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फासले(कविता,मनन कु सिंह)

दरमियाँ के फासले जाने लगेंगे एक दिन,
आते-आते याद हम आने लगेंगे एक दिन।
जगते-सोते ख्वाब हम सहेजते तेरे अभी
अब तेरे ख्वाब हम आने लगेंगे एक दिन।
अपने दीये जले घर तेरे,ऐसा लगता है,
दीप तेरे अपने घर छाने लगेंगे एक दिन।
तेरी हीधुन को सहेजे गीत पिरोये मैंने जी,
मेरे नगमे तेरे लब आने लगेंगे एक दिन।
चाहतें अपनी मुकम्मल नाम तेरे हो गयीं,
हम तुझको लगताअबभाने लगेंगे एक दिन।
मांगता हूँ जिंदगी,तो भाव खाती जिंदगी,
जिंदगी से भाव हम खाने लगेंगे एक दिन।
शिद्दत-ओ-शौक से आशियाँ अपना सजा,
मुश्किले सब छोड़ के जाने लगेंगे एक दिन
ताने तेरे कितने भी दो,मुझको नहीं सताते,

देख लेना तुझको सच ताने लगेंगे एक दिन
तेरे पते रहे बदलते ,कितने ख़त मैंने लिखे
अबके पते मेरे ख़त जाने लगेंगे एक दिन।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on June 2, 2015 at 10:49am

आ॰ समरजी, मिश्राजी, प्राचीजी व सौरभजी !आपके स्नेह से तर हो गया मेरा अंतर। आप सबकी सलाह पर निश्चित तौर पर गौर करूँगा, सादर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 6:55pm

अब आप ग़ज़ल के विधान पर एकाग्र होइये, भाई.

अबतक आपने अवश्य समझ लिया होगा कि ग़ज़ल विधा की मूलभूत आवश्यकताएँ क्या हैं.  आप अपनी रचनाओं पर वापस भी आया कीजिये. देखिये, सुधीजनों ने उन पर क्या कहा है. या, जो नहीं कहा है वह क्या हो सकता है.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 11:15am

मन की सुकोअल भावनाओं को जस का तस शब्द देने का प्रयास हुआ है आ० मनन जी 

शिल्प पर कुछ और समय अपेक्षित अवश्य ही है.. 

प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारिये 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 10:58am

वाह! बहुत ही सुन्दर गीत! बधाई आ० मनन जी!इन पंक्तियों में लय बिगड़ती लग रही है देख लीजिये>>

ताने तेरे कितने भी दो,मुझको नहीं सताते,
ताने तुझको देखना सब सच लगेंगे एक दिन

Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 11:52pm
जनाब कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें

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