For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मात्रिक छन्दों में भुजंगप्रयात छन्द का प्रमुख स्थान रहा है. यह एक अत्यंत प्रसिद्ध छन्द है.

यगण (यमाता, ।ऽऽ, १२२, लघु गुरु गुरु) की चार आवृतियों से बना वृत भुजंग यानि के सर्प की गति का सा आभास देता है. यही इस छन्द के नामकरण का कारण हुआ है. 

सूत्र -  यमाता यमाता यमाता यमाता  
या,  ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ  
या,  लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु

इस छन्द से मिलते-जुलते अन्य स्वरूप भी हैं. जैसे, यगण की आवृति आठ बार हो तो यह वृत सवैया वृत है जिसका नाम महाभुजंगप्रयात सवैया है.
यगण की आठ आवृतियों में आठवीं आवृति का अंतिम गुरु निकल जाय तो वह वृत वागीश्वरी सवैया हुआ करता है.
उपरोक्त दोनों सवैये, अर्थात महाभुजंगप्रयात तथा वागीश्वरी, यगणाश्रित सवैये हैं. इनके बारे में सवैया के पाठ में विशद ढंग से कहा गया है.

ज्ञातव्य: सवैया वृत या दण्डक होने के कारण वर्णिक छंद हुआ करते हैं. 

हम इस पाठ में भुजंगप्रयात छन्द पर ध्यान केन्द्रित रखेंगे.
इस छन्द का एक उदाहरण -

मिला रक्त मिट्टी.. भिगोयी-सँवारी
यही साधना, मैं इसी का पुजारी
यही छाँव मेरी, यही धूप माना
यही कर्म मेरे, यही धर्म जाना

यहाँ भूख से कौन जीता कभी है
बिके जो बनाया, घरौंदा तभी है
तभी तो उजाला, तभी है सवेरा
तभी बाल-बच्चे, तभी हाट-डेरा

कलाकार क्या हूँ.. पिता हूँ, अड़ा हूँ
घुमाता हुआ चाक देखो भिड़ा हूँ
कहाँ की कला ये जिसे खूब बोलूँ
तुला में फतांसी नहीं, पेट तौलूँ

न आँसूँ, न आहें, न कोई गिला है
वही जी रहा हूँ, मुझे जो मिला है
कुआँ खोद मैं रोज पानी निकालूँ  
जला आग चूल्हे, दिलासे उबालूँ

घुमाऊँ, बनाऊँ, सुखाऊँ, सजाऊँ
यही चार हैं कर्म मेरे निभाऊँ
न होठों हँसी, तो दुखी भी नहीं हूँ
जिसे रोज जीना.. कहानी वही हूँ .. .      (इकड़ियाँ जेबी से)

************************************************

ध्यातव्य : उपलब्ध जानकरियों के आधार पर

Views: 19603

Replies to This Discussion

अनुमोदन हेतु सादर आभार. आदरणीय सत्यनारायणजी..

आदरणीय गोपाल नारायण जी , मुझे तो आपकी यह रचना बहुतकुछ बोलती लगी, पसंद आई .
" मिला रक्त मिट्टी.. भिगोयी-सँवारी
यही साधना, मैं इसी का पुजारी
यही छाँव मेरी, यही धूप माना
यही कर्म मेरे, यही धर्म जाना "
सभी छंद बहुत अच्छे लगे , छंदों की विविधता तो मुझे अभी समझनी बाकी है , हाँ , यह जरूर है कि बात जो सही लगे , मन भाये , लुभाये वही अच्छी कहलाये।
बहुत बहुत बधाई , सादर .

अरे आदरनीय

कहाँ गड़बड़ा गये i यह छंद आदरणीय सौरभ जी का है i मुझे काँटों  में न घसीटे अग्रज i  शान्तं पापं i  सादर

आपकी पारिस्थिक विवशता को मैं समझ सकता हूँ आदरणीय विजयशंकरजी.

आदरणीय सौरभ पाण्डे जी , सादर।

हा हा हा हा.. . आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपने तो मुझे भी चौंका दिया है.. :-))

आदरणीय ,
निवेदन है कि भूल सुधार ली गयी है .खेद प्रकट करता हूँ .
इस बार करीब करीब जब से मैं विदेश से लौटा हूँ , नेट आता जाता कम है, झलक अधिक दिखलाता है , पांच मिनट की बधाई लिखने में कभी कभी तो आधा घंटा भी लग जाता है , आयातित सुविधाएं ऐसी ही होती हैं , इसी पर मैंने कुछ दिन पूर्व कुछ पंक्तियाँ भी लिखी थी , आपने भी अवश्य पढ़ी होंगी .सरकारी दफ्तरों में ऐसी त्रुटियाँ होती ही हैं हमसे नहीं होनी चाहिए , मैं स्वीकार करता हूँ . आगे से और ध्यान रखूंगा .
सादर .

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , ( भूल सुधार के साथ ) मुझे तो आपकी यह रचना बहुतकुछ बोलती लगी, पसंद आई .
" मिला रक्त मिट्टी.. भिगोयी-सँवारी
यही साधना, मैं इसी का पुजारी
यही छाँव मेरी, यही धूप माना
यही कर्म मेरे, यही धर्म जाना "
सभी छंद बहुत अच्छे लगे , छंदों की विविधता तो मुझे अभी समझनी बाकी है , हाँ , यह जरूर है कि बात जो सही लगे , मन भाये , लुभाये वही अच्छी कहलाये।
बहुत बहुत बधाई , सादर .

आदरणीय विजयशंकरजी, आप भुजंगप्रयात छन्द के आलेख को एकबारगी पढ़ जायँ. यदि संप्रेषणीयता में किंचित सुधार की आवश्यकता हो तो अवश्य साझा करें.
आपसे भी छान्दसिक रचनाओं पर अभ्यास की अपेक्षा है. इसी छन्द से क्यों न आप प्रारम्भ करें.. !
आपको इस छन्द पर मेरा प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे लिए भी अतीव प्रसन्नता की बात है.
सादर

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,
आपका सुझाव सराहनीय है , इच्छा मेरी भी यह है। सादर।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service