For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह मुकरियाँ -- अन्नपूर्णा बाजपेई

प्रथम प्रयास 

***************

(1)

रखती उसको हिये लगाये 

सबके मन पर वो छा जाये 

उसकी सूरत दिल मे उतरी 

क्या सखि साजन ? न सखि मुंदरी 

(2)  

उसके नाम से ही डरूँ मै 

होती शाम छिपती फिरूँ मै 

आए जब चैन न पाऊँ क्षन भर 

क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर 

(3)

बालक बूढ़े सबको भाये 

बिना उसके चैन नहि पाये 

सुंदर सूरत सुनहरी चाम 

क्या सखि साजन  ? ना सखी आम 

(4) 

देख दूर से भाग पड़ूँ मै 

गिरती पड़ती टिक न सकूँ मै

धूम  मचाये बाहर अंदर  

क्या सखि साजन  ? न सखि बंदर 

संशोधित 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

  

Views: 761

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2014 at 8:44pm

:-)))

मच्छर, बंदर, आम आदि को लेकर भावमय हो उठना भला लगा, आदरणीय.

सादर

Comment by annapurna bajpai on March 13, 2014 at 7:39pm

जी आ0 प्राची जी आप सही कह रही है । खैर इस सुंदर विधा पर काफी चर्चा हुई । जो कि रोचक है हर बार कुछ नया ही सीखने को मिला । आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2014 at 7:23pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

//मैंने सभी चर्चाओं को पढ़ा है परंतु ये कटिंग किसी पुस्तक कि लगती है इसलिए मैंने साझा किया//

प्रस्तुत की गयी कटिंग में हाइलाईटेड अंश के नीचे ही लाल रंग में दिया गया है ....सन्दर्भ साहित्यालोचन ब्लॉग 

..तो यह बिलकुल स्पष्ट है कि ये अंश किसी पुस्तक का बिलकुल नहीं है बल्कि ये किसी ब्लॉग से ही कट किया गया है.

सादर.

Comment by annapurna bajpai on March 13, 2014 at 6:17pm

आ0 प्राची जी मेरा पॉइंट आउट करने जैसा मंतव्य नहीं है बस मैंने कुछ यहाँ ही माने कि इसी मंच पर देखा  तो साझा किया है मुझे विधा की , या उससे संबन्धित शिल्पगत समस्या नहीं है , जितनी भी मैंने पढ़ी या देखि हैं । जिस पर मैंने लिखा भी है कि ये किसी का कमेन्ट स्वरूप ही है । मैंने सभी चर्चाओं को पढ़ा है परंतु ये कटिंग किसी पुस्तक कि लगती है इसलिए मैंने साझा किया । 

सस्नेह 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2014 at 1:50pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

यह बहुत अच्छा लगा की आपने इस विधा के बारे में अध्ययन किया और आपने जिस हाईलाईटेड अंश को यहाँ साँझा किया है, उसे मैं दो तीन जगह और भी इसी मंच पर देख चुकी हूँ...और साथ ही उसपर हुई सार्थक चर्चाओं को भी...

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:153703?id...

http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/show?id=5170231%3ABlog...

क्या आपने मंच पर इससे सम्बंधित चर्चाएँ नहीं पढ़ीं? तो उपरोक्त लिंक पर अवश्य ही सभी चर्चाओं को देखें...  

इस विधा पर सारी जानकारी पढने के बाद मेरी व्यक्तिगत समझ तो यही कहती है... की जिस विषय पर मुकरने की आवश्यकता ही नहीं..तो क्यों मुकरना और उसे पहेली सा बना समझने की भूल करना...और पहेली भी ऐसी जिसका उत्तर रचना में ही हो...मुझे इसमें कोइ तार्किकता नहीं नज़र आती..

सस्नेह 

Comment by annapurna bajpai on March 13, 2014 at 11:56am

आ0 प्राची जी यों तो मैंने परिवर्तन कर दिये थे जो कि आपको अच्छे भी लगे । आपका हार्दिक धन्यवाद । जहां तक इस पर मैंने अद्ध्यन किया तो देखा कि सम्माननीय भारतेन्दु जी और खुसरो जी जैसे विदद्वानों ने काफी कुछ इस विषय पर लिखा है । इसकी एक प्रति आपको भी दिखाना चाहूंगी जो शायद पहले किसी ने कमेन्ट के रूप मे किया है , आप भी देखे और प्रतिकृया दें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 5, 2014 at 9:21am

कह मुकरियों में सार्थक परिवर्तन भला लगा 

शुभकामनाएं 

Comment by annapurna bajpai on February 26, 2014 at 1:14am

आ0 प्राची जी , आ0 सरिता जी , आ0 भण्डारी जी , आ0 कल्पना दी आप सबके स्नेह के लिए आभारी हूँ , मार्ग दर्शन हेतु आप सभी को हार्दिक धन्यवाद । यूं ही टिप्पणी रूप मे अपना स्नेह देते रहिए । 

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 11:10pm

अन्नपूर्णा जी, आपका प्रयास बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये। कथ्य के बारे में कहा जा चुका है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2014 at 6:04pm

आदरनीया अन्नपूर्णा जी , कह मुकरियों का बहुत सार्थक प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
5 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service