प्रस्तावना
साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं। हिन्दी भाषा साहित्य इससे परे नहीं रहा।
बात छायावाद से शुरू करते हैं। छायावाद काल के काव्य में गीत एवं प्रगीत को प्रमुखता मिली इसीलिए इस काल को प्रगीत काल भी माना जाता है। इस काल के कवियों ने पश्चिमी स्वच्छंदतावादी काव्य के प्रभाव में प्रगीत शैली को अपनाया। वे सर्वाधिक अंग्रेजी प्रगीत काव्य धारा से प्रभावित थे।
स्वरूप, पाठ्य विशेषताओं और गेयता के आधार पर अंग्रेजी प्रगीत और भारतीय गीत में काफी भिन्नता है। प्रगीत संगीत की लय में नहीं गाए जाते किंतु उनमें पर्याप्त माधुर्य और प्रवाह होता है। संगीत के विधान के अनुरूप गेय पद रचना, जिसमें काव्य एवं संगीत तत्व का संतुलन रहता है, गीत कहलाती है। पश्चिमी विद्वान पालग्रेव के अनुसार, ’प्रगीत (लिरिक) की रचना किसी एक ही विचार भावना अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है तथा उसकी रचना शैली संक्षिप्त तथा भावरंजित होती है।’ शैली एवं आकार की दृष्टि से प्रगीत के छः स्वरूप हैं-
1. सॉनेट (चतुष्पदी)
2. ओड (संबोधन प्रगीत)
3. एलिजी (शोक प्रगीत)
4. सेटायर (व्यंग्य प्रगीत)
5. रिफ्लेक्टिव (विचारात्मक प्रगीत)
6. डाइडेक्टिव (उपदेशात्मक)
सॉनेट
सॉनेट इटैलियन शब्द sonetto का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाने वाली कविता है।
जन्म
सॉनेट का जन्म कहाँ हुआ, इस पर मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों (epigram) से हुआ होगा। प्राचीन काल में epigram का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड में प्रचलित बैले से पहले सॉनेट का अस्तित्व रहा है। यह भी मान्यता है कि यह सम्बोधिगीत (ode) का ही इटैलियन रूप है। एक मान्यता कहती है कि इस विधा का जन्म सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छॅंटाई करते समय गाया जाता था।
इतिहास और स्वरूप
सॉनेट को विशेष रूप से तीन आयामों में देखा-परखा गया है-
1. आकृति की विशिष्टता
2. भाव की विशिष्टता के साथ वैयक्तिक अभिव्यक्ति।
3. सर्वांगपूर्णता, कल्पना, प्रेरणा और माधुर्य।
इटली
तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सॉनेट का वास्तविक रूप सामने आया। फ्रॉ गुइत्तोन को सॉनेट का प्रणेता माना जाता है। इटली के कवि केपल लॉप्ट ने सॉनेट की खोज के लिए फ्रॉ गुइत्तोन को ‘काव्य साहित्य का कोलम्बस’ कहा है। फ्रॉ गुइत्तोन ने स्थापित किया कि सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होना चाहिए। गुइत्तोन के सॉनेट में कुल चौदह चरण होते हैं जो दो भागों में बॅंटे होते हैं-
1- अष्टपदी- अष्टपदी में पहली से चौथी की, चौथी से पाँचवीं की और पाँचवीं से आठवीं पंक्ति की तुक मिलायी जाती है। इसी तरह दूसरी से तीसरी की, तीसरी से छठवीं की और छठवीं से सातवीं पंक्ति की तुक मिलती है।
2- षष्ठपदी- षष्ठपदी में प्रायः पहली से चौथी की, दूसरी से पाँचवीं की और तीसरी से छठवीं पक्ति की तुक मिलायी जाती है। यह तीन-तीन चरणों में विभाजित रहती है। इसकी तुकान्त योजना में कुछ भिन्नताएँ भी हो सकती हैं।
गुइत्तोन और उसके पहले के सॉनेट रचनाकारों ने Guido Bonatti द्वारा ग्यारहवीं सदी में स्थापित सांगीतिक अनुशासन को अपनाकर सॉनेट की संरचना को गढ़ा। गुइत्तोन का मानना था कि कोई भी सॉनेट लेखक अपनी सांगीतिक पद्धति भी बना सकता है।
