परमपुरुष की विशेषता
===============
परमात्मा को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह ब्रह्माॅंड उन्होंने ही बनाया है , परमा प्रकृति को उनका थोड़ा सा भी संकेत मिलते ही वह उसे तत्काल मूर्तरूप दे देती है। इसलिये जो लोग उनकी प्रशंसा करते हैं या उन्हें प्रसन्न करने के लिये भौतिक जगत की वस्तुयें भेंट करते हैं वह उनके किसी काम नहीं आता।
परमपुरुष सदा नित्यानन्द अवस्था में रहते हैं और परमाप्रकृति उनकी सेवा में तत्पर रहती है। उनके भंडार में कभी भी किसी वस्तु की कमी नहीं रह सकती समग्र ब्रह्माॅंड ही उनकी विचार तरंगों का व्यक्त रूप है अतः सब कुछ उनके मन में ही रहता है।
कुछ लोग पूछ सकते हैं कि यदि उन्हें किसी प्रकार की प्रशंसा या वस्तु की आवश्यकता नहीं है तो वे अपना नाम क्यों जाप कराना चाहते हैं, अपना ध्यान क्यों कराना चाहते हैं ?
इसका उत्तर यह है -
नहीं , वह अपनी प्रशंसा के भूखे नहीं हैं, पर उनकी यह इच्छा अवश्य रहती है कि हम सब उनकी संतान, आध्यात्म की ओर , उनकी ओर , लगातार बढ़ते जायें, उनका वंश प्रकृति और कर्म के बंधनों से मुक्त हो, और इसका सरल तरीका यही है कि उनका नाम स्मरण किया जाये। इसके पीछे जो विज्ञान कार्य करती है वह है ‘‘ याद्रशी भावना यस्य, सिद्धिर्भवति ताद्रशी ‘‘ अर्थात् हम जैसा सोचते हैं वैसा ही हो जाते हैं । इसलिये स्वयं की अध्यात्मिक उन्नति के लिये ही उन्हें और उनकी महानता का स्मरण करने के लिये नाम कीर्तन करना आवश्यक हो जाता है। परमपुरुष का लक्षण यह है कि वह विराट हैं, ब्रह्म हैं, और जो उनका ध्यान चिंतन करता है वह भी ब्रह्म अर्थात् विराट होता जाता है । इसीलिये ब्रह्म का अर्थ है "ब्रहत्वाद् ब्रह्म ,ब्रंहणत्वाद् ब्रह्म " अर्थात् जो स्वयं विराट है और दूसरों को भी विराट बना सकता है वह ब्रह्म है ।
इसलिये मनुष्य यदि उनका ध्यान करता है तो उसका मन भी उन्हीं की तरह विराट हो जाता है। उनका यही रहस्य है।
मौलिक और अप्रकाशित
Tags:
आदरणीय टीआर सुकुल जी, याद्रशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति ताद्रशी के अनुसार दुरुस्त कर लें. सिद्धिर्भवति गलत टाइप हो गया है.
पूरा श्लोक यों है -
देवे तीर्थे द्विजे मंत्रे दैवज्ञे भेषजे गुरौ ।
याद्रशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति ताद्रशी ॥
अर्थात, देव, तीर्थ, ब्राह्मण, मंत्र, ज्योतिष, वैद्य गुरु के प्रति जैसी भावना होती है, वैसी ही सिद्धि यानी प्रतिफल भी प्राप्त होता है.
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |