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ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

चार पैसा उसे हुआ क्या है

पूछता फिर रहा खुदा क्या है |

 

हर जगह तो यही करप्शन है

रोग बढ़ता गया दवा क्या है |

 

तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब

पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |

 

तेरे जाने पर अब ये जाना माँ

बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |

 

हम मलंगों से पूछकर देखो

सच के व्यापार में नफा क्या है |

 

और बढ़ जाती है व्यथा मेरी

जब कोई पूछता कथा क्या है |

 

वक्त रुकता कहाँ किसी के लिये

दुश्मनी ही सही जता क्या है |

 

ज़िंदगी मौत का साया है तू

साथ जितना भी है निभा क्या है |

 

अब तो मंदिर भी लूटे जाते हैं

याचना से यहाँ मिला क्या है |

 

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on January 21, 2011 at 12:44pm
आशीष जी आप परीक्षा से खाली हुए उम्मीद और विश्वास है आपकी पढाई उन्नति की ओर अग्रसर है , आपकी साहित्यिक अभिरुचि प्रशंसनीय है , टिप्पणी का शुक्रिया !!!
Comment by आशीष यादव on January 20, 2011 at 11:18am

तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब

पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |

 

तेरे जाने पर अब ये जाना माँ

बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |

'अभिनव' सर सच में  आपको पढ़ कर मजा आ जाता है| आप की लगभग सारी कृतियाँ जो यहाँ पोस्ट होती है मै पढता हूँ| ये ग़ज़ल भी बहुत पसंद आई मुझे|

Comment by Abhinav Arun on January 12, 2011 at 4:26pm
श्री वीरेंद्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आपकी राय के लिये |स्नेह बनाये रखिये ..|
Comment by Abhinav Arun on January 12, 2011 at 4:19pm
शुक्रिया ताहिर भाई !! अभारी हूँ आपके शब्द हौसला देतें हैं |
Comment by विवेक मिश्र on January 11, 2011 at 11:36pm

तेरे जाने पर अब ये जाना माँ

बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |/

हम मलंगों से पूछकर देखो

सच के व्यापार में नफा क्या है |/

main aapki ghazalon ka niymit paathak hoon. haan, kuchh vyastataayein rahti hain, jinke kaaran comments rah jaate hain. sach kaein, aapko padhne ka hamesha apna alag hi anubhav hota hai. hamesha ki hi tarah ek umda ghazal. upar ke dono sher dil ke kareeb maaloom hue. haardik badhai.

Comment by Veerendra Jain on January 11, 2011 at 12:18pm

Arun ji...bahut hi shandaar gazal...saare sher lajawab hain..bahut bahut badhai...

Comment by Abhinav Arun on January 9, 2011 at 9:43am

भाई मोईन जी आपकी सलाह पर ये दो शेर आप्कने नाम -

'हुई मुद्दत ये जान पाया नहीं

नाम क्या है मेरा पता क्या है |

 

सोचता हूँ खुदा कहूँगा क्या

जब तू पूछेगा कि रजा क्या है |'

Comment by Abhinav Arun on January 9, 2011 at 7:15am
भास्कर जी और मोईन जी आभार !!! मोईन जी आपके सुझाव पर अमल करता हूँ (कुछ शेर और जोड़ने का प्रयास )सलाह अच्छी है और आपका पुनः धन्यवाद |
Comment by Bhasker Agrawal on January 8, 2011 at 11:57pm
बहुत सुन्दर अरुण जी मजा आ गया
Comment by moin shamsi on January 8, 2011 at 7:50pm
bahut khoob Abhinav ji. agar do ash'aar aur jod den aur aakhiri sher ko makhta bana den to aur bhi nikhar jaayegi ye ghazal.

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