For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सर झुकाये हयात आई इसरार पर- शिज्जु शकूर

212 212 212 212
आये उश्शाक़ खुद को लिये दार पर
सर झुकाये हयात आई इसरार पर

ओस की बूंद सा चाँद ढलता हुआ
खूब है सुब्ह के सुर्ख़ रुखसार पर

माह अफ़्लाक़ पर जल उठे हैं कई
नूर उछला है उनका शबे तार पर

मारने हक़ हज़ारों खड़े हैं यहाँ
और मक़्तूल तलवार की धार पर

अपनी नाकामियों का ख़मोशी के साथ
रख दिया उसने इल्ज़ाम अगयार पर

कौन अपना नुमाइंदा है मुल्क में
फूल है तो कहीं हाथ दस्तार पर

ढूँढ ही लेते हैं राह अहले जिगर
खत्म मौके नहीं होते इक हार पर

(उश्शाक़- आशिक़ का बहुवचन; इसरार- आग्रह, हठ; रुखसार- गाल;
अफ़्लाक़- फ़लक़ का बहुवचन; मह- चाँद; शबे तार- अँधेरी रात;
मक़्तूल- मरनेवाला; अगयार- दुश्मन; दस्तार- पगड़ी)

-मौलिक,अप्रकाशित

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:28pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बेगोवाल सर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:27pm
बहुत बहुत शुक्रिया मंसूरी साहब
Comment by मोहन बेगोवाल on November 4, 2015 at 11:15pm

 आदरणीय शिज्जू जी, बाकमाल ग़ज़ल

ये शे'र  बहुत ही सुंदर लगा

अपनी नाकामियों का ख़मोशी के साथ
रख दिया उसने इल्ज़ाम अगयार पर  -बधाई हो 

Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 8:37pm

उम्दा ,ग़ज़ल, वधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:11pm
आदरणीया कांता रॉयजी आपका तहेदिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:10pm
आदरणीय लक्ष्मणजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:10pm
आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव सर आपका हार्दिक आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:09pm
आदरणीया राजेश दीदीद आपका बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:08pm
आदरणीय पंकजजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:07pm
आदरणीय गिरिराजजी आपका हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
9 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service