इसके बाद इटली के ही पेट्रार्का ने सॉनेट लिखे। पेट्रार्का की मान्यता थी कि सॉनेट का अन्त शुरूआत से अधिक लयात्मक होना चाहिए। पेट्रार्का और दान्ते ने गुइत्तोन सॉनेट में बदलाव भी किये। पेट्रार्का ने इसके लिए तीन तुकें निर्धारित की हैं। बाद में सॉनेट को तासो और अन्य कवियों ने भी अपनाया। इटली में प्रमुखतः सॉनेट के पाँच रूप मिलते हैं-
1. Twelve-syllabled lines (द्वादश मात्रिक सॉनेट)- इसमें एक पंक्ति में द्वादश मात्रिक ध्वनियाँ होती हैं। स्वर पर जोर नहीं होता, अन्त्याक्षर से तुक मिलायी जाती है।
2. Caudated or Tailed (पुच्छल सॉनेट)- इसमें दो या पाँच या इससे अधिक पंक्तियों का अनपेक्षित विस्तार होता है ।
3. Mute- यह एकाक्षरी तुकान्त वाला सॉनेट हास्य और व्यंग्य के लिए उपयुक्त होता है। इसमें दो अक्षर के तुकान्त भी होते हैं।
4. Linked or Interlaced (अन्तर्ग्रथित सॉनेट) - इसमें कोई कथा, भाव या विचार संगुम्फित होता है।
5. Conutinuous or Iterating (अविच्छिन्न सॉनेट)- इसमें ज़्यादातर एक ही तुक की सप्रवाह पुनरावृत्ति होती है। कभी दो तुकें भी मिलायी जाती हैं।
इंग्लैण्ड
सॉनेट को फ्रांस के कवियों, इंग्लैंड में सरे और स्पेन्सर तथा स्पहानी कवियों ने भी अपनाया। जर्मनी में पेट्रार्कन शैली के सॉनेट रचे गये। अंग्रेजी में इसे सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्डसवर्थ और कीट्स ने रचा।
सोलहवीं सदी में सर्वप्रथम Thomas wyat और Henry Howord (सरे) ने अँग्रेज़ी में सॉनेट लिखे। ये दोनों इटली में निवास के दौरान पेट्रार्का की कविताओं से प्रभावित हुए। Thomas wyat इटैलियन मॉडल को अपनाकर सॉनेट लिखते रहे। Henry Howord ने चौदह पंक्तियों की इतालवी शैली के साथ प्रयोग करते हुये दो तुकान्त संरचना अपनायी जो कि अँग्रेज़ी भाषा के लिए अधिक उपयुक्त थी-
A-b-A-b
C-D-C-D
F-F-F-F
G-G
स्पेन्सर, शेक्सपियर और मिल्टन तीनों के सॉनेट इतालवी स्वरूप से भिन्न हैं। इनमें अष्टपदी और षष्टपदी के बीच अन्तराल दिखाई पड़ता है, लेकिन दोनों बँटे हुए नहीं है।
स्पेन्सर ने इटैलियन और आरंभिक अँग्रेज़ी सॉनेट संरचनाओं को मिलाकर नया सॉनेट फॉर्म तैयार किया और इसी बदले रूप के साथ उन्होंने प्रेम सॉनेट ‘Amoretti’ शीर्षक से लिखे। एलिजाबेथ काल में बड़ी संख्या में लेखकों ने सॉनेट लिखे। फिलिप सिडनी ने इन्हें पूर्णता और सुन्दरता प्रदान की।
स्पेन्सर के फॉर्मेट को शेक्सपियर और मिल्टन ने नहीं अपनाया क्योंकि इसमें छांदिक स्वान्त्रय नहीं था। शेक्सपियर ने डेनियल और ड्राइटन के सॉनेट ढाँचे को अपनाया। शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। शेक्सपियर की 'Sonnet 116' में से कुछ पंक्तियाँ संदर्भ के लिए प्रस्तुत हैं।
‘Let me not to the marriage of true minds (a)
Admit impediments, love is not love (b)*
Which alters when it alteration finds, (a)
Or bends with the remover to remove.’ (b)*
मिल्टन के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बीच नैरन्तर्य के लिए जाने जाते हैं। मिल्टन की एक रचना 'On His Blindness' की कुछ पंक्तियां यहाँ उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत हैं जिससे इतालवी प्रारूप का आभास मिलता है-
‘When I consider how my light is spent (a)
