For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदलता परिवेश - लघुकथा

कितना कहा था कि घरेलू लड़की लाओ...पर मेरी कोई सुने तब ना...सब को पढ़ी-लिखी बी-टेक लड़की ही चाहिए थी...अब ले लो कमाऊ बहू...मुंह पर कालिख मल के चली गई, अरे...उसे किसी और से प्रेम था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की ...पहले ही मना कर देती तो ये दिन तो ना देखना पड़ता हमें..अब मै किसी को क्या मुंह दिखाऊँगी...सब तो यही कहेंगे ना कि सास ही खराब होगी ..उसी के अत्याचार से तंग आ कर बहू ने घर छोड़ा होगा..हे राम ! अब मै कहाँ जाऊँ...क्या करूँ...अरे...कोई उसे समझा-बुझा के घर ले आओ...मै उसके पाँव पकड़ लेती हूँ..घर ना छोड़े वो..ये घर उसी का है | सुनन्दा बिलख-बिलख कर रो रही थी, पति समेत सभी समझा रहे थे पर उसका बिलखना बंद नही हो रहा था |
अभी छै महीने पहले ही उसके इंजीनियर बेटे की शादी एक इंजीनियर लड़की से बड़ी धूम-धाम से हुई थी पर लड़की ने शायद घर वालों के दबाव मे शादी की थी | अब उसने तलाक लेने का फैसला ले लिया था और घर छोड़ के अलग रहने लगी थी, बहुत समझाने व मिन्नते करने पर भी वो लौटने को तैयार नही थी | इसी दुःख से सुनन्दा टूट गई थी | सुनन्दा ने उसे बेटी से भी बढ़ कर स्नेह दिया था, घर मे सभी छोटे बड़े उसे मान देते थे, उसने सभी को दरकिनार कर दूसरे के साथ रहने का फैसला कर लिया था |


मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 505

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:18pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी " पढने से लडकियां प्रेम करे या घर तोड़ने लगे ये आवश्यक नहीं है" आप के इस कथन से मै सहमत हूँ ..

आजकल वो पहले वाली स्थिति नही है ..आज की सास बहुत बदल चुकी है..बहुत सी सासे  अपनी बहुओं की अधूरी शिक्षा पूरी करा रहीं हैं..बढ़ती उम्र के बावजूद घर और उनके बच्चे सम्भाल रहीं हैं इन सब के बाद भी ऐसी स्थिति देखने को मिल रही हैं कहीं कहीं तो डर ही लगता है ना देख कर ..

रचना सराहने और मार्गदर्शन हेतु सादर आभार 

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:03pm

आदरणीय सौरभ सर जी ..क्या कहूँ .. बड़ी विचित्र स्थिति है ...

मार्गदर्शन हेतु सादर आभार 

Comment by Shubhranshu Pandey on February 6, 2014 at 9:48am

आदरणीय मीना जी, 

समाज बदल रहा है. परिवेश बदल रहा है. लोगों के विचार बदल रहे हैं. 

कथा की शुरुआत ही एक ना बदली हुई सास से होती है जिसकी नजर में बहु का बीटेक होना या नौकरी करना उसके जाने का एक मात्र कारण् था. इस धारणा को बदलना जरुरी है. पढने से लडकियां प्रेम करे या घर तोड़ने लगे ये आवश्यक नहीं है.

सुन्दर कथा. एक बदलते परिवेश और घटनाओं की कथा. शिल्प पर सौरभ भैया के कथन पर ध्यान दें. 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 3:12am

क्या ग़ज़ब का संयोग है.. यह (दुर्) घटना तो मेरे पड़ोस में हुई है ! डिट्टो.. बस सास का देहांत हो चुका था इस परिवार में ! ..  :-(((

सवा महीने भी नहीं रही, विवाह तोड़ गयी ’सुलच्छनी’ ! 

फिर तीन वर्ष लग गये माथुर साहब को कोर्ट-कचहरी और तमाम फ़ज़ीहत से निजात पाने में !  लड़की वालों ने लम्बा लिस्ट भी पकड़ा दिया था, सामान के साथ-साथ पैंतीस लाख का !

ये तो अच्छा हुआ कि जज साहब संवेदनशील थे, लड़की और उसके पिता को अंतिम कुछ बहसों के दौरान खूब लताड़ लगायी उन्होंने.

शिल्प में कथ्य (वर्णन) पर ध्यान दें.

शुभ-शुभ

Comment by Meena Pathak on February 4, 2014 at 7:20pm

सही कहा आपने आदरणीय गिरिराज जी , आम नही है पर है .... देखा मैंने ये दर्द 

लघुकथा सराहने हेतु सादर आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 6:26pm

आदरणीया मीना जी , ये स्थिति आम तो नही है , फिर भी खास स्थिति पर सुन्दर लघुकथा की रचना की है आपने !! आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
15 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service