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रँगेहाथों कोई पकड़े तो हक हकलाता बहुत है (हास्य व्यंग ग़ज़ल 'राज'

१२२२ २१२२  १२२२ २१२२

नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है

छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है

 

जरा रखना जेब भारी करेगा फिर काम तेरा

सदा भूखी तोंद उसकी भले ही खाया बहुत है

 

वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू  

दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है

 

दरोगा वो  गाँव  का देखिये तो  मक्कार कितना

शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है

 

मुहल्ले में शांत रहता मगर उसने बारहा ही   

भिड़ाया है दूसरों को सदा उकसाया बहुत है

 

लगी रहती काम में वो पिया  तोड़े चारपाई

मगर माँ का लाड़ला है भले कमचोरा बहुत है  

 

नहीं आता झूठ भी बोलना उसको देखिये तो

रँगेहाथों कोई पकड़े तो हक हकलाता बहुत है 

 

पड़ोसी है मानने को मरा लेकिन नाग जैसा 

पडा मेरा पाँव उस पर कभी फुफकारा बहुत है

 

रहे प्यासा खून का घूँट पीकर भी बॉस मेरा

न काटे वो गलतियों पर मगर गुर्राता बहुत है

 

सभी बच्चे कांपते हैं मदरसे के मास्टर से

नजर देखो  भेड़िये सी डर उसका छाया बहुत है   

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2015 at 9:50pm

आ० कल्पना भट्ट जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ इस जर्रानवाजी का बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2015 at 10:33pm

आ० विजय निकोर जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई तहे दिल से आभार आपका . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2015 at 10:32pm

आ० मोहन बेगोवाल जी बहुत- बहुत शुक्रिया आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2015 at 10:31pm

मिथिलेश भैया ,आपको ये ग़ज़ल पसंद आई आपकी प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह वर्धन हुआ तहे दिल से आभार आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2015 at 10:29pm

राहिला जी ,आपको ये मजाहिया ग़ज़ल पसंद आई मेरा  लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार  आपका. 

Comment by vijay nikore on November 12, 2015 at 3:40pm

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आया । बधाई।

Comment by मोहन बेगोवाल on November 8, 2015 at 10:54pm

 आदरणीया राजेश  जी, अच्छी मजाहिया ग़ज़ल की बधाई हो,  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 8, 2015 at 7:02pm

आदरणीया राजेश दीदी बहुत शनदार मजाहिया ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर बढ़िया चित्र खींच रहे है लेकिन ये मुझे बहुत पसंद आये-

नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है

छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है.............. बढ़िया मतला हुआ है 

वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू  

दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है............... ये बढ़िया चित्र है... ऐसे घाघ जी याद आ गए 

दरोगा वो  गाँव  का देखिये तो  मक्कार कितना

शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है............ सही कहा 

लगी रहती काम में वो पिया  तोड़े चारपाई

मगर माँ का लाड़ला है भले कमचोरा बहुत है  ........... क्या खूब चित्र खींचा है 

 

नहीं आता झूठ भी बोलना उसको देखिये तो

रँगेहाथों कोई पकड़े तो हक हकलाता बहुत है .............. बढ़िया 

बहुत बहुत बधाई ..... दीदी 

Comment by Rahila on November 8, 2015 at 3:50pm
बहुत -बहुत खूब, पढ़ कर मजा आ गया । बहुत बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी! इस बेहतरीन रचना के लिये । सादर नमन ।

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