदीद

फायलातुन्

फायलातुन्

मुस्तफ्यलुन्

 

मुशाकिल

फायलातुन्

मफाईलुन्

मफाईलुन्

 

वो बह्रें जो उर्दू में प्रचलित नहीं हैं

करीब

मफाईलुन्

मफाईलुन्

फायलातुन्

 

कलीब

फायलातुन्

फायलातुन्

मफाईलुन्

 

असम

फायलातुन्

मफाईलुन्

फायलातुन्

 

वो बह्रें जो प्रचलित नहीं हैं

कबीर

मफ्ऊलात

मफ्ऊलात

मुस्तफ्यलुन्

 

सगीर

मुस्तफ्यलुन्

फायलातुन्

मुस्तफ्यलुन्

 

सरीम

मफाईलुन्

फायलातुन्

फायलातुन्

 

सलीम

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

मफ्ऊलात

 

हमीद

मफ्ऊलात

मुस्तफ्यलुन्

मफ्ऊलात

 

हमीम

फायलातुन्

मुस्तफ्यलुन्

मुस्तफ्यलुन्

 

 

रुक्‍न 

मात्रा-क्रम

विवरण

फायलातुन्

2122

फा

2

1

ला

2

तुन्

2

 

 

मुस्तफ्यलुन्

2212

मुस्‍

2

तफ्

2

1

लुन्

2

 

 

मफाईलुन्

1222

1

फा

2

2

लुन्

2

 

 

मुतफ़ायलुन्

11212

मु

1

1

फ़ा

2

1

लुन्

2

मफ़ायलतुन्

12112

1

फा

2

1

1

तुन्

2

मफ्ऊलात

2221

मफ्

2

2

ला

2

1

 

 

फऊलुन्

122

1

2

लुन्

2

 

 

 

 

फायलुन्

212

फा

2

1

लुन्

2

 

 

 

 

 

Views: 2557

Replies to This Discussion

तिलक जी,

अरकान के नामों "फायलुन", "फऊलुन" इत्यादि का क्या महत्त्व है.. यदि बह्र को १२ कि गिनती से आराम से गिना जा सकता है?

इन नामों में ऐसा क्या है जो १२ कि गिनती से नहीं किया जा सकता?

 

1 2 तो मात्रिक वज्‍़न हुए। इनसे पता नहीं चलता कि रुक्‍न क्‍या हैं, रुक्‍न पता चलने पर जुज़ मालूम होंगे और ज़़ज़ मालूम होने पर ही मालूम हो सकेगा कि जहॉं 2 का वज्‍़न है वहॉं दोनों मुतहर्रिक हैं या एक मुतहर्रिक और एक साकिन।

एक और महत्‍वपूर्ण बात यह है कि अरकान गेय स्‍वरूप हैं मात्राओं के। अगर आप अरकान को गेय स्‍वरूप या तहत में पढ़ेंगे तो ग़ज़ल कहना आसान रहेगा।

तिलक जी,

रुक्न जानने की ज़रूरत क्यों है? और गेय स्वरूप के लिए 'ल ला ला ला' भी तो किया जा सकता है 'मुफाईलुन' ही क्यों?

क्या इतना जानना काफी नहीं कि दो लघु एक साथ मिल कर एक दीर्घ हो जाते हैं और २ का वज़न ले लेते हैं. जुज़ वगेरा जानने की क्या आवश्यकता है.  एक दिन सरवर आलम राज सरवर जी से बात हो रही थी. उन्होंने कहा कि १२ १२ का तरीका शुरू में ही ठीक है लेकिन अगर तकतीअ की बारीकियों में जाएँ तो यह काम नहीं आती.. मेरे दिमाग में अटक गया कि क्यों? अभी तक हम किसी भी बह्र को १२ से आसानी से ठीक ठाक पहचान लेते हैं तो और क्या बारीकी हो सकती है और अगर है भी तो क्या और ज़रूरत क्या है? क्या ऐसा है की जिन बारीकियों की वो बात कर रहे थे वे उर्दू और अरबी के अलफ़ाज़ में ही लागू होती है?

तीन दिन प्रवास बाद लौटा हूँ, इसलिये विलंब हो गया।

बह्र का एक अन्‍य अर्थ है समन्‍दर, अब इसी से आप समझ लें कि मामला कितना गंभीर है।

बात अंत में जुज़ पर भी नहीं ठहरती, यह पहुँचती है उत्‍पन्‍न होने वाले स्‍वर के मुतहर्रिक होने अथवा साकिन होने तक और फिर उनके अदा करने के तरीके तक। मुझे लगता है कि जिस गहराई तक आप डुबकी लगाना चाहते हैं वह अभी कुछ ज्‍यादह हो जायेगी।

अगर आप अग्रिम रूप से इस बॉंट तराजू को समझना चाहें तो http://quran.al-shia.org/hi/tajwid/01.htm पर देखें। वहॉं तर्ज़े अदा, लहज- ए- बयान की जो बात कही गयी है वह हर भाषा पर लागू होती है लेकिन वहॉं नियम केवल अरबी के हैं।

तिलक जी, एक और बात. निम्न सभी का वज़न २ हुआ...

मुस्  = २,

तफ = २

लुन = २

ऊ = २

ला = २

अब १२२ को 'फऊलुन' ही क्यों कहा जाता है? 'मफालुन' क्यों नहीं? क्या इसलिए कि 'फऊलुन' के जुज़ 'मफालुन' के जुज़ से अलग होंगे... अगर ऐसा है तो क्या हम जो १२२ की गिनती से तकती (बिना जुज़ देखे) से कर रहे हैं वो गलत है(या हो सकती है)? लेकिन अगर गलत गिनती कर भी रहे हैं तो अगर गज़ल सुनने पढ़ने में लय में है तो फिर १२२ को  'फऊलुन' कहें या 'मफालुन', क्या कोई अंतर पड़ता है?  कृप्या अरकान को गहराई में समझाएं कि इनका महत्व क्या है और हमें इन्हें जानने कि ज़रूरत क्यों है. महत्त्व तो होगा ही  नहीं तो पूरा अरूज़ १२१२ पर ही समाप्त हो जाए...

इस पर बात अभी लंबित रखते हैं। हॉं इतना अवश्‍य है कि जुज़ (जिसकी अभी हमने बात नहीं की है, और न अभी अवश्‍यक है आरंभिक बातों में) ही निर्धारित करते हैं कि रुक्‍न क्‍या होगा। मुस्, तफ़्, और लुन् भी 2 का वज्‍़न रखते हैं और ऊ, फ़ा, ला तथा ई भी 2 का वज्‍़न रखते हैं लेकिन दोनों को देखें तो प्रकृति का अंतर समझ में आता है। अरकान से आगे की बात अभी बोझिल हो जायेगी। इनकी बारीकी आपको समझनी हो तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन कभी किसी मस्जि़द से उठती अजान को समझने का प्रयास करें तो काफ़ी कुछ समझ आ जायेगा।

यह सही 1212; 1212 जितना सरल है नहीं।  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service