For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा भले ही कहानी का बोनसाई रूप लगती हो किन्तु यह भी सत्य है कि अपने विशिष्ट कलेवर एवं फ्लेवर के कारण ही लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में पहचान प्राप्त हुई है I मुख्यत: दो बातों की वजह से लघुकथा को कहानी से अलग माना जाता है :

१. लघु आकार
२.एकांगी व इकहरा स्वरूप

लघुकथा एक एकांगी-इकहरी लघु आकार की एक गद्य बानगी है जिसमे विस्तार की अधिक गुंजाइश नहीं होती है I लघुकथा किसी बड़े परिपेक्ष्य से किसी विशेष क्षण का सूक्ष्म निरीक्षण कर उसे मेग्निफाई करके उभारने का नाम है I लघुकथा विधा के सन्दर्भ में यहाँ "क्षण" शब्द के अर्थ जानना नितांत आवश्यक हो जाता है I यह "क्षण" कोई घटना हो सकती है, कोई सन्देश हो सकता है, अथवा कोई विशेष भाव भी हो सकता है I यदि लघुकथा किसी विशेष घटना को उभारने वाली एकांगी विधा का नाम है तो ज़ाहिर है कि लघुकथा एक ही कालखंड में सीमित होती है I अर्थात लघुकथा में एक से अधिक कालखंड होने से वह "कालखंड दोष" से ग्रसित मानी जाएगी तथा लघुकथा न रहकर एक कहानी (शार्ट-स्टोरी) हो जाएगी तथा I इस विषय में डॉ. शमीम शर्मा की बात का ज़िक्र करना आवश्यक हो जाता है I उसके कथनानुसार कथावस्तु कहानी की तरह लघुकथा की रीढ़ है। उसमें उपकथाएँ, अंत:कथाएं या प्रासंगिक कथानक नहीं होते, केवल आधिकारिक कथा ही रहती है। लघुकथा में कथावस्तु की एकतंता, लघुता और एकांगिता अति आवश्यक है। लघुकथा की कथावस्तु अत्यंत प्वाइंटिड होती है। लघुकथा रचना के मूल में एक बिंदु होता है। यहाँ भी "एक बिंदु" की बात कही गई है जिसका सीधा सादा अर्थ यह है कि अर्जुन की भांति एक लघुकथा का निशाना भी केवल मछली की आँख पर ही केन्द्रित रहना चाहिए I

लघुकथा का एकांगी स्वाभाव का होना भी यही इंगित करता है कि लघुकथा केवल एक ही कालखंड पर आधारित होनी चाहिए I अत: माना जाना चाहिए कि कोई भी कथा-तत्व युक्त गद्य रचना मात्र अपने लघु आकार के कारण ही लघुकथा नहीं कहलाती, वस्तुत: उसका कालखंड दोष से मुक्त रहना ही उसे लघुकथा बनाता है I डॉ. मनोज श्रीवास्तव के अनुसार: लघुकथा के लिए किसी भी काल या स्थान का एक छोटा-सा दृष्टांत या प्रसंग़ ही पर्याप्त है जिसमें कथाकार अपनी गहन अनुभूति के माध्यम से समाजोन्नयन का महान लक्ष्य साकार कर सके और वह अपने साधारणीकृत अनुभव के जरिए जन-सामान्य से तादात्म्य स्थापित कर सके। यहाँ डॉ. मनोज श्रीवास्तव जी के "किसी भी काल" तथा "स्थान" पर ध्यान देना आवश्यक है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि लघुकथा में एक से अधिक कालखंड की कोई गुंजाइश ही नहीं है I श्री कृष्णानन्द कृष्ण ने भी कहा है कि "लघुकथा के कथानक का आधार जीवन के क्षण विशेष के कालखंड की घटना पर आधारित होना चाहिए।"

डा० शंकर पुणतांबेकर मानते हैं कि लघुकथा की खिड़की से हम जीवन के किसी कमरे में ही झाँकते हैं, खिड़की का छोटापन यहाँ बाधक नहीं बनता। उलटे वह हमारी दृष्टि को ठीक उस जगह केंद्रित करता है जिसे दिखाना खिड़की का मन्तव्य है। कहानी के कथानक को लघुकथा के रूप में नहीं रखा जा सकता क्योंकि कथानक जिन बिंदुओं पर विस्तार चाहता है, वरित्रों का रूपायन चाहता है, वह लघुकथा नहीं दे सकती। इस प्रकार लघुकथा में एक अवयव,सक व्यक्तित्व की केवल एक विशिष्टता, एक घटनांश विशेष, एक संकेत, एक जीवन खंडांश हो सकता है। विश्लेषण की अपेक्षा एकान्विति की गहनता ही इसके कथानक को सुगुंफित रख सकती है।

