For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार भी करते हो …

प्यार भी करते हो …

प्यार भी करते हो तो शर्तों पे करते हो
लगता है तुम शायद मुहब्बत के अंजाम से डरते हो
क्यों मुड़ मुड़ के अपने निशां तका करते हो
क्यों ज़माने के खौफ को दिल में रखा करते हो
कभी इकरार से तो कभी इंकार से डरते हो
न, न
ऐसे तो प्यार न हो पायेगा
पानी के बुलबुले सा ये प्यार
वक्त की लहरों में खो जाएगा
अहसास कभी शर्तों में समेटे नहीँ जाते
शर्त और सौदे तो बाज़ारों में हुआ करते हैं
समर्पण बाज़ारों में कहां हुआ करते हैँ
इससे पहले कि
पाक लम्हों में कैद अहसास
शर्त की कोठरी मे घुट के दम तोङ देँ
आओ,
अपने स्वीकार को शर्त के बन्धन से मुक्त करें
इक दूजे में समाहित होकर
स्वयं को हार और जीत के भाव से विरक्त करें
मैं और तुम

हम का निर्माण करें
इक दूजे के स्पर्शों में खुद समेटें
खुद अपने पलों पे अभिमान करें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 410

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 29, 2014 at 2:24pm

आदरणीय डॉ प्राची सिंह  जी  रचना पर आपकी आत्मीय  प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति  का हार्दिक आभार।  नेट व्यवधान के कारण आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 27, 2014 at 12:01pm

आदरणीय सुशील सरना जी 

बहुत सही बात कही....

ऐसे तो प्यार न हो पायेगा
पानी के बुलबुले सा ये प्यार
वक्त की लहरों में खो जाएगा
अहसास कभी शर्तों में समेटे नहीँ जाते
शर्त और सौदे तो बाज़ारों में हुआ करते हैं
समर्पण बाज़ारों में कहां हुआ करते हैँ

जिस निःस्वार्थ कोमल भाव से आप ये रचना लिख गए हैं...उस पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये 

शुभकामनाएं 

Comment by Sushil Sarna on May 20, 2014 at 2:23pm

आदरणीय    मदन मोहन सक्सेना  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Madan Mohan saxena on May 19, 2014 at 4:57pm

बहुत खूब,सुन्दर

Comment by Sushil Sarna on May 19, 2014 at 11:35am

आदरणीया मीना  पाठक  जी रचना पर आपकी स्नेहात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। नेट व्यवधान के कारण आभार प्रगट करने में विलम्ब हुआ,   क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Sushil Sarna on May 19, 2014 at 11:34am

आदरणीय  जितेन्द्र गीत  जी रचना पर आपकी स्नेहात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। नेट व्यवधान के कारण आभार प्रगट करने में विलम्ब हुआ,   क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 7:47pm

बहुत बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आदरणीय 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 11:02pm

अपने स्वीकार को शर्त के बन्धन से मुक्त करें
इक दूजे में समाहित होकर
स्वयं को हार और जीत के भाव से विरक्त करें
मैं और तुम हम का निर्माण करें
इक दूजे के स्पर्शों में खुद समेटें
खुद अपने पलों पे अभिमान करें............सच! यही सच्ची जीत है 'हमारे' सफल जीवन की

बहुत ही सुंदर रचना आदरणीय शुशील जी, हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service