For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी गज़ल - ज्ञान की अति खा रही है भावनायें ( गिरिरज भंडारी )

2122     2122     2122

एक दिन आ कर तुम्हें भी हम हँसायें

यदि हमारे बहते आँसू मान जायें

 

क्यों समय केवल उदासी बांटता है ?

क्या समय के पास बस हैं वेदनायें

 

जानकारी ठीक है ,पर ये भी सच है

ज्ञान की अति खा रही है भावनायें

 

इस तरफ है पेट की ऐंठन सदी से

उस तरफ़ है भूख पर होतीं सभायें  

 

बात में बारूद शामिल है उधर की

हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें ?

 

अब धरा को छू रहा है सर हमारा

और कितना, बोलिये हम सर झुकायें ?

 

लूट, मक्कारी छपी है पृष्ठों में सब

अब जगह पातीं नहीं जातक कथायें

 

मित्रता की बातें वो भी कर रहे हैं

वो जिन्हें अवसर मिले तो काट खायें

 

अब कहाँ सम्भावना ढूँढे बताओ ?

ईद दीवाली सभी मिल जुल मनायें

 

आसमानों की अगर इच्छा बची है

पंख तौलें, और थोड़ा फड़फड़ायें

 

जब अँधेरा ही अँधेरा है इधर तो

क्यों न दीपक राग ही हम गुनगुनायें

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1141

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 19, 2015 at 7:26am

आदरनीय सुलभ भाई ,

आपने सही कहा है , और मै भी ये जानता और मानता हूँ कि शांति शब्द वहाँ बिलकुल सही है , एक और शायर का मुझे फोन भी आया था कि शेर सही है , कुछ सुधार की ज़रूरत नही है , अब तो आपने भी मुहर लगा दी है , अब कोई सुधार नहीं करूंगा । दर असल अपनी ही गज़ल पर मै खुद को सही साबित करने के लिये तर्क देना  को सीखने सिखाने की भावना के खिलाफ मानता हूँ , इसीलिये मै चाहता था कि कोई और शायर कहे कि ये सही है , और आपने कह दिया ।

मेरे खयाल से शांति को उर्दू   लिपि मे चार हर्फी ( श  आ  न  ति ) मानते हैं , इसी  लिये आ. समर  भाई अम्न कराना चाहते हैं , मै जानता नही हूँ बस मेरा ये खयाल है । 

गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2015 at 4:50pm

आदरणीय !
एक सर्वत्र प्रचलित अभ्यास है - अवधि को अवधी पढ़ने का, शांति को शान्ती पढ़ने का कहीं ऐसा ही तो नहीं है जिस कारण आदरणीय समर कबीर साहब को लय बाधित लग रही हो !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2015 at 3:46pm

समर कबीर साहब ने भी अपने संशोधन में ‘हम कबूतर अम्न के कैसे उड़ायें’ का प्रस्ताव किया है, इसमें उनको कबूतर पर कोई आपत्ति नहीं है।
जहां तय लय की बात है शांति की जगह समान मात्रा भार का ‘अम्न’ रख देने से लय कैसे सुधर जाएगी मैं नहीं समझ पा रहा हूं।

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2015 at 3:41pm

आपने जो संशोधन प्रस्तुत किया है, मुझे नहीं लगता वह मूल शेर से बेहतर है। मेरे खयाल से तो वह बात को कमजोर ही करेगा।

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2015 at 3:39pm

आदरणय गिरिराज जी !
‘हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें’ इसमें कमी क्या है - मेरी समझ में तो नहीं आ रहा।
रवी शुक्ला जी ने एकवचन बहुवचन की बात उठायी है तो मैं सबका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा -
आप कहते हैं - ‘सड़क पर दस गाडि़याँ खड़ी हैं’ पर इसी जगह अगर आप कबूतर या बंदर या हाथी या आदमी के विषय में कहना चाह रहे हैं तो क्या कहेंगे ?
सड़क पर दस बन्दर खड़े थे या सड़क पर दस आदमी खड़े थे या सड़क पर दस कबूतर बैठे थे -
कबूतर यहाँ बहुवचन के रूप में ही प्रयोग हो रहा है और प्रयोग पूर्णतः शुुद्ध है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 18, 2015 at 8:41am

आदरणीय रवि भाई , आपने सही है , ये इस मंच की ख़ासियत है , चर्चा सार्थक रहे ताकि रचना कार और पाठक दोनो चर्चा से कुछ सीख पायें । आपका आभार , इस चर्चा मे शामिल होने के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 18, 2015 at 8:38am

आदरणीय समर भाई  , आपका कहना वाजिब है , आसमान शब्द फारसी है , लेकिन ये बात भी सच है कि उतना ही प्रचलित और पढे अनपढ़े हिन्दी भाषियों के द्वारा जाना और स्वीकारा गया शब्द है , जैसे एक शब्द और याद आ राहा है - दर्द , बहुत कम लोग जानते होंगे कि ये शब्द  हिन्दी नही है , इसी लिये मै आसमान का उपयोग सही समझा । फिर भी आपकी बात सही है । ये मेरी इच्छा है थी कि मै वहाँ हिन्दी शब्द लूँ , मै किसी ऐसे विषय पर बहस नही करना चाहता जिसका अंत न  हो । मै आपकी सलाह पर सोच रहा हूँ , सलाह के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Ravi Shukla on September 17, 2015 at 2:35pm
आदरणीय गिरिराज जी । आपकी मुहब्बत का शुक्रिया । हम अभी कमिया निकलने वाले नही हुए है । आप सभी का कलाम पढ़ कर हम सीखने के दौर में है ।
एक एक मिसरे पे कितनी मशक्कत के बाद शेर सामने अत है ये देख कर मंच से जुड़ने की ख़ुशी और बढ़ जाती है । न केवल कलाम बल्कि उस पर हुई सार्थक चर्चा भी अभ्यास का पर्याप्त सामान है । समर कबीर साहब और आपका आभार । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 17, 2015 at 1:51pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,जिस तरह हिन्दी ग़ज़ल में आपने 'आसमान' शब्द फ़ारसी भाषा का ले लिया है तो फिर 'अम्न' लेने में क्या दिक़्क़त है?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 8:17am

आअदरणीय दिनेश भाई,  हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service