For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ कवि-शायर! कहाँ तुम छिप कर बैठे हो. ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना क्या है.
कहाँ निर्भीक वह यौवन, जिसे तुम शोख कहते हो.
कहाँ जलता हुआ सौन्दर्य, जिसको ज्योति कहते हो .
कहाँ कंचनमयी काया, कहाँ है जुल्फ बादल सा.
किधर चन्दन सा है वह तन, कहाँ है नैन काजल सा.
हाँ देखा है सड़क पर शर्म से झुकती जवानी को, सुना कोठे की मैली सेज पर लुटती जवानी को.
इसी मजबूर यौवन पर लगाकर शब्द का पर्दा, सच्चाई को छिपाने का तेरा यह बचपना है क्या.
ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या.
फटें हों बसन जिस तन के, उसे ढंकना बताना क्या.
जो घूँघट लुट चुका उसको, भला पर्दा सिखाना क्या.
करती भूख की खातिर, जो अपने रूप का सौदा.
उस मजबूर बाला को भी, शहनाई सुनाना क्या.
यहाँ पर रहनुमा तन पर धवल खद्दर पहनते हैं, मगर कुरते के नीचे अपनी गंजी मैली रखतें हैं.
अगर मन साफ़ ही ना हो तो फिर संगम नहाना क्या. ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या.
फिजा बदली- घटा बदली, ज़मीं बदली- जहां बदला.
हवा ऐसी चली इंसान का, दिल और इमां बदला.
खुदा- भगवान् का अब फैसला, इंसान करता है.
यहाँ मंदिर- वहाँ मस्जिद, इसी मुद्दे पर लड़ता है.
जिस मुल्क में निर्धन- दलित अपमान सहते हैं, जहां खुनी- लुटेरा शान से सरेआम रहते हैं.
मापतपुरी तन्हाई में ये सोच कर देखो, यही इकबाल के सपनों का वो हिन्दोस्तां है क्या.
ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या.

गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल- 9334414611

Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 9:16am
खुदा- भगवान् का अब फैसला, इंसान करता है.
यहाँ मंदिर- वहाँ मस्जिद, इसी मुद्दे पर लड़ता है.
जिस मुल्क में निर्धन- दलित अपमान सहते हैं, जहां खुनी- लुटेरा शान से सरेआम रहते हैं.
मापतपुरी तन्हाई में ये सोच कर देखो, यही इकबाल के सपनों का वो हिन्दोस्तां है क्या.
ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या,

जय हो भाई मापतपुरी , आपके लेखन शैली का मैं कायल हो गया, आपने कल्पना लोक से सीधे जमीं पर लाकर रख दिया है, बहुत ही सही कह रहे है, कल्पना और हकीक़त मे फर्क तो हई है, बहुत ही यथार्थ खयालात है सतीश भईया , बहुत बढ़िया,
Comment by Kanchan Pandey on June 8, 2010 at 3:31pm
Atulniya, atulniya hai yey kavita , bahut hi sunder aur sachhai key najdik,
Comment by Admin on June 8, 2010 at 2:30pm
हाँ देखा है सड़क पर शर्म से झुकती जवानी को,
सुना कोठे की मैली सेज पर लुटती जवानी को.
इसी मजबूर यौवन पर लगाकर शब्द का पर्दा,
सच्चाई को छिपाने का तेरा यह बचपना है क्या.
ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या.

मापतपुरी जी एक बेहतरीन कविता का दीदार आपने करा दिया आपने , कविता का शीर्षक भले ही कल्पना है पर आपने यथार्थ की धरती पर इस कविता को प्लोटिंग किया है, एक कवि के ह्रदय की चीत्कार बिलकुल स्पस्ट रूप से आपकी कविता मे दिख रहा है, इस खुबसूरत रचना के लिये बधाई स्वीकार करे सतीश भैया,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 7, 2010 at 8:06pm
सतीश भाई आनंद आ गया आपकी कविता पढ़कर - बहुत ही ग़ज़ब का लिखा है !
//यहाँ पर रहनुमा तन पर धवल खद्दर पहनते हैं,
मगर कुरते के नीचे अपनी गंजी मैली रखतें हैं//
वाह वाह वाह - झिंझोड़ कर रख देती है आपकी यह कविता ! में दिल से आपको इस सुंदर कविता के लिए मुबारकबाद देता हूँ !
Comment by Rash Bihari Ravi on June 7, 2010 at 6:58pm
यहाँ पर रहनुमा तन पर धवल खद्दर पहनते हैं, मगर कुरते के नीचे अपनी गंजी मैली रखतें हैं.
अगर मन साफ़ ही ना हो तो फिर संगम नहाना क्या. ज़रा बाहर निकल कर देख तेरी कल्पना है क्या.
फिजा बदली- घटा बदली, ज़मीं बदली- जहां बदला.
हवा ऐसी चली इंसान का, दिल और इमां बदला.
खुदा- भगवान् का अब फैसला, इंसान करता है.
यहाँ मंदिर- वहाँ मस्जिद, इसी मुद्दे पर लड़ता है.
bahut badhia ................................................................mere pas sabd hi nahi hain kya likhu,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 7, 2010 at 6:57pm
हवा ऐसी चली इंसान का, दिल और इमां बदला.
खुदा- भगवान् का अब फैसला, इंसान करता है.
यहाँ मंदिर- वहाँ मस्जिद, इसी मुद्दे पर लड़ता है.

bahut hi badhiya likha hai aapne satish jee.....aur main rana jee ki bhi baat se purn roop se sahmat hoon

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 7, 2010 at 5:37pm
बहुत सुन्दर... गहरे सरोकारों का विषय चुना है मपतपुरी भैया आपने.........जो हमें खुली आँखों से नहीं दिखता है, असल में ऑंखें बंद करने के बाद स्पष्ट हो जाता है. ऐसे ही यथार्थ का उद्घाटन करती हुई इस रचना को लिखने के लिए साधुवाद स्वीकार करें!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
8 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service