Ere half my days, in this dark world and wide, (b)
And that one talent which is death to hide, (b)
Lodged with me useless, though my soul more bent’ (a)
इस प्रकार अंग्रेजी सॉनेट रचना की चार कोटियाँ निर्धारित की जा सकती हैं-
1. पेट्रर्कन
2. स्पेन्सरियन
3. शेक्सपीरियन
4. मिल्टानिक
भारत
भारतीय उपमहाद्वीप में सॉनेट असमी, बंगाली, डोंगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, सिन्धी, उर्दू आदि सभी भाषाओं में लिखे गये।
उर्दू
ऐसा माना जाता है कि अज़मतुल्ला खान ने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में इस विधा से उर्दू साहित्य का परिचय कराया। अख्तर जूनागढ़ी, अख्तर शीरानी, नून मीम राशिद, मेहर लाल सोनी, ज़िया फतेहबादी, सलाम मछलीशहरी, और वाज़िर आगा ने इस विधा पर हाथ आजमाए। ज़िया फतेहबादी के संग्रह ‘मेरी तस्वीर’ के एक सॉनेट, जो कि शेक्सपियर के सॉनेट के बहुत करीब है, की पंक्तियाँ देखें-
‘नज़र आई न वो सूरत, मुझे जिसकी तमन्ना थी (c)
बहुत ढूंढा किया गुलशन में, वीराने में, बस्ती में (d)
मुनव्वर शमा ऐ मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी (c)
मगर चारों तरफ था घुप अंधेरा मेरी हस्ती में’ (d)
हिन्दी
हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया। हिन्दी के कुछ कवियों ने इसे अपनाया जरूर लेकिन इस विधा पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया।
त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी काव्य में सॉनेट के स्थापक माने जाते हैं। त्रिलोचन ने लगभग ५५० सॉनेटों की रचना की है। त्रिलोचन ने इस विधा का भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया। उनके सॉनेट में 14 पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्रायें। सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया। त्रिलोचन द्वारा इस विधा पर किए गए प्रयोगों की बानगी इन उदाहरणों में देखें-
'विरोधाभास'
‘संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था। द्रवित देखने वाले
थे। परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले।‘
आरर-डाल
‘सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आयी,
झूठ क्या कहूं। पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई
का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।‘
बिल्ली के बच्चे
‘मेरे मन का सूनापन कुछ हर लेते हैं
ये बिल्ली के बच्चे, इनका हूं आभारी।
मेरा कमरा लगा सुरक्षित, थी लाचारी,
इनकी माँ ले आई। सब अपना देते हैं’
प्रभो, पुत्र वह माँग रही है
‘प्रभो, पुत्र वह माँग रही है।‘ ‘लिखा नहीं है।‘
फिर गोस्वामी तुलसीदास और क्या कहते।
तो भी दासी की विनयों में बहते-बहते।
तीन बार पूछा। प्रभु बोले, ‘लिखा नहीं है।‘
नामवर सिंह की एक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें।
‘बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमाना
लेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवा
नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना
ऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा’
त्रिलोचन की एक पूरी सॉनेट यहाँ उदाहरण के रूप् में प्रस्तुत है जो इसके स्वरूप, गेयता और तुकांत के लिए अच्छा उदाहरण हो सकती है-
सॉनेट का पथ
इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;
सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला
यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला
गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा
अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे
ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो
नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;
गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे
ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।
स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी
वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी
स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।
सॉनेट से मजाक़ भी उसने खूब किया है,
जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।
त्रिलोचन के बाद इस विधा पर बहुत कम काम देखने को मिलता है। आज जरूरत है इस विधा को हिन्दी में स्थापित करने की।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
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//ये 24 मात्राओं वाली बड़ी रहस्यमयी बात बताई//
इसमें रहस्य कैसा? यह मेरे सामने समस्या थी कि जिसे यह स्वीकार्य नहीं हो रहा है कि 24 मात्रा ही क्यों? तो उसे समझाने के लिए कुछ विकल्प तलाशने थे। उन पंक्तियों को देखकर मुझे यह उपाय सूझा तो मैंने उसका जिक्र किया। आप विचार करें, कोई अन्य आधार आपके पास हो तो अवश्य सुझाएं।
जब हम शब्दों को उच्चारित करते हैं तो उनको उसी हिसाब से रखा जाए, देवनागरी लिपि में भी, जैसा शब्दकोश में होता है। परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक आने चाहिए। एक बात और ध्यान रखनी होगी कि ऐसे मामले में देखना होता है कि अधिकतर ऐसा होता है कि नहीं। सदैव ऐसा ही हो, यह आवश्यक नहीं। औसत के नियम का ही अनुसरण करना होगा।
एक भाषा से दूसरी भाषा में विधा का रूपांतरण ध्वनियों का ही खेल है। विशेष तौर पर मैं इस विधा के मामले को तो ऐसे ही देखता हूँ। मेरे प्रयास का उद्देश्य ध्वनियों को एक नए नजरिए से देखने का था। यदि हम ध्वनियों या यूँ कहें कि ध्वनि समूह पर ध्यान केंद्रित करें तो रास्ता निकल सकता है।
आपने जो पंक्तियाँ कोट की हैं, उनको देखें-
//since brass, nor stone, nor earth, nor boundless sea//
सिंस् ब्रास्, नॉर स्टोन, नॉर अर्थ्, नॉर बाउंडलेस् सी,
2 2 2 3 2 2 2 7 2
//Or what strong hand can hold hid swift foot back?//
ऑर व्हाॅट स्ट्रांग हैंड कैन होल्ड हिड स्विफ्ट् फुट बैक्
2 2 3 3 3 3 2 2 2 2
//Shall Time's best jewel from Time's chest lie hid?//
शैल् टाइम्स् बेस्ट जूअल् फ्राॅम् टाइम्स् चेस्ट् लाइ हिड्
2 4 3 3 1 4 2 3 1
यदि आप कहें तो बाकी की पंक्तियों पर भी कुछ प्रयास करूँ।
यह सिर्फ यह आधार बनाया गया है कि देवनागरी में वैसा ही लिखा जाए और उतना ही महत्व दिया जाए जितना अंग्रेजी के उच्चारण में दिया जाता है।
सादर!
Rahasyamayi isliye kha adarneeya k hindi matraon ki gadna angreji uchcharan k anusar krna ek gahn soch ka parinaam hai. adarneeya yadi aisa hai to unhone ausat dekhte hue 24 matrayen nirdharit ki hongi.Lekin mera khyal hai 24 se kam ya jyada matron ki line banana bhi galat nhi hoga.
