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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-40

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |
पिछले 39 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 40

विषय - "तितली जुगनू फूल पतंगा"

आयोजन की अवधि- शनिवार 8 फरवरी 2014 से रविवार 9 फरवरी 2014 की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 फरवारी 2014 दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आ० सौरभ जी, ग़ज़ल पर आपकी सराहना से ही मेरा लिखना सार्थक हुआ ग़ज़ल धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ .

राजेश कुमारी जी - सुंदर शे'र हैं यह शे'र तोह बहुत बढ़िया लगा बधाई - सुरिन्दर रत्ती - मुम्बई 
 

अब भरोसा है कहाँ जग में वफ़ा कहाँ

दोस्त भी अपने लगें देखो रकीब  से

आ० सुरिंदर रत्ती जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका ,बहुत बहुत शुक्रिया 

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर

  

       इस खूबसूरत ग़ज़ल के प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया.

पर्स में से एक रुपया रख के हाथ पर

ऐश करना आज तो कहते गरीब से

 

आ० सत्यनारायण जी तहे दिल से शुक्रिया आपका 

आदरणीय राजेश कुमारी साहिबा, बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है अपने, खास तौर ये शेर पसंद आये,

की शिकायत फूल ने अपने हबीब से

ख़ार मुझको छू रहे कितने करीब से
 

अब भरोसा है कहाँ जग में वफ़ा कहाँ

दोस्त भी अपने लगें देखो रकीब  से

 

जुगनुओं की रौशनी से चाँद है चिढ़ा

बन रहे पैकर चिरागों के अजीब से

माज़रत के साथ..

इस शेर के पहले मिसरे में वो अंदाज़ नहीं दिख रहा जो पूरी ग़ज़ल में है...

//पर्स में से एक रुपया रख के हाथ पर//

ऐश करना आज तो कहते गरीब से

आ० इमरान खान जी तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,सच पूछो तो आपने जिस शेर की बात की उसके पहले मिसरे से मैं भी संतुष्ट नहीं थी ....आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ अपनी मूल संग्रह में इस मिसरे को दुरुस्त करुँगी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया. 

यानि आप मूल संग्रह में जो कुछ कर लेंगी उससे ओबीओ के सदस्य-पाठक वंचित ही रहेंगे.. ...  :-))))

हहाहाहा :-))) आपने पढ़ लिया !!!

ज्यादती वाली बातें हम फटाक से देख लेते हैं .. :-)))))))))))))))))

उम्दा और भावपूर्ण गजल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी 

सादर आभार आ० लक्ष्मण जी आपकी उदार प्रतिक्रिया सर्वदा उत्साह्नीय होती है दिली शुक्रिया 

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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