डॉ बलराम अग्रवाल जी के अनुसार "लघुकथा किसी एक ही संवेदन बिंदु को उद्भाषित करती हुई होनी चाहिए, अनेक को नहीं कथा-प्रस्तुति की आवश्यकतानुरूप इसमें लम्बे कालखंड का आभास भले ही दिलाया गया हो लेकिन उसका विस्तृत ब्यौरा देने से बचा गया हो I लघुकथा में जिसे हम "क्षण" कहते हैं वह द्वंद्व को उभारने वाला या या पाठक मस्तिष्क को उस ओर प्रेरित करने वाला होना चाहिए I 

लघुकथा में एकल कालखंड वाली बात तो स्पष्ट हो गई, किन्तु अब प्रश्न यह है कि कालखंड दोष से बचाव कैसे हो I उसके लिए आ० सुभाष नीरव के "एक ही कालखंड" को समझना बेहद आवश्यक है,  श्री सुभाष नीरव जी के शब्दों में: एक श्रेष्ठ लघुकथा में जिन आवश्यक तत्वों की दरकार आज की जाती है, मसलन वह आकार में बड़ी न हो, कम पात्र हों, समय के "एक ही कालखंड" को समाहित किए हो I

लघुकथा के "समय के एक ही कालखंड" से सम्बंधित होने से बात शीशे की तरह साफ़ हो जाती है I किन्तु यह समझना भी बेहद आवश्यक है कि कोई भी लघुकथा मात्र इसी कारण कालखंड दोष से ग्रसित नहीं हो जाती कि वह एक से अधिक कालखंड में विभक्त है I वस्तुत: एक से अधिक घटनायों, कालखंडों अथवा अंतराल को आपस में जोड़ने की कुशलता के अभाव से कालखंड दोष पैदा होता है I उदाहरण के लिए एक माँ द्वारा अपने बच्चे को सुबह स्कूल छोड़ने जाना और फिर बाद दोपहर वापिस लाना प्रथम दृश्या एक ही घटना है I किन्तु बच्चे को सुबह स्कूल छोड़ने और शाम को उसे लेने जाने के मध्य जो "अंतराल" है, उसके कारण घटनाक्रम दो कालखंडों में विभाजित हो गया है I लेकिन एक कुशल और अनुभवी रचनाकार विभिन्न कालखंडों में ऐसा सामंजस्य पैदा कर सकता है कि कालखंड दोष का स्वत: निवारण हो जाता है I यहाँ सुप्रसिद्ध लघुकथा मर्मज्ञ मधुदीप गुप्ता जी की लघुकथा "समय का पहिया घूम रहा है" की बात करना समीचीन होगा I इस लघुकथा में लघुकथा 400 वर्ष एवं एक से अधिक कालखंडों में विभाजित होने के बावजूद भी कालखंड-दोष से मुक्त है I अलग अलग कालखंड से सम्बंधित घटनायों को इस प्रकार एक सूत्र में पिरोया गया है कि पाठक दांतों तले उँगलियाँ दबाने पर विवश हो जाता है I कालखंड दोष से बचने का दूसरा आसान उपाय है फ्लैशबैक तकनीक, यह तरीका अपना कर इस दोष से बचा जा सकता है, किन्तु कुशलतापूर्वक ऐसा करने के लिए भी एक लघुकथाकार को गहन अध्ययन, अभ्यास और अनुभव की आवश्यकता होती है I

अंत में केवल इतना ही निवेदन करना कहूँगा कि लघुकथा में शब्द-सीमा का अतिक्रमण कुछ हद तक क्षम्य भी है किन्तु कालखंड दोष से ग्रसित रचना तो लघुकथा ही नहीं रह जाती है, अत: इससे हर हाल में बचा जाना चाहिए I
-----------------------------------------------

Views: 3501

Reply to This

Replies to This Discussion

लघुकथा के शिल्प से अनभिज्ञ था मैं, आज बहुत कुछ पता चल गया आपका आलेख पढ़कर..
हार्दिक धन्यवाद आपको,आदरणीय!

दिल से शुक्रिया भाई जयनित कुमार मेहता जीI   

आदरणीय योगराज सर जी!सादर प्रणाम,रचना में कालखंड दोष होने पर उसे लघुकथा क्यों नहीं कहते,ये बात समझ नही पाती थी । आज इतने विस्तार से पढ़ने के बाद सारे प्रश्नों का उत्तर तो मिला ही कई और बातें लघुकथा के संदर्भ में साफ हो गई । इसके ।लिये आपका जितना आभार प्रकट करू कम है।बहुत-बहुत शुक्रिया । सादर नमन ।

अगर यह आलेख अपना सन्देश देने में सफल रहा तो यकीन मानें यह मेरे लिए भी बायस-ए-मसर्रत है मोहतरमा राहिला जीI दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँI  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service