For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिक्षा का महत्त्व --- डॉo विजय शंकर

"यार , शिक्षा , आई मीन , एजुकेशन , है बड़ी इम्पॉर्टेंट चीज़।"
"अच्छा तुझे भी टीचर्स डे पर ही शिक्षा याद आ रही है "
"हाँ यार , गागर में सागर भर देती है , सागर से मोती निकालना सिखा देती है। "
"ठीक कहते हो यार, पर लगता नहीं यार कि हमारे यहां तो लोग पढ़ कर या तो सागर पार चले जाते हैं ,
या फिर इस पार रेत माफिया जैसे बन कर रह जाते हैं। "
"तुम्हारा मतलब सागर में उतरता कोई नहीं। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 384

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 8, 2015 at 10:08am
आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना कपिल जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:30pm
आ.विजय शंकर जी,इस गूढ़,गहन लघुकथा हेतु मुबारकबाद कुबूल करें।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2015 at 8:01pm
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , आपकी गम्भीर एवं विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार। आपने जो यह लिखा है कि ये बहुत ही चिंतन का विषय है । आपकी लघुकथा का आशय बेहद ही विस्तार लिए चिंतन और मनन के लिए प्रेरित कर रहा है । वह एक बहुत ही सही दृष्टिकोण है , सच तो यही है , परिवार में छोटे- बड़े रिश्तों में पनपते भटकाव से लेकर राष्ट्रीय एवं उससे ऊपर मानवीय पक्षों , सभी को बहुत विचार कर ही जीवन की दिशा निर्धारित करनी चाहिए अन्यथा वही होता है जो हो रहा है , हर निर्णय विवास्पद बन कर रह जाता है और सामान्यतः सब जगह वर्गीय असंतोष ही परिलक्षित होता है। कहीं किसी बात पर लोग एक मत या सहमत नहीं हो पाते हैं, हाँ , कहीं कहीं गलत कामों में यह कह कर , " सब चलता है " आंशिक एकरूपता अवश्य मिल जाती है।
सम्प्रति , आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by kanta roy on September 6, 2015 at 7:28pm
बिलकुल सही कह रहे है आप कि जो पढता है वो सागर पार चला जाता है और जो रह जाते है वो रेत माफिया !
परिस्थिति बेहद विकट है ये । शिक्षा देश की जरूरत है लेकिन अच्छे पैकेज का लोभ अब हर युवा मन में शिक्षा का पर्याय बन गया है । विदेशी कम्पनियों की पैकेज पाॅलिसी और चमक दमक की जिंदगी , भारतीय परिवेश को दिन प्रतिदिन खोखला करती जा रही है । हमारी संस्कार और संस्कृति कहीं इन आयातित माॅल संस्कृति में विलीन हो अपने आस्तित्व को डूबने से रोकने में नाकामयाब हो रही है ।
तकनीकी पढ़ाई ने साहित्य के प्रति हमारे होनहारों का रूझान कम कर दिया है । ये बहुत ही चिंतन का विषय है । आपकी लघुकथा का आशय बेहद ही विस्तार लिए चिंतन और मनन के लिए प्रेरित कर रही है । बधाई आपको आदरणीय डा. विजय शंकर जी ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 10:41pm
प्रिय मिथिलेश जी , शिक्षा का महत्त्व , उसकी उपयोगिता , उसकी सार्थकता , उसकी सार्थकता को प्रभावी बना लेने की सूझ- बूझ , सभी कुछ चाहिए शिक्षा के लिए।
हम शायद उसे एक आवश्यक कमोडिटी ही समझ पाए.
आपकी दृष्टि और परख को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 8:34pm

बहुत गहन .... बहुत सूक्ष्म दृष्टि .... कमाल की लघुकथा आदरणीय विजय शंकर सर. नमन आपको....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service