For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमको हमीं से छुपाता कौन है -- डॉ o उषा चौधरी साहनी

सुनते आये हैं, सारी नज़ाकत 

कायनात को हम नारियों से मिली है ,
बीर बहूटी को मखमल ,
गुलाब को लाली, हमीं से मिली है ,
कायनात खुद कहीं-कहीं बेइंतहा सख्त है ,
चट्टान है, आंधी है , धूल है , तूफ़ान है,
फिर भी गुलाब हैं, तितलियाँ हैं, चाँद है,
चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.
ये कठोर कायनात की ही करामात है ,
हमारी मासूमियत पर रोज़ ये ग्रहण लगाता कौन है.
हमारी मासूमियत हमसे चुराता कौन है,
बचपन से हमको हरदम डराता कौन है,
ये चेहरे पे हमारे खौफ़ लाता कौन है.
बीर बहूटी को छुप जाने को डराता कौन है.
कलियाँ गुलाब की मसलता कौन है.
कायनात की नरमी, खूबसूरती , मासूमियत
पल भर को कहीं जाती नहीं ,
खुद को कभी किसी से छुपाती नहीं ,
नज़र उठा के देखिये , किधर भी,
कहीं भी , कहाँ-कहाँ नज़र आती नहीं ,
हमारी मासूमियत पर ये सैकड़ों परदे ,
ये सलाखें, ये ताले लगाता कौन है.
इस कायनात को चलाता कौन है.
हमारी जिंदगी को चलाने का दम भरता कौन है।
हमको हमीं से छुपाता कौन है।

// मौलिक एवं अप्रकाशित //

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 26, 2015 at 7:50pm

आदरणीय परी एम श्लोक जी , आपको रचना पसंद आई , आपका हृदय से आभार सर। 

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:48pm
आदरणीय उषा जी, इस गंभीर , सार गर्भित , दार्शनिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाईयाँ , सादर ।

चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.
ये कठोर कायनात की ही करामात है , वाह जवाब नही
Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 12:10pm

आदरणीय विजय शंकर जी , मेरे द्वारा व्यक्त किये भावो को उनके उन्हीं मायनो में  लेने के लिए आपका दिल से धन्यवाद , मेरा लेखन सफल हो गया , आपका बहुत बहुत आभार , सादर सर। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 12:08pm
आदरणीय उषा जी, इस गंभीर , सार गर्भित , दार्शनिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाईयाँ , सादर ।
Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 12:02pm

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , आपने ठीक ही कहा , यह प्रकृति ईश्वर का ही रूप है ,कुछ लोग तो प्रकृति को ही ईश्वर मानते हैं। मेरी साधारण सी पंक्तियों ने आपको इतने बड़े कवि की याद दिला दी , मेरा लेखन सफल हो गया , आपका बहुत बहुत आभार , सादर सर। 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 11:55am

आदरणीय श्याम नारायण जी , बधाई के लिए सादर धन्यवाद। 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 11:54am

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , बधाई के लिए सादर धन्यवाद। 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 11:52am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , बधाई के लिए सादर धन्यवाद। 

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 11:50am

आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , आपके प्रोत्साहन के लिए दिल से धन्यवाद।

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 25, 2015 at 11:47am

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बहुत बहुत धन्यवाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
11 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service