२१२ २१२ २१२ २१२
झूठ मिटता गया देखते देखते
सच नुमायाँ हुआ देखते देखते
तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी
कैसा जादू हुआ देखते देखते
तार दाँतों में कल तक लगाती थी जो
बन गई अप्सरा देखते देखते
झुर्रियाँ मेरे चेहरे की बढने लगीं
ये मुआँ आईना देखते देखते
वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा
हो गया रतजगा देखते देखते
शे’र उनपर हुआ तो मैं माँ बन गया
बन गईं वो पिता देखते देखते
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जयनित जी
बहुत बहुत आदरणीया रमा जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राहुल जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पंकज जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर साहब
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रामबली जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी
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