Sader
//24 से कम या ज्यादा मात्राओं की पंक्ति बनाना भी गलत नहीं होगा।//
इसका कोई आधार तो होना चाहिए।
एक निवेदन कि त्रिलोचन ने क्या किया, मैं उसकी बात अब नहीं कर रहा। जैसा कि मैंने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट किया कि यह मेरी अपनी सोच है।
दूसरी बात यह कि मैंने जो रास्ता निकाला, उस पर आपने प्रश्न किया, जिसका उत्तर मैंने दिया। अब उसके आगे कथन को ले जाइए। भटकाव अच्छा नहीं होता। बहुत सारे विकल्प दरअसल सभी रास्तों को बंद करते हैं, रास्ता देते नहीं। यहां यह बात करना कि 24 से कम या ज्यादा गलत होगा कि नहीं, इसका कोई अर्थ नहीं क्योंकि त्रिलोचन का कार्य एक सशक्त कार्य है। उन्होंने क्या सोचकर 24 मात्रा निर्धारित की, इस पर ही बात केंद्रित रखी जाए तो उचित।
मात्राओं की संख्या घटाने बढ़ाने के लिए उचित आधार होना चाहिए, जो अभी तक आपने प्रस्तुत नहीं किया। अंग्रेजी के सिलेबल या किसी अन्य भाषा के उच्चारण समूह को आधार बनाकर तो हम हिंदी में निर्धारण नहीं कर सकते न।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!
आपने 12वीं जो पढ़ा था उसे फिर देखिए और इस परिचर्चा को आगे ले जाने में सहायता करिए। अभी तो हम सब अटके हैं।
सादर!
मैं समझ नहीं पाया आपका निष्कर्ष! 24 मात्रा ही होनी चाहिए या छूट मिल सकती है।
//''Sonnet is a lyric poem comprising fourteen rhythmic lines of equal length: iambic pentameter in English,alexandrines in French,hendecasyllables in Italian...''(oxford dic of Eng Literature)//
आपने जो परिभाषा कोट की है उसमें नई बात क्या है? यह परिभाषा सिर्फ और सिर्फ इस विधा के विकास या कहें कि विभिन्न भाषाओं में इसके रूपों की कहानी ही कहती है। इसमें ऐसा कौन सा तथ्य जिसके आधार पर हिन्दी के मानक तय कर दिए जाएंगे।
यूं अंग्रेजी का मोह थामे हिन्दी में इस विधा के सही मानकों का निर्धारण नहीं किया जा सकता।
मैं यह महसूस कर रहा हूं कि हर बार चर्चा ‘iambic pentameter’ इस पर आकर अटक जाती है। तो मैं समझता हूं कि पहले इस शब्द का मतलब ही स्पष्ट कर लिया जाए। आपसे अपेक्षा है कि आप इस शब्द का अर्थ स्पष्ट करें।
‘lyric poem’, ‘rhythmic lines’ इन शब्दों के भी अर्थ स्पष्ट हो सकें तो बेहतर होगा।
सादर!
आदरणीय वंदना जी,
यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह केवल समझ का फेर है कि यह परिभाषा इस विधा के आधारभूत सिद्धान्त प्रस्तुत करती है। यह इस चर्चा का अभी तक का दुर्भाग्य रहा है कि इस विधा के आधारभूत सिद्धान्त की तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं गया।
//उक्त परिभाषा के उल्लेख से मतलब केवल 'equal lines' को प्रकाश में लाना था//
प्रश्न तो मेरा यही था कि क्या 24 मात्रा कहने से पंक्तियां समान नहीं होतीं जो बार बार हमें ‘iambic pentameter’ के द्वारा ही समान पंक्तियों का सिद्धान्त समझना पड़े।
आपने त्रिलोचन की पंक्तियों के सहारे जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वह आपका भ्रम दर्शाती हैं। मेरा अनुरोध है कि आप शब्दों का अर्थ ठीक से समझ लें।
// इस विधा के आधारभूत सिद्धान्त प्रस्तुत करती है। यह इस चर्चा का अभी तक का दुर्भाग्य रहा है कि इस विधा के आधारभूत सिद्धान्त की तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं गया। .... //
:(((((((((((((((
सहमत हूँ ,,,,,,
अभी तक हम अन्य बातों में उलझे हुए हैं ...
सानेट पर आपका दूसरा लेख सभी को संयत कर देगा इसी की आकांक्षा/अपेक्षा है ....
आदरणीय वीनस भाई अनुमोदन हेतु आपका आभार! अगले लेख को प्रस्तुत करने के लिए प्रयासरत हूं।
सादर!
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